Success Story: दिल्ली के दरियापुर कलां गांव के प्रगतिशील किसान सत्यवान सहरावत ने पारंपरिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक सहफसली खेती का रास्ता अपनाया और अपने अनुभव से सफलता की एक नई कहानी लिखी. प्रगतिशील किसान सत्यवान के पास 30 एकड़ जमीन है, जिसमें से 5 एकड़ जमीन पर वह प्याज और गन्ने की प्राकृतिक विधि से सहफसली खेती कर रहे हैं.
पारंपरिक तरीकों से हटकर प्राकृतिक विधि से खेती करने के उनके इस फैसले ने न केवल उनके मुनाफे में वृद्धि की है, बल्कि उनके फसल की गुणवत्ता और मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखा है. सत्यवान की यह कहानी अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गई है, जिन्होंने उनकी इस सफलता से प्रेरणा लेकर प्राकृतिक खेती की ओर रुझान दिखाया है.
सहफसली खेती का नवाचार: मिट्टी से बने बेड और नालियां
प्रगतिशील किसान सत्यवान की खेती का तरीका बाकी किसानों से बिल्कुल अलग और अनूठा है. वह अपने खेत में प्याज-गन्ने की सहफसली खेती के लिए सबसे पहले मिट्टी के बेड तैयार करते हैं, जिन पर प्याज की बुवाई की जाती है जबकि बेड के बगल में जो खाली जगह यानी नाली होती है उसमें गन्ने की खेती होती है. इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे पानी की खपत में कमी आती है और साथ ही फसलें अधिक समय तक पोषण पाती हैं.
प्राकृतिक तरीके से खेती करने के कारण फसलों की गुणवत्ता बेहतर होती है और लागत भी कम आती है. सत्यवान का मानना है कि इस सहफसली खेती ने उन्हें पानी, समय, और श्रम का बेहतर प्रबंधन करने में मदद की है.
उत्पादन में बढ़ोत्तरी और बेहतर मुनाफा
प्राकृतिक विधि से खेती करने का सकारात्मक प्रभाव उनके उत्पादन और कीमत पर भी पड़ा है. प्राकृतिक सहफसली खेती में सत्यवान प्रति एकड़ 120 क्विंटल प्याज का उत्पादन कर पाते हैं, जिसका मूल्य बाजार में 30 से 60 रुपये प्रति किलो मिलता है. वहीं, प्रति एकड़ गन्ने का उत्पादन लगभग 400 क्विंटल होता है, जिसकी कीमत 700 से 1400 रुपये प्रति क्विंटल तक होती है. इस प्रकार, सिर्फ प्याज और गन्ने की सहफसली खेती से ही सत्यवान प्रति एकड़ लगभग 6 लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं. यह मुनाफा पारंपरिक खेती से कहीं अधिक है.
खेती का समय और फसल की देखभाल का महत्व
प्रगतिशील किसान सत्यवान खेती के हर चरण पर पूरा ध्यान देते हैं और खेती का समय भी विशेष तौर पर निर्धारित करते हैं. जनवरी के महीने में वह प्याज की बुवाई करते हैं, जबकि गन्ने की बुवाई फरवरी में होती है. अगर किसी कारणवश गन्ने के पौधों का अंकुरण नहीं हो पाता है, तो सत्यवान पहले से ही नर्सरी तैयार रखते हैं ताकि गन्ने के पौधों की कमी न हो.
फसल की कटाई का समय भी वह बड़े धैर्य और योजना के साथ तय करते हैं. प्याज की कटाई बुवाई के चार महीने बाद होती है, जबकि गन्ने की कटाई नवंबर में शुरू होकर फरवरी-मार्च तक चलती है. इस प्रकार, उनकी फसलें समय पर बाजार में आ जाती हैं, जिससे उन्हें अच्छे दाम मिलते हैं और उत्पाद की गुणवत्ता भी बनी रहती है.
अतिरिक्त फसलें और जैविक खेती के विस्तार
सत्यवान सिर्फ प्याज और गन्ने पर ही निर्भर नहीं हैं; वे आलू, धान, और गेहूं जैसी फसलों की भी जैविक विधि से खेती करते हैं. जैविक खेती का उनका यह तरीका न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इसे अपनाकर सत्यवान ने अपने फसल की गुणवत्ता को भी ऊंचा किया है. वे अपने खेतों में खाद और कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं, जिससे उनके उत्पादों की शुद्धता बनी रहती है. इतना ही नहीं, सत्यवान अपने प्याज के बीज का भी उत्पादन करते हैं और इसे स्थानीय किसानों को बेचते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है.
जैविक खेती के लाभ और इसके प्रति किसानों की जागरूकता
जैविक और प्राकृतिक विधि से खेती करने के कारण उनके खेत की मिट्टी की उर्वरता लगातार बनी रहती है, कीटनाशकों और रसायनों पर खर्च कम होता है, और फसलों की गुणवत्ता बढ़ती है. उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती एक स्थायी और फायदेमंद विकल्प है, जो न केवल किसानों की आय में वृद्धि करता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है. प्राकृतिक खेती से उनकी फसल की मांग भी अधिक रहती है, जिससे उन्हें अधिक लाभ मिलता है. उनकी इस सफलता ने अन्य किसानों के मन में भी जैविक खेती के प्रति विश्वास पैदा किया है और कई किसानों ने इस दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है.
डेयरी फार्मिंग में प्रगति
प्रगतिशील किसान सत्यवान न केवल फसल की खेती में बल्कि डेयरी पालन में भी सक्रिय हैं. उनके पास वर्तमान में 10 गिर नस्ल की गायें हैं, जिनसे मिलने वाले गोबर और गौमूत्र का उपयोग वह प्राकृतिक और जैविक खेती के लिए करते हैं. इन संसाधनों की बदौलत वह अपनी भूमि की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखते हैं और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करते हैं.
गिर गायें उच्च गुणवत्ता वाले दूध के लिए जानी जाती हैं, जिससे सत्यवान को अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है. उनके इस समग्र दृष्टिकोण से खेती और पशुपालन दोनों को लाभ होता है, जिससे पर्यावरण के प्रति उनकी जिम्मेदारी भी पूरी होती है.
अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत
सत्यवान की इस सफलता ने न केवल उनके परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत किया है, बल्कि आसपास के किसानों को भी प्रोत्साहित किया है. सत्यवान अपने अनुभवों को साझा करते हैं और अन्य किसानों को जैविक खेती के फायदों के बारे में बताते हैं.
उन्होंने अपने गांव के किसानों को यह समझाया है कि पारंपरिक खेती से हटकर जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाने से उनकी आय में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हो सकती है. सत्यवान की यह सफलता अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गई है, जो प्राकृतिक खेती के जरिए न केवल अपनी जमीन की उर्वरता बढ़ा सकते हैं बल्कि अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं.