Success Story of Progressive Farmer Darvesh Patter: प्रगतिशील किसान दरवेश पटर, जो हरियाणा राज्य के हिसार जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं, उनकी सफलता की कहानी न केवल उनकी मेहनत और संकल्प की मिसाल है, बल्कि यह उस बदलाव की भी कहानी है, जो किसानों को अपनी पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा कमाने की दिशा में ला सकता है. पहले वे पारंपरिक तरीकों से खेती करते थे, जिसमें धान, गेहूं और कुछ अन्य मौसमी फसलें शामिल थीं. हालांकि, उन्होंने देखा कि पारंपरिक खेती में बहुत मेहनत लगती थी, लेकिन मुनाफा उतना नहीं मिलता था. फसल की गुणवत्ता भी हमेशा समान नहीं रहती थी, और बहुत बार कीटों और रोगों के कारण उपज खराब हो जाती थी.
इससे निराश होकर, वे लगातार यह सोचते रहते थे कि क्या कोई तरीका है जिससे खेती से ज्यादा फायदा कमाया जा सकता है. इसी सोच ने उन्हें नए विचारों की ओर आकर्षित किया और उन्होंने अपने खेतों में कुछ नया करने का फैसला लिया. आज दरवेश पटर सिर्फ 1 एकड़ ज़मीन में इन्सेक्ट नेट हाउस लगाकर सालाना 15 लाख रुपये का मुनाफा आसानी से कमा रहे हैं और उनका सालाना टर्नओवर लगभग 60-70 लाख रुपये है. आइए अब उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
पारंपरिक खेती से आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाना
उन्होंने कृषि में आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की, जिससे खेती में सुधार हो सके और वे बेहतर मुनाफा कमा सकें. इस यात्रा की शुरुआत दरवेश पटर के लिए एक बदलाव के रूप में हुई, जिसने उन्हें सिर्फ अपनी खुद की जिंदगी में नहीं, बल्कि उनके जैसे कई किसानों के लिए भी एक नई उम्मीद दी.
नई तकनीकों की ओर ध्यान देना
2018 में प्रगतिशील किसान दरवेश पटर ने इंडो-इज़रायल सेंटर से प्रोटेक्टेड फार्मिंग (संरक्षित खेती) की ट्रेनिंग ली. इस प्रशिक्षण के दौरान उन्हें समझ में आया कि यदि खेती में नए तरीके अपनाए जाएं, तो कृषि को एक नई दिशा दी जा सकती है. प्रोटेक्टेड फार्मिंग का मतलब है ऐसी खेती, जिसमें पौधों को प्राकृतिक खतरों से बचाने के लिए संरक्षित वातावरण तैयार किया जाता है.
इन्सेक्ट नेट हाउस का निर्माण
प्रगतिशील किसान दरवेश पटर ने 1 एकड़ ज़मीन में इन्सेक्ट नेट हाउस लगाने का फैसला किया, जो फिलहाल दो एकड़ में है. यह तकनीक एक प्रकार का संरक्षित खेती का तरीका है. इसमें एक प्रकार का जाल (नेट) लगाया जाता है, जो कीटों और अन्य रोगों को फसलों से दूर रखता है. इस हाउस में हवा और बारिश का पानी आ सकता है, लेकिन कीट अंदर नहीं घुस पाते. यह तकनीक पॉलीहाउस से अलग है क्योंकि इसमें प्राकृतिक संसाधनों का भी पूरा उपयोग होता है.
प्रगतिशील किसान ने बताया कि इस तकनीक से फसलें ज्यादा अच्छी होती हैं. खुले खेतों में जहां 10-15% फसल खराब हो जाती है, वहीं इन्सेक्ट नेट हाउस में लगभग 98% फसल की गुणवत्ता अच्छी रहती है. इसके अलावा, यहां उत्पादन भी 4 गुना ज्यादा होता है.
