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Updated on: 11 April, 2020 3:47 PM IST

आजकल पूरे देश में कोरोना महामारी के चलते लोग परेशान हैं, वहीं लॉकडाउन और कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं जिसमें खाद्य पदार्थों तथा उत्पादों की चर्चा आम है. कुछ उत्पादों के लिए उपयुक्त प्रसंस्करण के साथ उचित भंडारण भी आवश्यक होता है. हम सभी उत्पादों को रोजाना अपने भोजन में शामिल करते हैं इसलिए विषाक्त तत्वों से बचाना बहुत जरूरी है और आजकल तो करोना जैसी महामारी से यदि बचना है तो सबसे पहले साफ सफाई करके ही फलों सब्जियों एवं अनाज को प्रयोग में लाना है तभी हम इस महामारी से लड़ पाएंगे. वैसे भोजन मानव शरीर के लिए ऊर्जा का एक पोषण  स्रोत है भोजन मैं कई पोषक तत्व विभिन्न मात्रा में पाए जाते  है जिन्हें हम पोषक तत्व कहते हैं. इनमें प्रमुख रूप से कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन वसा विटामिन एवं अन्य खनिज तत्व अच्छी मात्रा में उपस्थित होते हैं इसके साथ ही साथ इसमें कई अन्य तत्व भी मौजूद होते हैं जो पोषण गुणवत्ता में वृद्धि के साथ उसे कार्यात्मक भी बनाते हैं ऐसे तत्वों को हम न्यूट्रास्यूटिकल्स कहते हैं और ऐसे उत्पादों को हम फंक्शनल उत्पाद कहते हैं.

भोजन में पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों के आधार पर उनके पोषक एवं औषधि गुण निर्धारित होते हैं पोषक गुणवत्ता के तत्वों के साथ ही साथ कई खाद्य उत्पादों में प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जिनको या तो कोई पोषक महत्व नहीं होता या फिर अन्य तत्वों के पोषक महत्व को कम भी कर देते हैं यह तत्व मानव शरीर के उचित विकास के लिए हानिकारक होते हैं अतः हमें उन खाद्य उत्पादों की जानकारी होना आवश्यक है जिनमें से तत्व पाए जाते हैं विशेषता तब जब यह हमारे रोजाना के आहार का अभिन्न हिस्सा बने हुए हो.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए खाद्य उत्पादों के प्रति पोषक कार्य को युवकों की उपस्थिति पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए हमें घर पर या औद्योगिक स्तर पर आसानी से प्रसंस्करण के उन उपायों को अपनाना चाहिए जिनसे यह दुष्प्रभाव पहुंचाने वाले तत्वों से बचा जा सके और इनका निवारण आसानी से किया जा सके.

आलू से कैसे निवारण करेंगे विषाक्त तत्वों का

हमारे देश में आलू एक महत्वपूर्ण फसल है और उसको सब्जियों का राजा भी कहा जाता है यदि विश्व की तरफ ध्यान दें तो विश्व में भी इसका बहुत अधिक उपयोग किया जाता है विश्व के अति महत्वपूर्ण खाद्य फसलों जैसे चावल गेहूं और मक्का के बाद आलू का चौथा स्थान प्राप्त है साधारण सा आलू किसी भी हानिकारक अवयव से दूर है. सावधानी तब बचने की आवश्यकता होती है जब आलू के कुछ भागों में हरा रंग दिखाई देता है. यह प्राकृतिक रूप से विषाक्त पदार्थ होते हैं आलू में पाए जाने वाले ग्लाइको एल्डिहाइड पाचन तथा तंत्रिका तंत्र के विकार का कारण बनते हैं वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि अधिक मात्रा में ग्लाइको एल्डिहाइड का सेवन प्राणघातक भी हो सकता है.

यदि आलू में प्रति 100 ग्राम से 200 मिलीग्राम से अधिक ग्लाइको एल्कलॉइड उपस्थित है तो इस प्रकार के आलू मानव तथा पशुओं के लिए हानिकारक होते हैं तो लिहाजा इस बात का ध्यान रखना है कि आलू का उपयोग करते समय यह विशेष रूप से देख लें कि यदि  उन पर हरा भाग दिखाई दे रहा हो तो उसे काटकर अलग कर ले उसके उपरांत उसका उपयोग करें आजकल कोरोना वायरस से बचने के लिए भी जरूरी है कि आलू का उपयोग करते समय उसको पहले थोड़े से गुनगुने पानी  डालकर रख दें उसके उपरांत उसको साफ करके उपयोग में लाएं तो स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहेगा.

