सफलता उसी काम में मिलती है जिसको हम मन लगाकर करते हैं. उसी में हमें सफलता मिलती है. हम अपने आप सफल हो जाते हैं तो एक संतुष्टी हमें मिल जाती है. लेकिन इस काम में और भी अधिक सुकून मिलता है, कुछ ऐसा ही काम कर रही है, एक 24 वर्षीय लड़की जो पेशे से इंजीनियर है. जिन्होंने अपनी अच्छो खासी नौकरी कोई छोड़ किसानों को मार्गदर्शन करना बेहतर समझा. पेशे से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर, 24 साल की हर्षिता प्रकाश को जब यह समझ आया कि इंजीनियरिंग वो काम नहीं है जो उनके दिल को सुकून दे, उससे पहले तक वह आईटी सेक्टर में ही नौकरी करती थीं, लेकिन कही न कही उनका मन बेचैन था कुछ अलग करने के लिए. इसलिए उन्होंने समाज सेवा को चुना.
हर्षिता महाराष्ट्र के बीड ज़िले के डुनकवाड़ गाँव के किसानों को बिना किसी खर्च के प्राकृतिक तरीके से खेती करना सिखा रही हैं. उनका उद्देश्य शून्य बजट में प्राकृतिक कृषि के जरिए छोटे पैमाने के किसानों को सशक्त बनाना है जिससे वे बाहरी संसाधनों पर अपनी निर्भरता कम करके उत्पादन को बढ़ा सकें. हर्षिता का उद्देश्य वहां के किसानों के लिए एक ऐसा बाज़ार बनाना भी है जहां वे अपने उत्पाद सीधा बेच सकें.हर्षिता कहती है कि बीड ज़िले के इन किसानों से बात करने के बाद मुझे पता चला कि पिछले कुछ सालों से यह सूखा प्रभावित क्षेत्र था लेकिन पिछले साल हुई तेज़ बारिश और तूफान ने यहां के किसानों की समस्या और भी ज़्यादा बढ़ा दी. एक साल में ही लगभग 450 किसानों ने आत्महत्या कर ली और बहुत से किसानों ने बेहतर जीवन की तलाश में शहरों को पलायन कर लिया.
हर्षिता ने अपने समाज सेवा के जज्बे को साकार रूप देने के लिए एसबीआई यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप में आवेदन दिया. 13 महीने तक चलने वाला यह कार्यक्रम भारत के युवाओं को मौका देता है कि वह ग्रामीण विकास से जुड़े काम कर सकें. समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए हर्षिता ने ज़िले के लगभग 20 गाँवों का दौरा किया और जितने ज़्यादा किसानों से वह बात कर सकती थीं, उन्होंने की. इन किसानों से बात करके हर्षिता को समझ आया कि उनके नुकसान की सबसे बड़ी वजह है खेती में ज़रूरत से ज़्यादा रसायनों का इस्तेमाल करना. यहां के किसान सोचते हैं कि बिना कैमिकल्स के कोई भी फसल नहीं उगाई जा सकती.
वह कहती हैं कि उनकी इस सोच को बदलना बहुत मुश्किल था. लेकिन किसानों को रसायनों की और से जैविक की और ले जाना थोडा मुश्किल था इसलिए किसानों को समझाने के लिए उन्होंने कृषि कृषि अधिकारी से मुलाकात की जिनसे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि वे गांवों में जैविक खेती को बढ़ावा दे सकते हैं लेकिन क्योंकि इसमें ज़्यादातर किसानों का भरोसा नहीं था इसलिए उन्हें इसके बारे में समझाना बहुत मुश्किल था. हर्षिता को कुछ किसानों ने बताया कि वे जैविक तरीके से खेती करना चाहते हैं लेकिन उनके अंदर आत्मविश्वास नहीं है और कोई मदद करने वाला भी नहीं है. अंत में हर्षिता ने 400 परिवारों वाले दुनकवाड़ गाँव में काम करने का फैसला किया. जहां उन्होंने देखा कि जैविक खेती के प्रति किसानों को नज़रिया सही है और वे इसके लिए उत्साहित भी हैं.
इसके बाद हर्षिता ने कर्नाटक में सुभाष पालेकर की जीरो बजट खेती की ट्रेनिंग ली. सुभाष पालेकर जाने-माने कृषि विशेषज्ञ है . जिन्होंने जीरो बजट खेती की शुरुआत की थी. देश के कई राज्यों में वो किसानों को जीरो बजट खेती की तकनीक सिखा रहे हैं. हालांकि हर्षिता को किसानों को समझाने में थोड़ी परेशानी हुई. वो कहती हैं कि मुझे यह समझ में आ गया कि अगर आप वाकई कुछ उगाना चाहते हैं तो आपको किसी भी तरह के कैमिकल्स की ज़रूरत नहीं है. आपको सिर्फ प्रकृति को समझना है और यह पता लगाना है कि कौन सी चीज़ का इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है, जैसे हमारे पूर्वज करते थे. प्राकृतिक खेती मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाती है और लागत भी कम करती है.
जो किसान प्राकृतिक खेती के लिए तैयार नहीं थे उन किसानों को हर्षिता ने समझाया कि अगर उनके पास 5 एकड़ खेत है तो वे आधे एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती करके देख सकते हैं कि इसका कितना फायदा है. वह बताती हैं कि दुनकवाड़ गाँव के ज़्यादातर किसान प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से छोड़ चुके थे लेकिन अब इसमें उनका विश्वास दोबारा जाग रहा है. हर्षिता कड़ी मेहनत के बाद अब इस गाँव के कुछ किसानों ने प्राकृतिक तरीके से खेती करना शुरू कर दिया है. अच्छी बात यह है कि इन किसानों में से पहली किसान एक महिला है जिससे हर्षिता के साथ इसी साल के जनवरी महीने से काम करना शुरू किया है. अब तक उसने अपने क्षेत्र में सब्जियों और गन्ना दोनों के उत्पादन में वृद्धि देखी है. इससे प्राकृतिक खेती में उसका विश्वास मजबूत हुआ और वह अब अन्य ग्रामीणों को इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. हाल ही में हर्षिता ने किसानों को उनके उत्पाद बेचने के लिए एक छोटा बाज़ार भी संयोजित किया है.
वह चाहती है कि आस-पास के शहरों के लोगों को इस बात की जानकारी हो कि इस गाँव में आकर वे ताज़ी सब्ज़ियां कम दाम में खरीद सकते हैं ताकि किसानों को भी फायदा मिले और ग्राहक को भी. बाजार के एक सप्ताह बाद, कई ग्राहक वापस इस बाज़ार में आए क्योंकि उन्हें प्राकृतिक तरीके से उगाई गई सब्ज़ियां ज़्यादा पसंद आ रही थीं. हर्षिता को उम्मीद है कि इस गाँव के किसान अब उनकी बात समझेंगे और प्राकृतिक खेती को पूरी तरह अपनाएंगे. हर्षिता की कड़ी मेहनत से इन किसानों के जीवन में एक नया रंग आया. उसके इस प्रयास से किसानो को फायदा मिल रहा है और जैविक खेती के प्रति उनका रुझान भी बढ़ा है