आज के दौर में हर कोई भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान की तरफ अग्रसर है. इस विज्ञान की दुनिया में किसी के सामने यदि धर्म चर्चा की जाए तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि मनुष्य की सभी आवश्यकताओं को विज्ञान पूरा कर रही है, फिर धर्म की दुहाई क्यों? यदि विज्ञान-भक्ति का चश्मा उतारकर शुद्ध दृष्टि से देखें तो मालूम होगा विज्ञान और धर्म का चोली-दामन का रिश्ता है. ये दोनों परस्पर सापेक्ष हैं. हिन्दू संस्कृति में जहां धर्म की प्रधानता दी गई है. वहीं विज्ञान की भी उपेक्षा नहीं की गई है.
गो सेवा-प्रधान धर्म
हिन्दू संस्कृति में गो सेवा धर्म को प्रधान धर्म माना गया है. वैदिक काल से लेकर आज तक गो-गरिमा के गीत गाए जाते हैं. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों के साधन का मूल स्वरुप गो माता ही हैं. वेद, शास्त्र, पुराण और साधु-संतों ने इन देवी की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है. हिन्दू धर्म का सौभाग्य और वैभव गोमाता से ही है. हमारे राष्ट्र का जीवन गो माता पर ही अवलम्बित है. ऐसा माना जाता है गो माता सुखी तो राष्ट्र सुखी. लेकिन आज हम गो सेवा और गो सुरक्षा की बात पर विचार करना ही नहीं चाहते हैं.
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वेदों में गाय के दूध को अमृत कहा गया
गाय हमारे लिए कोई पशु नहीं है बल्कि ये हमारी मां हैं. हमारी आस्था काफी ही प्रगढ़ है. साथ ही साथ ये एक आर्थिक और सामाजिक संस्था है. हमारा शाकाहार प्रधान देश अपने आहार के आवश्यक तत्वों के लिए मुख्यतः गाय के दूध पर निर्भर है. आज गो ज्ञान अपने आप में एक विषय बनता जा रहा है और आने वाले समय में जन समूह तक फिर से गाय महिमा सुनाई जायेंगीं और हमें ये समझना पड़ेगा गो हत्या या गो को संरक्षण न देना अपने राष्ट्र को गर्त में भेजने से कम साबित नहीं होगा. 'यतो गावस्ततो वयं' अथार्त गायें है, इसीलिए ये बात हम सभी को ध्यान में रखना चाहिए. वेदों में गाय के दूध को अमृत कहा गया है. धर्मशास्त्र तो गोधन की महानता और पवित्रता का वर्णन करता ही है. साथ ही भारतीय अर्थशास्त्र में भी गोपालन का विशेष महत्व है. कौटिल्य अर्थशास्त्र में गो पालन और गो रक्षण का विस्तृत विवरण मिलता है.
गाय माता होते हुए भी आज हो रहीं हैं तिरस्कृत
आज गाय माता को हम मां तो मानते हैं लेकिन कहीं ना कहीं हमारी संवेदना गाय के प्रति घटती जा रही है. साथ ही कई गाय पालकों को देखा जाता है कि वो गाय के प्रति तभी अपनी सहानुभूति दिखाते हैं जब गाय दुहना होता है. उसके बाद गाय कहां है. कहां विचर रही है, क्या खा रही है, इससे कोई मतलब नहीं. सड़क-चौराहों पर देखने को मिल ही जाता है कि गाय कभी कूड़े को खाती है तो कभी पॉलिथीन में फेंकी कोई साम्रगी को निगल जाती है. जिसकी वजह से गाय के पेट में पॉलिथीन होने से उसे कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं. साथ ही पेट में पॉलिथीन जाने की वजह से पाचन क्रिया बाधित हो जाती हैं. ये दृश्य बताती है कि हम गाय माता को लेकर कितने सजग व संवेदनशील हैं.
वेदों में गाय के दूध को अमृत कहा गया
गाय हमारे लिए कोई पशु नहीं है बल्कि ये हमारी मां हैं. हमारी आस्था काफी ही प्रगढ़ है. साथ ही साथ ये एक आर्थिक और सामाजिक संस्था है. हमारा शाकाहार प्रधान देश अपने आहार के आवश्यक तत्वों के लिए मुख्यतः गाय के दूध पर निर्भर है. आज गो ज्ञान अपने आप में एक विषय बनता जा रहा है और आने वाले समय में जन समूह तक फिर से गाय महिमा सुनाई जायेंगीं और हमें ये समझना पड़ेगा गो हत्या या गो को संरक्षण न देना अपने राष्ट्र को गर्त में भेजने से कम साबित नहीं होगा. 'यतो गावस्ततो वयं' अथार्त गायें है, इसीलिए ये बात हम सभी को ध्यान में रखना चाहिए. वेदों में गाय के दूध को अमृत कहा गया है. धर्मशास्त्र तो गोधन की महानता और पवित्रता का वर्णन करता ही है. साथ ही भारतीय अर्थशास्त्र में भी गोपालन का विशेष महत्व है. कौटिल्य अर्थशास्त्र में गो पालन और गो रक्षण का विस्तृत विवरण मिलता है.
गाय माता होते हुए भी आज हो रहीं हैं तिरस्कृत
आज गाय माता को हम मां तो मानते हैं लेकिन कहीं ना कहीं हमारी संवेदना गाय के प्रति घटती जा रही है. साथ ही कई गाय पालकों को देखा जाता है कि वो गाय के प्रति तभी अपनी सहानुभूति दिखाते हैं जब गाय दुहना होता है. उसके बाद गाय कहां है. कहां विचर रही है, क्या खा रही है, इससे कोई मतलब नहीं. सड़क-चौराहों पर देखने को मिल ही जाता है कि गाय कभी कूड़े को खाती है तो कभी पॉलिथीन में फेंकी कोई साम्रगी को निगल जाती है. जिसकी वजह से गाय के पेट में पॉलिथीन होने से उसे कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं. साथ ही पेट में पॉलिथीन जाने की वजह से पाचन क्रिया बाधित हो जाती हैं. ये दृश्य बताती है कि हम गाय माता को लेकर कितने सजग व संवेदनशील हैं.