कानपुर के चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के गेहूं से तैयार लच्छा पराठा दक्षिण भारतीयों लोगों को खूब भा रहा है. गेहूं की तीन प्रजातियां के-402, के-607 और के-306 यह तीन प्रजातियां लच्छेदार पराठा बनाने में इस्तेमाल हो रही हैं.
इन प्रजातियां का ज्यादातर उत्पादन कानपुर के नजदीकी जिलों जैसे कन्नौज, फर्रुखाबाद और बुंदेलखंड आदि में हो रहा है.लेकिन इसकी ज्यादातर मांग तमिलनाडु, आंध प्रदेश और कर्नाटक में देखने को मिल रही है. इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए अब गेहूं बीजों का उत्पादन करने वाली कंपनियों ने भारी मात्रा में बीजों की मांग की है.
जिसके चलते अब विश्वविद्यालय इन प्रजातियों की ज्यादा मात्रा में बुवाई करेगा.
गेहूं की इन प्रजातियों की खासियत (Characteristics of these varieties of wheat)
अधिकारियों के अनुसार कंपनी चाहे तो वह किसानों से सीधे सम्पर्क करके भी गेहूं की इन किस्मों को उत्पादन करवा सकती हैं. कानपुर,विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ. एचजी प्रकाश ने कहा कि इन प्रजातियों की यह खासियत है कि इसमें कम कैलोरी और प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा है.
इन प्रजातियों को वर्ष 2011 में पूरे देश की जलवायु के लिए काफी उपयोगी घोषित गया था. इन प्रजातियों में साधारण गेहूं की तुलना 18 प्रतिशत से भी ज्यादा प्रोटीन पाया गया है.
इसके साथ ही इसमें ग्लूटेन की भी अच्छी मात्रा मौजूद जोकि लस पैदा करने में काफी जरूर मानी गयी है. इसमें कार्बोहाइड्रेड, फाइटिक एसिड, कापर, मैंग्नीसियम, जिंक, फोलेट-विटामिन बी,फोलेट-विटामिन बी और विटामिन बी-9 भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है.
गेहूं की इन प्रजातियों की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि इनमें कम मात्रा में कैलोरी मौजूद होती है. जबकि अगर साधारण गेहूं की बात करें तो उसमें 100 ग्राम आटे में 300 से अधिक कैलोरी पायी जाती है. लेकिन इस प्रजाति में मात्र 280 कैलोरी मौजूद होती है.