भारत में 9.64 करोड़ क्षेत्र में मरुस्थलीकरण हो रहा है, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का 30 फीसदी हिस्सा है। देखा जाए तो आने वाले दिनों में मरुस्थलीकरण काफी बड़ी समस्या बन सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र के इस अनुमान से समझा जा सकता है कि साल 2025 तक दुनियाभर के दो-तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों से जूझ सकते हैं, जिससे मरुस्थलीकरण के चलते विस्थापन बढ़ेगा और 13 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक विश्व भर के कुल क्षेत्रफल का करीब 20 फीसद भूभाग मरुस्थलीय के रुप में है। जबकि वैश्विक क्षेत्रफल का करीब एक तिहाई भाग सूखाग्रस्त भूमि के रूप में है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है और दुनिया भर में रेगिस्तान का दायरा निरंतर विस्तृत हो रहा है इस कारण आने वाले समय में कई चीजों की कमी हो सकती है। विश्व भर में करीब एक सौ तीस लाख वर्ग किलोमीटर भूमि मानवीय क्रियाकलापों के कारण रेगिस्तान में बदल चुकी है। प्रति मिनट करीब 23 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो रही है। इस कारण खाद्यान्न उत्पादन में प्रतिवर्ष दो करोड़ टन की कमी आ रही है। दुनिया के दो तिहाई हिस्से में भू क्षरण की समस्या गंभीर हो गई है। इस कारण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, सूखे तथा प्रदूषण की चुनौती भी बढ़ रही है। भूमि में प्राकृतिक कारणों तथा मानवीय गतिविधियों के कारण जैविक या आर्थिक उत्पादन में कमी की स्थिति को भू-क्षरण कहा जाता है। जब यह अपेक्षाकृत सूखे के क्षेत्र में घटित होता है, तो तब इसे मरुस्थलीकरण कहा जाता है। दरअसल इस समय पूरी दुनिया में धरती पर सिर्फ 30 फ़ीसदी हिस्से में ही वन शेष बचे हैं और उसमें से भी प्रतिवर्ष इंग्लैंड के आकार के बराबर हर साल नष्ट हो रहे हैं दुनिया भर में लोगों के लिए खाने-पीने की समुचित उपलब्ध बनाए रखने की खातिर भू-क्षरण रोकना और नष्ट हुई उर्वरक भूमि को उपजाऊ बनाना आवश्यक है।
चीन ने अपने एक बहुत बड़े रेगिस्तान के क्षेत्र को 30 सालों में हरे-भरे मैदान में बदलकर दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की. जहां तक भारत का सवाल है, यहां मरुस्थलीकरण बड़ी समस्या बनता जा रहा है। मरुस्थली क्षेत्र विस्तार भूक्षरण और सूखे पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र के एक उच्च स्तरीय संवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि भारत अगस्त 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षरित भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में अग्रसर है जिससे ढाई से तीन अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन अवशोषित किया जा सकेगा। भू क्षरण से फिलहाल भारत की करीब 30 फ़ीसदी भूमि प्रभावित है, जो बेहद चिंताजनक है। पर्यावरण क्षति की भरपाई के प्रयासों के तहत पिछले एक दशक में करीब 300000 हेक्टेयर वन क्षेत्र का विस्तार किया गया है।
भारत ने जून 2019 में परीक्षण के तौर पर पांच राज्य हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नगालैंड, कर्नाटक में वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ाने की परियोजना शुरू की थी और अब इस परियोजना को धीरे-धीरे मरुस्थलीकरण से प्रभावित अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है। प्रकाशित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देशभर में 9.64 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में मरुस्थलीकरण हो रहा है, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का करीब 30 फ़ीसदी हिस्सा है।
इस क्षरित भूमि का 80 फीसदी हिस्सा केवल 9 राज्यों में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना में है। दिल्ली, त्रिपुरा, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश और मिजोरम में मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया काफी तेज है। भारत के कई राज्यों जैसे कि झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और गोवा के लगभग 50% से भी अधिक हिस्सों में क्षरण हो रहा है। बड़े पैमाने पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से मरुस्थलीकरण अर्थात उपजाऊ जमीन के बंजर बन जाने की समस्या विकराल हो रही है। सूखे इलाकों में जब लोग पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से ज्यादा दोहन करते हैं तो वहां पेड़ पौधे खत्म हो जाते हैं और उस क्षेत्र की जमीन बंजर हो जाती है अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से वैश्विक स्तर पर मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए जन जागरूकता का बढ़ावा दिया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा था। भारत में उस पर 14 अक्टूबर 1994 को हस्ताक्षर किए। देश के थार मरुस्थल ने उत्तर भारत के मैदानों को सर्वाधिक प्रभावित किया है। चिंताजनक स्थिति यह है कि थार के मरुस्थल में प्रतिवर्ष 13000 एकड़ से भी अधिक बंजर भूमि को वृद्धि हो रही है।
रबीन्द्रनाथ चौबे
कृषि मीडिया, बलिया, उत्तरप्रदेश।