आज कल हर कोई एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहता है. व्यक्ति सरकारी नौकरी व निजी संस्थानों पर एक बढ़िया नौकरी के लिए क्या कुछ नहीं करता हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसे एक कहानी के बारे में बताएंगे. जिन्होंने अपनी बैंक की नौकरी छोड़कर हर अब लाखों रुपए कमा रहे है.
तो आइए जानते हैं...
छत्तीसगढ़ के रहने वाले राजराम त्रिपाठी आज के समय में एक सफल किसान है. यह अपनी खेती के तरीकों में पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते है. जिससे किसी भी चीज को कोई नुकसान नहीं पहुंचता हैं. उसके इस तरीकों की गई खेती के कारण उसे कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. ये ही नहीं डॉ. राजाराम त्रिपाठी को भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने उनकी मेहनत व तरीकों को देखते हुए उन्हें मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड का मेंबर भी बनाया है.
डॉ. राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि उन्हे खेती करते हुए करीब 25 साल हो चुके हैं. पहले वह बैंक में नौकरी करते थे. वर्तमान समय में राजाराम त्रिपाठी काली मिर्च, स्टीविया के साथ ही अब काले चावल खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन का निर्माण (Creation of Central Herbal Agro Marketing Federation)
डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने खुद हर्बल प्लांट्स की खेती करते हैं बल्कि वह आज अपने आस-पास के कई इलाकों के किसानों को भी इसकी खेती करने के लिए प्रेरित करते रहते है. उनकी मेहतन के कारण आज कई किसान उनके साथ जुड़कर जड़ी-बूटियों और मसालों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे है.
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आपको बता दें कि राजाराम त्रिपाठी किसानों के प्रति बहुत सजग रहते है. इसलिए उन्हें जितना भी समय मिलता है. किसानों की मदद के लिए तैयार रहते है. इसी बीच राजाराम त्रिपाठी ने किसानों को व्यापारियों के जाल से बचाने के लिए अपनी एक संस्था का भी निर्माण किया है. जो सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन के नाम से है. इस फेडरेशन करीब 22000 किसान जुड़े हुए है और अपनी फसल को अच्छा दाम पर बेच कर मुनाफा कमा रहे हैं.
ऑर्गेनिक फार्मिंग में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम (India's share in organic farming is very low)
डॉ. राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि हमारे देश में जितना हर्बल और मसालों की खेती का विकास होना चाहिए, उतना नहीं हो पाता है. वह यह भी बताते है कि विश्व में ऑर्गेनिक फार्मिंग का बाजार का लगभग 60 खरब डॉलर तक है. लेकिन दुख की बात यह है कि इस ऑर्गेनिक फार्मिंग में भारत की हिस्सेदारी बहुत ही कम है. भारत के पास जितनी जैव विविधता है. शायद ही किसी देश के पास होगी. फिर भी हमारा देश इस दिशा में पीछे है और वहीं औषधीय पौधों के निर्यात से लेकर जैव विविधता में अन्य कई देश भारत से बहुत आगे हैं.