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Updated on: 2 September, 2022 12:27 PM IST
पद्मश्री से सम्मानित किसान चाची

समाज में जहां एक ओर महिलाओं को घरेलू काम-काज करने के लिए कहा जाता है, तो वहीं दूसरी ओर पद्मश्री चाची के नाम से मशहूर बिहार की इस महिला ने खुद का नाम रोशन किया है, साथ ही दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया है. ऐसे में आज के इस लेख में हम आपको इनकी कहानी पूरी डिटेल में बताने जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं. समाज की पुरुषवादी सोच को धता बताते हुए और परंपराओं की बेड़ियों को तोड़ने वाली महिलाओं ने ही दुनिया की सभी महिलाओं को सश्कत और मजबूत किया है. ऐसी कई महिलाओं के उदाहरण हमारे बीच में मौजूद हैं.

इसी तरह एक महिला के परिश्रम करने की कहानी आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं. जिन्होंने अपनी मेहनत से समाज में एक अलग पहचान बनाई है.

दरअसल,  ये कहानी है बिहार की रहने वाली पद्म श्री राजकुमारी देवी की है. देश में लोग इन्हें ‘किसान चाची’ के नाम से जानते हैं, ये अब 66 साल की हो चुकी हैं, लेकिन अभी इनका काम करने का जुनून वही है, जो कि पहले हुआ करता था. ये मूल रूप से मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड के आनंदपुर गांव की रहने वाली हैं, इन्होंने अपनी खुद की मेहनत से अचार का बिजनेस खड़ा किया है. ये अपने काम की वजह से कई महिलाओं की प्रेरणा बन चुकी हैं. इसके अलावा इन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं, लेकिन इनकी सफलता के पीछे 18 साल की मेहनत है.

1990 में हुई थी इनके संघर्ष की शुरुआत

राजकुमारी देवी  का कहना है कि उनके संघर्ष की शुरुआत 1990 के दौर में हुई थी. उनका कहना है कि शादी के 10 साल तक बच्चे न होने कारण लोग ताने दिया करते थे, लेकिन जब हमारे बच्चे हुए तो परिवार में बंटवारा हो चुका था, जिसके चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी. उस समय में एक कहावत चलती थी ‘ खेती करें तरकारी वर्ना नौकरी करें सरकारी.’ इसलिए सब्जी उगाकर बेचने का फैसला किया जिसमें पति भी साथ दिया करते थे.

अचार के व्यापार की इस तरीके से हुई शुरुआत

राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची का कहना है कि शुरुआत में जब हम सब्जी उगाया करते थे, उस समय ब्लॉक स्तर पर सब्जी के लिए प्रदर्शनी लगती थी, जिसमें हमने कई बार भाग लिया और कई बार पुरस्कार भी मिले. ऐसे करते करते उन्हें ख्याति मिलने लगी. उसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र की मेंबर बन गईं. हमने फलों की भी खेती की और उसमें भी प्रदर्शनी मेलों में कई पुरस्कार जीते. वे कहती हैं कि साल 2002 में विज्ञान केंद्र से फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग करने गई थी, जहां पर उन्होंने अचार, मुरब्बा आदि कई प्रकार की चीजें बनाना सीखा, जिसके बाद अचार बनाना शुरु कर दिया, लेकिन अचार बनाने के बाद बाजार तक पहुंचाने की दिक्कत आती थी, जिसके लिए साइकिल चलाना सीखी और खुद जाकर अचार बेचा.

खेती की ट्रेनिंग भी देती थी

किसान चाची बताती हैं कि वह जैविक खेती करते थे, साथ ही कई प्रदर्शनी के कार्यक्रम भी जाया करते थे, जिसके चलते दूसरे गांव के लोगों ने महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए कहा. उसके बाद 10 -10 महिलाओं के समूह बनाकर उन्हें काम सिखाना शुरू किया और सबको कृषि विज्ञान केंद्र में भी ट्रेनिंग दिलवाई. महिलाओं को कई प्रकार के काम सिखाए जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन इत्यादि. ट्रेनिंग लेने के बाद इन महिलाओं के आर्थिक स्तर में काफी सुधार हुआ.

काम में परिवार ने कितना दिया साथ

उनका कहना है कि शुरुआती दिनों में पति और बेटे दोनों किसी ने साथ नहीं दिया, लेकिन किसी की नहीं सुनी अपना काम करती रहीं. शुरुआती दिनों में लोग ताने दिया करने थे, लेकिन बाद में धीरे- धारे घर के लोग साथ देने लगे.

पद्मश्री से  सम्मानित हैं किसान चाची

राजकुमारी देवी के काम की सराहना सभी लोग करते हैं, साथ में अलग-अलग राज्य सरकारों ने भी की उन्हें अभी तक कई पुरस्कारों से सम्मानित किया है. उनका कहना है कि साल 2003 में अंतरराष्ट्रीय कृषि मेले में उन्हें पुरस्कार मिला था. उसके बाद उन्हें कई कृषि मंत्री पुरस्कार मिल चुके हैं. गुजरात में प्रधानमंत्री भी उन्हें पुरस्कार दे चुके हैं. साल 2019 में 11 मार्च को उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

English Summary: Story of 'Kisan Chachi', who sells pickles on a bicycle and cultivates
Published on: 02 September 2022, 12:35 PM IST

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