सेब से कैसे निकाले हानिकारक तत्वों को

सेब को स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा फल माना जाता है क्योंकि इसमें काफी मात्रा में स्वास्थवर्धक गुण होते हैं इसके बीजों में साइनोजन यौगिक होते हैं जब यह यौगिक पानी की उपस्थित में टूटते हैं तो हाइड्रोसाइएनिक अम्ल बनाते हैं हाइड्रोसाइएनिक एक अत्यंत विषैला पदार्थ है इसलिए सेब के बीजों को सेब के किसी भी उत्पाद का भाग नहीं बनाना चाहिए संयोजन यौगिक का स्तर 1 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भाग से कम होना चाहिए जो कि सेव के बीजों में लगभग 690 से 790 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार होता है अतः कोशिश करनी चाहिए कि जब सेब को खाने में उपयोग करें तो उस में पाए जाने वाले बीज को अलग निकाल दें उसके बाद ही उसका उपयोग करें.

विषाक्त तत्वों को पपीते से कैसे हटाए

पपीता अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण काफी लोकप्रिय है और पेट से संबंधित होने वाली कई बीमारियों के लिए डॉक्टर द्वारा भी इसके खाने की संस्तुति की जाती है पपीते में रेशे खनिज खबरों फ्लाईवे नाइट्स  और करिती नोड्स से भरपूर होता है. किंतु गर्भावस्था में कच्चा या कम पका हुआ पपीता खाने के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में पपेन नामक प्रोटीन पाया जाता है जोकि गर्भावस्था में महिलाओं के लिए हानिकारक साबित होता है यह तत्व भ्रूण के विकास एवं वृद्धि में बाधा उत्पन्न करता है बहुत से वैज्ञानिक शोध भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि इस उत्प्रेरक के साथ ही साथ पपीते का खीर अथवा लेटेक्स भी  भ्रूण के अस्तित्व के लिए बाधक होता है.

क्योंकि यह गर्भावस्था में सिकुड़न उत्पन्न करता है जिससे जच्चा और बच्चा दोनों को नुकसान हो सकता है तो ऐसी अवस्था में पपीते के सेवन को कम कर देना चाहिए और आजकल मार्केट से पपीता लाने के बाद उसको थोड़ी देर के लिए गर्म पानी में डालकर रख देना चाहिए उसके उपरांत ही काट कर उसको खाने में प्रयोग करना चाहिए तभी हम इन दोनों होने वाली कोरोना जैसी भयंकर महामारी से अपने को बचा सकते हैं.

दालों से विषाक्त तत्वों को कैसे निकाले

दालों का बहुत अधिक उपयोग भारतीय खाने में किया जाता है यदि सब्जियां घर पर नहीं होती तो लोग दाल से अपना काम चलाना उचित समझते हैं प्रायः देखा गया है कि यह खाने के बाद भारीपन तथा गैस उत्पन्न होता है. विशेषता मानव शरीर में इन शर्कराओ स्टेट्यूज रेफिनोज एवं वर विस्कोज आदि को पचाने की क्षमता नहीं होती. अतः इन दालों को पकाने से पहले कई बार धोना आवश्यक होता है  यह सभी शर्करा पानी में घुलनशील होती हैं. अतः कई बार धोने से दालों में मौजूद लघु शर्करा की मात्रा को काफी कम किया जा सकता है. यही कारण है कि घरों में भी दालों जैसे अरहर चना आदि को पकाने से पूर्व कई बार धोने या फिर ढूंढो कर रखने के उपरांत बनाने का प्रचलन है यदि ऐसा किया जाता है तो निश्चित रूप से इसमें पाए जाने वाले विषाक्त तत्वों को काफी हद तक कम किया जा सकता है और वह पेट के लिए लाभकारी साबित होती है.

 डॉ. आर एस सेंगर, प्रोफेसर
सरदार वल्लभ भाई पटेल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, मेरठ
ईमेल आईडी: sengarbiotech7@gmail.com

English Summary: How to remove harmful elements from potato, apple and papaya
Published on: 11 April 2020, 03:56 PM IST

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