हिंदी के साहित्यकार

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किसान की कहानी दिनकर की ज़ुबानी

जेठ हो कि हो पूस, हमारे किसान को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति, भुजा में, जीवन में सुख का नाम नहीं है वस…