GFBN Story: अपूर्वा त्रिपाठी - विलुप्तप्राय दुर्लभ वनौषधियों के जनजातीय पारंपरिक ज्ञान, महिला सशक्तिकरण और हर्बल नवाचार की जीवंत मिसाल Prasuti Sahayata Yojana: श्रमिक महिलाओं को राज्य सरकार देगी 21,000 रुपए तक की आर्थिक मदद, जानें आवेदन प्रक्रिया! Seeds Subsidy: बीज खरीदने पर राज्य सरकार देगी 50% सब्सिडी, जानिए कैसे मिलेगा लाभ किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ Diggi Subsidy Scheme: किसानों को डिग्गी निर्माण पर मिलेगा 3,40,000 रुपये का अनुदान, जानें कैसे करें आवेदन फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 10 November, 2018 5:30 PM IST
Govardhan Puja

भारत में त्यौहार मनाने की बहुत ही पुरानी और समृद्ध परंपरा रही है. ऋतु परिवर्तन और क्षेत्रीय मान्याताओं के मुताबिक देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं. हालाँकि कुछ त्यौहार ऐसे भी हैं जो देश के कोने-कोने में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाये जाते हैं. 'दिवाली' भी ऐसा ही एक त्यौहार है जो देश को एक रंग में रंग देता है.

पॉँच दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार समृद्धि और धन-धान्य का माना जाता है. बदलते वक़्त के साथ दिवाली मनाने के तरीकों में भी बदलाव देखने को मिले हैं. लेकिन एक चीज़ जो अब तक नहीं बदली वो है 'गोवर्धन पूजा'. हर साल इसको मनाने वाले लोगों की संख्या में इजाफा दर्ज किया जाता रहा है. दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के पहले दिन 'गोवर्धन पूजा' की जाती है. ब्रज क्षेत्र के मुख्य केंद्र मथुरा से 22 किमी दूर उत्तर में गोवर्धन पर्वत स्थित है. गोवर्धन पूजा का महत्व इसी पर्वत से जुड़ा हुआ है.

गोवर्धन पूजा का महत्व (Importance of Govardhan Puja) 

इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण की देवराज इंद्र पर विजय के उपलक्ष्य में मनाये जाने की रिवाज है. दरअसल, हिंदू धर्म के 'भागवत पुराण' के अनुसार द्वापर युग में श्रीकृष्ण गोकुल में अपनी बाल लीलाएं कर रहे थे. उस वक़्त शरद ऋतु में बृजवासी इंद्र की पूजा करते थे. इसके पीछे मान्यता थी कि इंद्र ही बारिश करते हैं जो उनके जीने के लिए सबसे बड़ा कारक है. इन्द्र को इस बात का बहुत अभिमान भी था. कृष्ण चाहते थे कि लोग इंद्र की बजाय 'गोवर्धन पर्वत' की पूजा करें क्योंकि बारिश और पर्यावरण की शुद्धता गोवर्धन पर्वत की वजह से है. 

इस पर उगने वाला जंगल और वनस्पतियाँ बारिश के अनुकूल हालत पैदा करते हैं. चूँकि, अपनी बुद्धिमता और ज्ञान के चलते कृष्ण आम लोगों में बहुत ही लोकप्रिय थे. उनकी तार्किक समझ का लोग सम्मान करते थे. इसलिये बृजवासियों ने उनका गोवर्धन पूजा करने का प्रस्ताव मान लिया। सभी गोकुलवासियों ने गोवर्धन पूजा के लिए 'छप्पन भोग' बनाये। पूजा सामग्री लेकर सब गोवर्धन पहुँच गए. देवराज इंद्र को इस बात की खबर मिली तो वह कुपित हो गए. आवेश में आकर उन्होंने बृज में मूसलाधार बारिश और तूफ़ान का कहर बरसा दिया. लोग इससे भयभीत हो गए और मदद के लिए चीखने लगे. हालात बेकाबू होते देख श्रीकृष्ण ने अपनी तर्जनी ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया.

सभी बृजवासी अपनी गायों के साथ पर्वत के नीचे आ गए. तूफ़ान का यह सिलसिला छह -सात दिनों तक चलता रहा लेकिन कृष्ण ने पर्वत को उठाये रखा. इंद्र ने जब देखा कि श्रीकृष्ण ने सभी को सुरक्षित रखा है और उसके तूफ़ान और बारिश का कोई असर नहीं हुआ है तब उसे एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं बल्कि साक्षात् विष्णु अवतार हैं. उसने श्रीकृष्ण से अपने दुस्साहस के लिए क्षमा याचना की. इस तरह श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर कर दिया। उसके बाद गोकुलवासियों ने गोवर्धन की पूजा की. उसी दिन से हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक जारी है.

विष्णु पुराण में इस दिन की महत्ता को लेकर एक वर्णन और मिलता है. राजा बलि किसी भी कीमत पर अपने दिए वचन के लिए प्रसिद्ध थे. भगवान विष्णु उनकी परीक्षा लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने 'वामन' का रूप धारण किया और बलि के दरबार में भिक्षा मांगने पहुँच गए. उन्होंने बलि से कहा कि मुझे आपके राज्य में तीन पग भूमि चाहिए. राजा बलि ने उनके बौने रूप को देखा और कहा कि आपकी तीन पग भूमि तो बहुत ही कम होगी. इस पर भगवान वामन ने कहा कि आप बस मुझे तीन पग भूमि देने का संकल्प करें. बलि ने उनकी बात सहर्ष स्वीकार कर ली और उन्हें वचन दे दिया। भगवान वामन ने एक पग में जमीन को और दूसरे कदम से आकाश को नाप लिया.

अब वचन के मुताबिक तीसरा पग रखने के लिए कोई जगह नहीं बची. अपने वचन के पक्के राजा बलि ने भगवान वामन के सामने अपना सिर झुका दिया और कहा कि आप तीसरा कदम मेरे सिर पर रखें। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और वह अपने दिव्य रूप में प्रकट हो गए. उन्होंने बलि को पातल लोक का राजा बना दिया. महाराष्ट्र में इसी मान्यता के अनुसार इस दिन को मनाया जाता है. इसी दिन चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत की थी. यह दिन गुजरात में नए साल के रूप में मनाया जाता है.

इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन का प्रतीक बनाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है. इस दिन छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं जिसे भोग कहते हैं. बृजवासी गोवर्धन पूजा बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. 'श्री गोवर्धन महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो.. तोपे पान चढ़े, टोपे फूल चढ़े और चढ़े दूध की धार' घर-घर में इस गीत को गाया जाता है.

English Summary: Historical and mythological stories of Govardhan Puja
Published on: 10 November 2018, 05:32 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now