प्लास्टिक यह एक ऐसा पदार्थ है जो कि हजारों सालों तक पड़ा रहता है अन्य पदार्थों की तरह विघटित नहीं होता है। प्लास्टिक का निर्माण मानव सुविधा के लिए किया गया था, लेकिन अब यही प्लास्टिक मानव जीवन के साथ–साथ पृथ्वी एवं वातावरण के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है।
हमारे देश में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है। जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। प्लास्टिक का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में फैला हुआ है। प्लास्टिक को बनाने के लिए कई जहरीले केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके कारण यह जहां भी पड़ा रहता है धीरे-धीरे वहां पर बीमारियों एवं प्रदूषण को जन्म देता है। प्लास्टिक मानव को जितनी सहूलियत प्रदान करता है उतनी ही बीमारियां भी फैलाता है, प्लास्टिक की बोतल से बार-बार पानी पीने पर उसमें कई जहरीले पदार्थ घुलने लगते हैं और इससे कैंसर जैसी भयानक बीमारियां भी हो सकती हैं। प्लास्टिक आज के समय में हमारे दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। प्लास्टिक एक धीमे जहर का काम करता है। आज के समय में हम चारों तरफ से प्रदूषण से घिरे हुए हैं। प्रदूषण के कारण तो अनेक हैं, इनमें से एक प्लास्टिक प्रदूषण है। अत्यधिक मात्रा में प्लास्टिक को जलाना, प्लास्टिक का इस्तेमाल करना प्लास्टिक प्रदूषण का कारण बनता है। प्लास्टिक को जलाने से निकलने वाले धुएं प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण दिन प्रतिदिन खतरे के निशान को दर्शाता है। हम यह कह सकते हैं कि हमारी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों में प्लास्टिक ने अपनी भागीदारी बना ली है। आज प्लास्टिक के कचरे के रूप में हम अपने खूबसूरत से पर्यावरण को प्रदूषित पर्यावरण में बदलते जा रहे हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं प्लास्टिक एक अपघटित पदार्थ होता है। इसे मिट्टी भी नहीं गला पाती। प्लास्टिक ना सिर्फ हम मनुष्य को क्षति पहुंचाता है, बल्कि इससे जानवरों को भी काफी हद तक नुकसान पहुंचता है।
प्लास्टिक के दुष्प्रभाव:
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जल प्रदूषण – प्लास्टिक ऐसे पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है जो कि हजारों सालों तक नष्ट नहीं होता है। और यही प्लास्टिक आजकल जल प्रदूषण का भी कारण बन रहा है क्योंकि मानव द्वारा हर वस्तु का निर्माण प्लास्टिक द्वारा ही किया जा रहा है जैसे कि पानी पीने की बोतल, खाना खाने के लिए चम्मच, टूथ ब्रश, सामान लाने के लिए, अन्य वस्तुओं की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक के हजारों सालों तक खराब नहीं होने के कारण यह महासागरों में पड़ा रहता है, प्लास्टिक से धीरे धीरे जहरीले पदार्थ निकलते रहते हैं जो कि जल में घुल जाते हैं और उसे प्रदूषित कर देते हैं।
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मृदा प्रदूषण – प्लास्टिक की विघटन प्रक्रिया में 500 से हजारों साल लग जाते हैं इसलिए जब प्लास्टिक को भूमि के अंदर गाड़ दिया जाता है तो यह विघटित नहीं हो पाता है और जहरीली गैसे और प्रदार्थ छोड़ता रहता है। जिसके कारण वहां की भूमि बंजर हो जाती है और अगर कोई फसल पैदा भी होती है तो उसमें जहरीले पदार्थ मिले होने के कारण यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं।
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वायु प्रदूषण – प्लास्टिक को जब बनाया जाता है तो इसमें बहुत सारे जहरीले केमिकल का इस्तेमाल होता है और जब इस को जलाया जाता है तो वह सारे केमिकल हवा में फैल जाते हैं और वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। प्लास्टिक को जलाए जाने के कारण जो धुंआ उत्पन्न होता है अगर उसमें ज्यादा देर तक सांस ली जाए तो कई बीमारियां हो सकती हैं।
