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Updated on: 14 March, 2019 3:10 PM IST
Holi Festival

होली के पर्व को विभिन्नताओं में एकता का प्रतीक माना जाता है. होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे रंगों के पर्व के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन होता है. होली में मस्ती, ठिठोली, हुड़दंग, ढोल की धुन और घरों के लाउड स्पीकरों पर बजते तेज संगीत के साथ एक दूसरे पर रंग और पानी फेंकने का मज़ा देखते ही बनता है. इस पर्व के साथ पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं.

होली का चलन कब से शुरू हुआ इसका जिक्र हिन्दू धर्म के कईं ग्रंथो में मिलता है. पुराने समय में इसे होलका के नाम से भी जाना जाता था. इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ किया करते थे. मुगल शासक शाहजहां के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी का नाम दिया गया था.

इस पर्व को लेकर बहुत सारी मान्यताएं हैं जिसमें सबसे ज्यादा मान्यता भगवान शंकर और पार्वती जी को दी जाती है. कहा जाता है कि एक बार भगवान शंकर अपनी तपस्या में लीन होते हैं. दूसरी तरफ हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती है. इसलिए पार्वती जी महादेव की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव की सहायता लेती है. पार्वती के कहने पर कामदेव शिवजी पर प्रेम बाण चला देते हैं जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है. उसी समय क्रोध से शिव जी की तीसरी आंख खुल जाती है और सामने खड़े कामदेव का शरीर भस्म हो जाता है. इसके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं और उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते है.  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रुप में मनाया जाता है.

दूसरी और बहुचर्चित मान्यता हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की मानी जाती है. पुराने समय में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर अमर रहने का वरदान पा लिया था. उसे वरदान मिला था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य नहीं मार सकता. रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर या घर के बाहर भी उसकी मृत्यु असंभव है. वरदान मिलने के बाद वह निरकुंश बन गया. कुछ समय बाद उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रहलाद था. प्रहलाद भगवान् विष्णु का परम् भक्त था और उसे भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि प्राप्त थी. हिरण्यकश्यप ने पूरे राज्य में आदेश दिया था की राज्य में कोई भी विष्णु की उपासना नहीं करेगा.

उनके आलावा किसी और की स्तुति नहीं होगी लेकिन प्रहलाद नहीं माना. प्रहलाद के न मानने के बाद हिरण्यकश्यप ने उसे मारने का प्रण कर लिया. हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई. और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी. हुआ यूं कि होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का ही एक अंग माना गया है. होली के दिन सारा वृन्दावन राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है.

English Summary: Holi festival is associated with mythological beliefs
Published on: 14 March 2019, 03:17 PM IST

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