Success Story: जहां एक ओर फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिकतर किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का लगातार उपयोग कर रहे हैं. वहीं संजय अंनत पाटिल प्राकृतिक खेती की लड़ाई लड़ रहे हैं. संजय को भारतीय कृषि में नवाचार और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन को नई दिशा की ओर ले जाते हुए दस एकड़ बंजर जमीन को हरे-भरे खेत में बदल दिया, जिसे अब "कुलगर" कहा जाता है. किसान संजय अंनत पाटिल की इस उपलब्धि को आधुनिक और पारंपरिक तकनीकों के साथ जोड़ा जाता है. उन्होंने खेती के लिए पेड़-पौधे और पशुपालन का बेहतरीन तालमेल बिठाया है.
संजय को 2014 में गोवा सरकार ने "कृषिरत्न" पुरस्कार से नवाज़ा और 2023 में "IARI-इनोवेटिव फार्मर अवार्ड" से सम्मानित किया गया. वहीं 2024 में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें उनके उत्कृष्ट कृषि कार्य के लिए "पद्म श्री" से सम्मानित किया. आइये कृषि जागरण के आर्टिकल में प्रगतिशील किसान संजय अंनत पाटिल की सफलता की कहानी जानें.
हर साल 500 लोगों को करते हैं शिक्षित
किसान संजय अनंत पाटिल का जन्म 31 अगस्त 1964 को हुआ था, और उन्हें "संजय काका" के नाम भी पहचाना जाता है. संजय ने सिर्फ 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, लेकिन उनकी प्राकृतिक खेती में दक्षता किसी प्रशिक्षित इंजीनियर से कम नहीं है. उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और गोवा के कृषि विज्ञान केंद्रों से खेती की नई तकनीकों को अपनाया और अपने खेत को एक आदर्श मॉडल में बदल दिया. अब उनके खेत में हर वर्ष 300 से 500 लोग प्राकृतिक खेती सीखने और उनसे प्रेरणा लेने आते हैं.
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तैयार किया ऑटोमैटिक जीवामृत उत्पादन संयंत्र
किसान संजय ने वर्ष 1991 से प्राकृतिक खेती को अपनाया. उन्होंने जीवामृत खाद का इस्तेमाल करना शुरू किया, जिसे देशी गाय के गोबर और मूत्र से तैयार किया जाता है. उनका कहना है कि 10 एकड़ खेत के लिए सिर्फ 1 गाय बिना रसायनों के उर्वर बना सकती है.
किसान ने अपनी मेहनत और सोच के साथ एक ऑटोमैटिक जीवामृत उत्पादन संयंत्र (Automatic Jeevamrit Production Plant) का निर्माण किया, जिससे हर महीने 5000 लीटर तक जीवामृत खाद को बनाया जा सकता है. उनके इस एक कदम से खेती की लागत में 60 से 70% तक कमी आई और उत्पादन में 25 से 30% तक वृद्धि हो रही है. किसान संजय अनंत पाटिल के अनुसार, वह इस प्लांट की मदद से सालाना करीब 3 लाख रुपये की बचत कर रहे हैं.
जल संरक्षण के लिए बनाएं तालाब
किसान संजय के लिए पानी की कमी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी थी, साथ ही मानसून खत्म होने के बाद उनकी परेशानी और बढ़ जाती थी. उन्होंने अपने खेत के आस-पास तालाब बनाने का विचार बनाया. किसान ने पहाड़ी में 125 फीट लंबी सुरंग खोदी और जल संरक्षण के लिए कई तालाब बनाएं.
इन तालाबों में हर साल लगभग 15 लाख लीटर पानी को इकट्ठा किया जा सकता है, जिससे खेतों में साल भर पानी की आपूर्ति होती रहती है. यह सब बिना किसी अतिरिक्त ऊर्जा के यानी शून्य-ऊर्जा सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का उपयोग करते हुए होता है.
प्राकृतिक खेती किसान को बनाती है आत्मनिर्भर
प्रगतिशील किसान संजय अनंत पाटिल ने बताया कि, पहले वे खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया करते थे, लेकिन इससे उनकी आर्थिक स्थिती कमजोर हो रही थी. फिर उन्होंने खेती के लिए पूरी तरह से प्राकृतिक तकनीकों को अपनाया और वे भारत के सभी किसानों के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरे हैं. किसान संजय का खेत गोवा के सवोई वेरेम में है, जो प्राकृतिक खेती की शक्ति को दर्शाता है. उनका कहना है कि, रासायनिक खेती से केवल कंपनियों को अधिक फायदा होता है, जबकि प्राकृतिक खेती से किसान को फायदा होता है और वे आत्मनिर्भर भी बनते हैं. किसान का मानना है पूरी तरह से प्राकृतिक खेती को अपनाने में 5 साल लगते हैं, लेकिन इसके बाद लाभदायक परिणाम मिलने शुरू हो जाते हैं.
युवा किसानों के लिए संदेश
किसान संजय अनंत पाटिल युवा किसानों से पारंपरिक और स्थायी कृषि पद्धतियों के साथ खेती करने पर जोर देते हैं. उनका मानना है कि शिक्षा में सुधार करके खेती को एक आदर्श और सम्मानजनक व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है. किसान का जीवामृत का प्रयोग, मिट्टी और फसलों के स्वास्थ्य को सुधारने का बेहतरीन तरीका है, जिससे उनकी टिकाऊ खेती के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दिखाई देती है.