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कांकेर का सीताफल है खास, दूर तक पहुंचा रहा है मिठास

सीताफल का स्वाद आखिर कौन नहीं लेना चाहता है. इसका वानस्पतिक नाम अनौनत्रा अनोनास है. नंदेली गांव में इसको कठोर नाम से जाना जाता है, यह पेड़ बहुत पहले ही अन्य देशों से लाया गया था. इसका पेड़ छोटा और तना पूरी तरह से साफ छाल हल्के नीले रंग की लकड़ी होती है. इसकी मिठास और पूरा स्वाद इतना अच्छा है कि सीजन में हर कोई इसके स्वाद को चखना चाहता है. यह फल जितना ज्यादा मीठा है उतना ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.यहां पर छत्तीसगढ़ के कांकेर में इस फल की न सिर्फ प्राकृतिक रूप से काफी पैदावार हो रही है बल्कि हर साल इसका उत्पादन और विपणन भी बढ़ रहा है. कांकेर के सीताफल की अपनी अलग विशेषता होने के चलते अन्य स्थानों पर ज्यादा डिमांड रहती है.

किशन
custurd apple

सीताफल का स्वाद आखिर कौन नहीं लेना चाहता है. इसका वानस्पतिक नाम अनौनत्रा अनोनास है. नंदेली गांव में इसको कठोर नाम से जाना जाता है, यह पेड़ बहुत पहले ही अन्य देशों से लाया गया था. इसका पेड़ छोटा और तना पूरी तरह से साफ छाल हल्के नीले रंग की लकड़ी होती है. इसकी मिठास और पूरा स्वाद इतना अच्छा है कि सीजन में हर कोई इसके स्वाद को चखना चाहता है. यह फल जितना ज्यादा मीठा है उतना ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.यहां पर छत्तीसगढ़ के कांकेर में इस फल की न सिर्फ प्राकृतिक रूप से काफी पैदावार हो रही है बल्कि हर साल इसका उत्पादन और विपणन भी बढ़ रहा है. कांकेर के सीताफल की अपनी अलग विशेषता होने के चलते अन्य स्थानों पर ज्यादा डिमांड रहती है.

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यहां पर राज्य के स्थानीय प्रशासन के जरिए सीताफल को न सिर्फ विशेष रूप से ब्रांडिग, पैकेजिंग, मार्केटिंग में सहयोग करके इससे जुड़ी महिला स्व सहायता समूह को लाभ पहुंचाने का काम किया जाता है. साथ ही उनको आत्मनिर्भर बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है. इससे किसानों को काफी ज्यादा लाभ होने की उम्मीद है. इसका परिणाम यह है कि आज सीताफल की ग्रेडिंग और संग्रहण करने वाली स्व सहायता समूह वाली महिलाओं  और इनसे जुड़े पुरूष को लगभग 25 लाख रूपये तक की आमदनी होने की पूरी उम्मीद है. कांकेर वैली में सीताफल के रूप मे अलग-अलग ग्रेडिंग करके 200 टन विपणन का लक्ष्य रखा है.

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सीताफल का उत्पादन वैसे तो कई जगह पर होता है लेकिन कांकेर जिला का यह सीताफल राज्य में काफी प्रसिद्ध है. यहां पर प्राकृतिक रूप से उत्पादित सीताफल के 3 लाख 19 हजार पौधे उपलब्ध है, इससे प्रतिवर्ष अक्टूबर से नवंबर महीने तक कुल छह हजार टन सीताफल का उत्पादन होता है. यहां पर सीताफल के पौधों में किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद और कीटनाशक का किसी भी तरह से प्रयोग नहीं किया जाता है.

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यह पूरी तरह से जैविक होता है, इसीलिए यह स्वादिष्ट होने के साथ ही काफी पौष्टिक होता है. यहां पर प्राकृतिक रूप से उत्पादित सीताफल को आसपास की ग्रामीण महिलाएं और पुरूष संग्रह करके बेचते है, इससे थोड़ी बहुत आमदनी उनकी हो जाती थी. लेकिन उनको पहले कोई भी ऐसा मार्गदर्शक नहीं मिला जो इनकी मेहनत का ठीक दाम दिला दें.

English Summary: Cultivation of Sitaphal in Chhattisgarh will give huge profits to farmers Published on: 15 November 2019, 12:39 PM IST

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