कृषि की लागत और सरकार की मदद
इन्सेक्ट नेट हाउस की स्थापना में शुरुआती लागत अधिक होती है. एक एकड़ में इस हाउस का निर्माण करने के लिए सब्सिडी की राशि हटाकर करीब 10-12 लाख रुपये खर्च आता है. गौरतलब है कि कुल राशि पर सरकार किसानों को 65% सब्सिडी देती है, जिससे किसान की लागत कम हो जाती है. इस तकनीक को एक बार स्थापित करने के बाद, इन्सेक्ट नेट हाउस का ढांचा लगभग 20 साल तक चलता है. हालांकि, नेट की उम्र 7 साल होती है, जिसे 1.5-2 लाख रुपये में बदलवाया जा सकता है, और उस पर भी सरकार मदद देती है.
उत्पादन की बढ़ोतरी और मुनाफा
प्रगतिशील किसान दरवेश पटर ने बताया कि इन्सेक्ट नेट हाउस में उन्होंने खीरे की खेती शुरू की. इस तकनीक में खीरे के पौधे 40-42 दिनों में तैयार हो जाते हैं. 1 एकड़ में 10,000 खीरे के पौधे लगाए जाते हैं. इन पौधों की बुवाई में शुरूआती लागत लगभग 90,000 से 1 लाख रुपये आती है, और अन्य खर्चों (खाद, मजदूरी) का खर्च करीब 1.25 लाख रुपये तक होता है. जब खीरे की फसल तैयार होती है, तो एक सीजन में लगभग 15 लाख रुपये तक खीरे की बिक्री होती है, और साल में दो सीजन में खीरे की खेती होती है. सभी खर्चों यानी खाद, मजदूरी और परिवहन लागत आदि को निकालने के बाद, एक सीजन में करीब 8-9 लाख रुपये का मुनाफा आसानी से हो जाता है.
उन्होंने आगे बताया कि रबी सीजन में उत्पादन थोड़ी कम होती है, लेकिन कीमत अच्छी मिलती है, जिससे मुनाफा फिर भी अच्छा होता है. इस प्रकार, एक साल में 1 एकड़ इन्सेक्ट नेट हाउस में खीरे की खेती दो बार करने से लगभग 12-15 लाख रुपये का मुनाफा आसानी से हो जाता है. फिलहाल वह दो एकड़ में इन्सेक्ट नेट हाउस में खेती कर रहे हैं.
अन्य फसलों की खेती और विविधता
प्रगतिशील किसान दरवेश पटर ने केवल खीरे की खेती ही नहीं की, बल्कि उन्होंने अपनी ज़मीन पर अन्य फसलों की भी बागवानी शुरू की. उनके पास कुल 12 एकड़ ज़मीन है, जिसमें उन्होंने अमरूद, नींबू, माल्टा और किन्नू की बागवानी भी की है. वे इन फसलों से भी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. इसके अलावा, उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम भी शुरू किया है. वर्मी कम्पोस्ट एक बेहतरीन जैविक खाद है, जो मृदा की गुणवत्ता को बढ़ाता है और फसलों की उत्पादकता को भी बढ़ाता है. दरवेश पटर पौधों की नर्सरी भी तैयार करते हैं, जहां से वे स्वस्थ पौधे बेचते हैं. इस प्रकार, वे कृषि से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं.
पशुपालन का भी हिस्सा
दरवेश पटर के पास 12 पशु भी हैं. वे इनका सही तरीके से पालन-पोषण करते हैं. पशुपालन भी उनके लिए एक अतिरिक्त आय का स्रोत बन चुका है. वे इन पशुओं से दूध, गोबर और अन्य उप उत्पाद प्राप्त करते हैं, जो खेती में सहायक होते हैं और अतिरिक्त आय भी देते हैं.
सालाना टर्नओवर और सफलता की कहानी
दरवेश पटर का सालाना टर्नओवर लगभग 60-70 लाख रुपये है. उनकी मेहनत और तकनीकी समझ ने उन्हें खेती में एक नया मुकाम दिलवाया है. उनकी यह सफलता इस बात को सिद्ध करती है कि अगर किसान मेहनत करें और सही तकनीक अपनाएं, तो वे खेती से बहुत अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. दरवेश पटर की सफलता की कहानी यह भी बताती है कि अगर हम बदलाव को स्वीकार करें और नई तकनीकों को अपनाएं, तो कृषि क्षेत्र में भी बहुत कुछ बदल सकता है.