दिल्ली बॉर्डर पर पिछले साल 26 नवंबर से नए कृषि कानून 2020 को लेकर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों में सिर्फ जवान ही नहीं, बच्चे, बुजुर्ग भी शामिल हैं. वे कड़ाके की ठंड में अपनी मांगों को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं. इन प्रदर्शनों में अब तक 53 लोगों की जान जा चुकी है. ये हम नहीं कह रहे हैं. ये कहना है पंजाब सरकार का. पंजाब सरकार के मुताबिक कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में 20 जान पंजाब में और 33 दिल्ली बॉर्डर पर गई है.
जान जाने के पीछे की वजह सड़क दुर्घटना, ठंड और आत्महत्या शामिल है. इतनी मौतों के बाद भी केंद्र सरकार की नींद नहीं खुल रही है. सरकार के नुमाइंदगे अब भी कृषि कानून को किसानों के हित में बता रहे हैं, जबकि किसान इसे रद्द करने की मांग पर अड़े हैं. किसानों ने सरकार को खुली चुनौती दी है कि अगर वह 4 जनवरी तक कुछ नहीं करती है, तो इसके बाद हमें ही कुछ करना होगा.
यह पहली बार नहीं है, जब सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में 53 लोगों की मौत हुई है. इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के विभिन्न जगहों पर प्रदर्शन हुए थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनों में 25 लोगों की जान चली गई थी, जिसमें एक 8 साल का बच्चा भी शामिल था. हाल के दिनों में देखा गया है कि सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों का आंकड़ा बढ़ा है और इसमें मरने वालों का भी. या तो सरकार कानून को रद्द करने पर राजी हो जाए या किसान अपनी जिद्द छोड़कर संशोधन करने के लिए तैयार हो जाए. लेकिन दोनों पक्षों में से कोई नरम पड़ते नहीं दिख रहा है. लेकिन इन सब के बीच सवाल उठता है कि आखिर इस कृषि कानून की वजह से और कितनी जान जाएगी?
हरियाणा के करनाल जिले के रहने वाले बाबा राम सिंह को कौन भूल सकता है. उन्होंने कथित रूप से खुद को गोली मारकर जान दे दी थी. उनके करीबियों के अनुसार, वे किसानों को ठंड में प्रदर्शन करते देख काफी चिंतित थे. यहीं नहीं, गुरदासपुर के रहने वाले अमरीक सिंह की मौत ठंड की वजह से हो गई. उनकी उम्र करीब 75 वर्ष थी. वो अपनी तीन साल की पोती के साथ दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे थे. तीसरी घटना बहादुरगढ़-दिल्ली बॉर्डर की है. यहां 55 वर्षीय जनक राज एक कार में सो रहे थे, उसमें आग लग गई और वो जिंदा जल गए. कृषि कानून 2020 के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में हो रही किसानों की मौत चिंता का विषय है.