सब्र अपनी सवारी को कभी गिरने नहीं देता बल्कि समय के साथ उसे और सफल बना देता है. इसका जीता-जागता उदाहरण राजस्थान के किसान कैलाश चौधरी (Rajasthan Farmer Kailash Chaudhary) है. यह जैविक खेती का अभ्यास साल 2000 से कर रहे हैं और आंवले की खेती (Amla Farming) में भी इन्होंने इसी तकनीक को अपनाया हुआ है.
कैसे की जैविक खेती की शुरुआत (How to start organic farming)
चौधरी को सबसे पहले एक कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से जैविक खेती के बारे में पता चला था. वहां उन्होंने जाना कि जैविक खेती (Organic Farming) कोई नई बात नहीं है. प्राचीन काल में जब रसायन नहीं थे, तब भी किसान खेती करते थे. इन सदियों पुराने तरीकों में नए शोध निष्कर्षों को जोड़ना समय की मांग थी. इस ज्ञान से प्रेरित होकर और कुछ नया करने की चाह के साथ, चौधरी ने जैविक खेती की ओर पहला कदम बढ़ाया. उन्होंने धीरे-धीरे इन तकनीकों को अपनी खेती में शामिल करना शुरू कर दिया. कैलाश चौधरी का कहना है कि खेती को स्विच बटन नहीं है जिसे एक बार में स्विच किया जा सके. यह एक तरह की प्रक्रिया है जिसे धीरे-धीरे अपनाया जाता है.
किसान हरी खाद का करें इस्तेमाल (Farmer should use green manure)
चौधरी बताते हैं कि जिन फसलों को भारी मात्रा में नाइट्रोजन (Nitrogen) की आवश्यकता नहीं होती है, वे जैविक खेती के माध्यम से आसानी से उगाई जा सकती हैं. इनका सुझाव है कि गेहूं, बाजरा और मक्का जैसी फसलों को, जिन्हें नाइट्रोजन की बहुत आवश्यकता होती है, किसानों द्वारा छोटे पैमाने पर उत्पादन किया जाना चाहिए, इन्होंने आगे कहा कि उनके लिए ऐसे किसान हरी खाद (Hari Khad) का उपयोग कर सकते हैं. और इसके दो या तीन साल बाद किसान को इस बात की बेहतर समझ होगी कि क्या उगाना है और कितना.
इलाज से बेहतर है रोकथाम (Prevention is better than cure)
चौधरी कहते हैं कि एक किसान को फसल से संबंधित बीमारियों के प्रकार, उनके होने का समय और उनसे बचने के लिए बचाव के तरीकों का पूरा ज्ञान होना चाहिए. बता दें कि यह समय-समय पर खेतों में नीम और गोमूत्र के छिड़काव का भी इस्तेमाल करते हैं. चौधरी का यह मानना है कि "रोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर है और सभी किसानों को अपनी फसलों के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए और खेती को अपनी पहली प्राथमिकता बनानी चाहिए.
बिचौलियों का कैसे करें पत्ता साफ (How to clear the address of middlemen)
चौधरी का मानना है कि किसानों को अपनी फसल की मार्केटिंग सीधे ग्राहकों को करनी चाहिए. यह प्रभावी रूप से बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करता है और उन्हें अधिक लाभ अर्जित करता है. यह किसानों और उनके ग्राहकों के बीच विश्वास बनाने में भी मदद करता है.
चौधरी की शुरुआती चुनौतियां (Choudhary's early challenges)
चौधरी ने 1998 में भारतीय आंवले की खेती (Indian Gooseberry Farming) शुरू की. यह बताते हैं कि इन दिनों हमारे आसपास के इलाकों में बागवानी का चलन हुआ करता था. ऐसे में आंवले की खेती के समय अनुभव की कमी के कारण शुरुआत में झटके लगे. फिर जाकर चौथे वर्ष में पौधे फल देने लगे. ऐसी उपज से उत्साहित इनके भाई ने कच्चे फलों को तोड़कर बाजार में बेचने का फैसला किया.
जिसपर चौधरी का कहना है कि ''यह एक रुपये में भी नहीं बिका. इससे उनके घर में मातम का माहौल सा बन गया. जिसके बाद निराश होकर, इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया. उन्होंने चौधरी को पास के एक गाँव का दौरा करने और यह देखने की सलाह दी कि वहां आंवले का उत्पादन और विपणन (Amla production and marketing) कैसे किया जाता है.
गांव के दौरे ने बदल दी ज़िंदगी (Village tour changed life)
चौधरी ने देखा कि वहां के किसानों ने फलों को अचार, जूस, कैंडी और मुरब्बा जैसे विभिन्न उत्पादों में बदल दिया था. आगे गांव में, उन्होंने देखा कि कैसे महिलाएं इन्हें मिट्टी के चूल्हों पर तैयार कर रही थीं. इन्होंने एक सप्ताह तक सब कुछ देखा और फिर एक विश्वसनीय व्यक्ति के साथ अपने गांव के लिए निकल पड़े, जिसे इन प्रक्रियाओं का ज्ञान था. घर वापस आकर, उसने जो कुछ भी सीखा और देखा, उसे अमल में लाया. इस प्रकार उनकी लंबी और सफल यात्रा शुरू हुई.
2004 में, उन्होंने आंवले को फिर से उगाने और विपणन करने का प्रयास किया. वह फिर से पूरी उपज बेचने में असमर्थ था क्योंकि वह जिस समुदाय में रहता था वह बहुत छोटा था. चौधरी कृषि विभाग में लौट आए और उनसे फलों के विपणन के बारे में पूछताछ की. फिर उन्हें एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा एक सरकारी भवन में एक स्टॉल लगाने और वहां बिक्री शुरू करने का निर्देश दिया गया. यह विचार एक बड़ी सफलता साबित हुई और इसने उन्हें बड़े अवसर, पुरस्कार और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया.
रची सफलता की नई मिसाल (New example of success created)
कैलाश चौधरी ने अबतक लगभग 5000 से ज़्यादा किसानों की ज़िंदगी को बदला है. इसमें उनकी मदद केवीके ने की जहां और यह दिशा निर्देश भी दिए की आंवले को प्रोसेस किए बिना बेच पाना थोड़ा कठिन है. यदि आंवले की प्रोसेसिंग (Processing of Amla) की जाती है तो इसके प्रोडक्ट्स को अच्छे दामों पर बेचा जा सकता है.
आंवले के व्यंजनों को सोखने और उन्हें प्रदर्शित करने में काफी समय व्यतीत करने के बाद इन्होंने विपणन से संबंधित समस्याओं का समाधान किया. फिर चौधरी ने एक कदम आगे बढ़ाया और अपना खुद का ब्रांड और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स स्थापित किया. बता दें कि किसान कैलाश चौधरी के ब्रांड का नाम वेदांता है और इनको अपने इलाके में "रूरल मार्केटिंग गुरु" के रूप में जाना जाता है.
चौधरी की कहानी उनकी जुबानी (Chaudhary's story in his own words)
चौधरी एक प्रगतिशील किसान हैं जो मानते हैं कि सीखने की कोई उम्र सीमा नहीं है. यह कहते हैं कि "मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूं और फिर भी मैंने खेती और मार्केटिंग को लेकर नई चीज़ें सीखी हैं, इसलिए कोई भी ऐसा कर सकता है. यह सब दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति से ही संभव है.