भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है. इस वर्ष देश में गेहूं का उत्पादन कम हुआ है और इसी के चलते केंद्र सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी है.
यह कदम भारत सरकार ने देश हित में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया है. गेहूं के निर्यात पर बैन से किसानों को दोहरी मार पड़ी है. निर्यात के जरिये होने वाली आय बाधित हुई है. सूखा पड़ने से गेहूं की क्वालिटी भी खराब हुई, दाने का आकार छोटा रहा, फसल कम हुई और अब निर्यात पर प्रतिबंध लगा है. भारत सरकार के इस फैसले का अमेरिका और यूरोप तक के देशों में विरोध हुआ है. भारत ही नहीं वहां भी गेहूं की कीमतों में उछाल आ गया.
सरकार ने अनुमान लगाया था कि 111 मिलियन टन से ज्यादा उत्पादन होगा. लेकिन इसे घटाकर 105 मिलियन टन कर दिया है. अनुमान है कि इस बार 45 लाख से 60 लाख टन गेहूं का उत्पादन कम होगा. आइये विस्तार से उन कारणों को जानते हैं जिनके कारण हमें मजबूरन गेहूं का निर्यात रोकना पड़ा -
अत्यधिक गर्मी से उत्पादन हुआ प्रभावित
इस बार भारत में मार्च से ही भीषण गर्मी का दौर रहा है और इस गर्मी ने गेहूं के उत्पादन को भी प्रभावित किया है. गेहूं के उत्पादन में खासी कमी आई है. कम उत्पादन की स्थिति में एक बड़ी जनसंख्या वाले राष्ट्र के लिए गेहूं का निर्यात करना संभव नहीं है.
रूस यूक्रेन युद्ध का असर
यूँ तो रूस और यूक्रेन भी गेहूं के बड़े उत्पादक राष्ट्र हैं, लेकिन उनके बीच छिड़े युद्ध ने गेहूं की अंतराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति को बाधित किया है.
हमारी आवश्यकताओं में वृद्धि
भारत गेहूं का प्रमुख उत्पादक देश है लेकिन हमें यह भी मानना चाहिए कि हमारे यहां विशाल जनसंख्या के लिए गेहूं की आपूर्ति करना पहली प्राथमिकता है जब हम यहां की आपूर्ति संपन्न कर चुके होते हैं तो उसके बाद निर्यात की सोच सकते हैं, देश की जनता के हित में ही भारत सरकार द्वारा यह फैसला लिया गया है. देश में गेहूं का संकट हो गया है. कहा जा रहा है कि सरकारी योजनाओं के लिए भी गेहूं कम पड़ने की आशंका है.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यवस्थित रखने की चुनौती
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने एवं इमरजेंसी की स्थिति में पर्याप्त खाद्यान्न स्टाक में रखने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है.
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सरकारी गोदामों में गेहूं की कम आवक
सरकारी गोदाम में गेहूं की आवक कम है क्योंकि कहा जा रहा है कि सरकारी एजेंसियों की जगह व्यापारियों ने पहले ही किसानों को 2015 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी से ज्यादा कीमत देकर गेहूं खरीद लिया था. साल 14 मई तक सरकारी गोदाम में खरीदकर 18 मिलियन टन गेहूं ही आ पाया है. पिछले साल 37 मिलियन टन गेहूं सरकार खरीद चुकी थी.
केंद्र सरकार को 26 मिलियन टन गेहूं की पीडीएस के अंतगर्त जरूरतमंदों को अनाज देने के लिए चाहिए. साथ ही अप्रैल से सितंबर तक देश में पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए 5.4 मिलियन टन गेहूं चाहिए. ऐसे में निर्यात रोकना ही प्रभावी विकल्प था.