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समुद्री जीवों पर दुष्प्रभाव –पृथ्वी में सबसे ज्यादा प्लास्टिक से बनीं हुई वस्तुएं महासागरों में ही पाई जाती हैं। क्योंकि प्लास्टिक मानव द्वारा समुद्रों में इस तरह से फेक दिया जाता है कि जैसे कि समुंदर कोई कचरा पात्र हो। प्लास्टिक नदियों और नालों में बहने वाले पानी के साथ बहकर समुद्र तक पहुंच जाता है। प्लास्टिक से बनी वस्तुओं में जायलेन, इथिलेन ऑक्साइड और बेंजेन जैसे जहरीले केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। समुद्री जीव प्लास्टिक को खा लेते हैं जिसके कारण इनके फेफड़ों या फिर श्वास नली में यह प्लास्टिक फंस जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। जिसके कारण आए दिन समुद्री जीवों की संख्या कम हो रही है।
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जीव जंतुओं पर दुष्प्रभाव – प्लास्टिक द्वारा ज्यादातर वस्तुएं ऐसी बनाईं जाती हैं जो कि मानव द्वारा एक बार में इस्तेमाल लेने के बाद फेंक दी जाती हैं जैसे कि पानी की बोतलें, खिलौने, टूथ ब्रश, पैकिंग का सामान, पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक के बॉक्स आदि ऐसी वस्तु है जो कि मानव द्वारा एक बार ही इस्तेमाल में ली जाती है। फिर इन वस्तुओं को कचरे में फेंक दिया जाता है। इस कचरे में कुछ खाने का सामान भी पड़ा रहता है जो कि गायों या अन्य पशुओं द्वारा इन प्लास्टिक की वस्तुओं के साथ ही खा लिया जाता है यह प्लास्टिक जीव जंतुओं के फेफड़ों में फंस जाता है। जिसके कारण उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है और उनकी मृत्यु हो जाती है।
प्लास्टिक के दुष्प्रभाव को रोकने के उपाय –
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प्लास्टिक के बैग और बोतल जो कि उन्हें इस्तेमाल के योग्य हैं उन्हें फेंके नहीं उनका तब तक इस्तेमाल करें जब तक कि वह खराब ना हो जाएं।
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प्लास्टिक से बनी हुईं ऐसी वस्तुओं के इस्तेमाल से बचें जिन्हें एक बार इस्तेमाल में लिए जाने के बाद फेंकना पड़े।
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प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जूट से बनें थैलों का इस्तेमाल करें।
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जब भी आप कोई वस्तु खरीदने जाएं तो फिर से कपड़े का थैला अपने साथ लेकर जाएं जिससे कि आपको प्लास्टिक की थैलियों में सामान नहीं लाना पड़े।
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दुकानदार से सामान खरीदते वक्त उससे कहें कि कपड़े या कागज से बने थैलों में ही समान दे।
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खाने की वस्तुओं के लिए स्टील या फिर मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दें।
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प्लास्टिक की पीईटीई (PETE) और एचडीपीई (HDPE) प्रकार के सामान चुनिए। क्योंकि इस प्रकार के प्लास्टिक को रिसाइकिल करना आसान होता है।
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ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें जिसे एक बार इस्तेमाल के बाद ही फेंकना होता है जैसे प्लास्टिक के पतले ग्लास, तरल पदार्थ पीने की स्ट्रॉ और इसी तरह का अन्य सामान।
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मिट्टी के पारंपरिक तरीके से बने बर्तनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दें।
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अपने आसपास प्लास्टिक के कम इस्तेमाल को लेकर चर्चा करें।
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हमारे देश में भी कई ऐसे सेंटर स्थापित हो गए हैं जहां प्लास्टिक रिसाईकल किया जाता है। अपने कचरे को वहां पहुंचाने की व्यवस्था करें।
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खुद प्लास्टिक को खत्म करने की कोशिश न करें। न पानी में, न जमीन पर और न ही जमीन के नीचे प्लास्टिक खत्म होता है। इसे जलाना भी पर्यावरण के लिए अत्यधिक हानिकारक है।
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लेखक:
पल्लवी सिंह*, स्वप्निल सिंह**
पी0एच0डी0 शोध छात्रा
’पारिवारिक संसाधन प्रबन्ध एवं उपभोक्ता विज्ञान विभाग, आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या