अपनी हैल्थ से ज्यादा माता-पिता को अपने बच्चो के स्वस्थ्य की चिंता होती है लेकिन सरकार द्वारा चलाए जाने वाले टीकाकरण की सुविधाए आसानी से इन लोगो तक नहीं पहुँच पाते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की रहने वाली हैल्थ वर्कर गीता वर्मा ऐसी ही एक महिला हैं, जो टीकाकरण के इस अभियान को गाँवों की गलियों तक पहुंचा रही हैं. उनके इस काम की बदौलत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 के कैलेंडर में उन्हें सम्मिलित किया है. गीता मूल रूप से करसोंग तहसील के सपनोट गांव से ताल्लुक रखती हैं. उन्होंने अपने इलाके में पूरी तरीके से खसरा और रूबेला जैसी बीमारियों के बचाव के लिए वैक्सिनेशन को अंजाम दिया. जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपने क्षेत्र को टीकाकरण सुविधा पूरी तरह से उपलब्ध करा रही है.
भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के सदस्य देशों के साथ वर्ष 2020 तक खसरा और रूबेला/वंशानुगत खसरा लक्षण (सीआरएस) को समाप्त करने का संकल्प व्यक्त किया है.
आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपने मुकाम स्थापित कर रही हैं और कई क्षेत्रों में तो पुरुषों को भी पीछे छोड़ दे रही हैं. अक्सर हमारे समाज में महिलाओं को घर की चारदीवारी के भीतर कैद कर दिया जाता है. लेकिन किसी महिला के दिमाग में कुछ कर गुजरने का जूनून एक बार सवार हो जाता है तो वो साभी बेदिया तोडकर अपनी मंजिल को पाने के रास्ते पर चल पड़ती है. हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की रहने वाली हेल्थ वर्कर गीता वर्मा ऐसी ही एक महिला हैं जिन्हें उनके काम की बदौलत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 के कैलेंडर में सम्मिलित किया है. मूल रूप से करसोंग तहसील के सपनोट गांव ताल्लुक रखने वाली गीता भी एक जुनूनी लड़की है. उन्होंने अपने इलाके में पूरी तरीके से खसरा और रूबेला जैसी बीमारियों के बचाव के लिए वैक्सिनेशन को अंजाम दिया.
मंडी जिले के ही झांझेली ब्लॉक में शकरढेरा उपकेंद्र में तैनात गीता वर्मा ने मंडी जिले के दूर गांव के बच्चों को भी स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होने इसके लिए जमीनी स्तर पर काम किया . इसी का नतीजा है की विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उनको अपने वर्ष 2018 के कैलेंडर में सम्मानित किया. वह टीकाकरण के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में मोटर साईकल के जरिए दुर्गम इलाकों में पहुँचती हैं.