देश के विभिन्न राज्यों में किसान खेती में एक अलग-अलग मिसाल कायम कर रहे हैं. इसी बीच झारखंड से एक खबर सामने आई है. यहां रांची के गुमला जिले के नक्सल प्रभावित इलाके बानालात के किसानों की जिंदगी संवर रही है. यहां किसान बासमती धान की किस्म 'काला जीरा' की खेती कर रहे हैं.
इससे दर्जनों किसान परिवारों की जिंदगी महक रही है. बता दें कि यहां किसान पर्यावरण को ध्यान में रखकर खेती कर रहे हैं और रासायनिक खाद का उपयोग न करके जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. विकास भारती द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक के प्रयास से पिछले साल शुरू की गई सामूहिक खेती रंग लाती दिखाई दे रही है.
बासमती चावल से हो रही अच्छी आमदनी (Good income from basmati rice)
अब किसान बासमती चावल को काफी अच्छी कीमत में बेच रहे हैं. इससे उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो रही है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह किसानों को स्वावलंबी बनाना है और लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाने से रोकना है. किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा धान से चावल निकालने तक की व्यवस्था दी जा रही है. इसके साथ ही बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है.
किसानों को मिल रही दोगुनी कीमत (Farmers getting double price)
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बानालात के किसान पहले मोटी धान और गेहूं की खेती करते थे. इसमें इतनी अच्छी आमदनी नहीं मिलती थी. फिर पता चला कि इस इलाके में काला जीरा और जीरा फुल धान की खेती भी होती थी. मगर किसी कारण उसका बीज उपलब्ध हो पा रहा था. कई गांवों में घूमने के बाद बीज मिला. पिछले साल लगभग 56 किसानों के साथ 25 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती करना शुरू किया.
अच्छा मिला उत्पादन (Good production)
इस किस्म से लगभग 200 क्विंटल धान का उत्पादन भी हुआ, तो वहीं इस साल लगभग 400 क्विंटल से अधिक का उत्पादन हुआ है. किसानों से 3500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदा गया है. अगर किसान खुद से धान को बेचते हैं तो शायद उन्हें 2000 से 2500 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक मूल्य नहीं मिलता.
आपको बता दें कि धान से चावल निकालने के बाद उसकी प्रोसेसिंग कर बाजार में उतारने की तैयारी कर ली गई है. किसानों का कहना है कि इस खेती से बहुत अधिक लाभ मिल रहा है. इससे परिवारों की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है. नए कृषि कानून को लेकर किसानों का कहना है कि यह अधिक लाभदायक है. इससे किसान अपनी उपज को कहीं भी ले जाकर बेच सकते हैं.
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बासमती धान की यह किस्म विलुप्त हो रही थी, लेकिन फिर उस किस्म को जीवित रखने का काम किया गया है. धान की इस किस्म में पानी की अधिक जरूरत होती है, इसलिए इसकी खेती घाघरा नदी के किनारे करवाई गई है, तो वहीं किसानों को पंपसेट भी उपलब्ध कराए गए.