प्रदेश की 60 प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है. इससे स्पष्ट होता है कि प्रदेश का विकास मुख्य रूप से कृषि के विकास में निहित है. प्रदेश की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण कृषि योग्य भूमि की जोत का आकार घटता जा रहा है. वर्तमान में लघु एवं सीमांत कृषको की संख्या लगभग 92 प्रतिशत है. जोत का आकार कम होने से कृषको की आय, जीवन शैली और उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
किसानों की आय में होगी वृद्धि
ऐसे में कृषि जागरण की टीम ने उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने तथा किसानों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे कार्यों पर चर्चा की और आने वाले समय में और क्या कुछ नया किया जाएगा यह जानने की कोशिश की.
इस सन्दर्भ में कृषि विभाग के मुखिया श्री विवेक कुमार सिंह एवं उप कृषि निदेशक (प्रसार) अवधेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में कृषि को आजीविका के साधन के रूप में ही नहीं अपितु एक उद्यम के रूप में भी लिया जा रहा है, ताकि कृषको को इस व्यवसाय से समुचित आमदनी प्राप्त हो सके.
कृषि क्षेत्र में इन योजनाओं पर होगा काम
साथ ही, कृषको की आय दोगुनी करने हेतु सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जो निम्न बिन्दुओं पर केन्द्रित हैः- (1) उत्पादन बढ़ाना, (2) खेती की लागत कम करना (3) मूल्य संवंर्धन एवं लाभकारी विपणन.
उर्वरकों की नहीं होगी कोई कमी
इस सिलसिले में हमारे पत्रकार को जानकारी देते हुए अवधेश कुमार श्रीवास्तव जी ने बताया कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में मृदा नमूनों को ग्रहित करते हुए उनके विश्लेषण पश्चात मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराये जा रहे है, जिसके आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
वर्तमान समय में आवश्यक है कि खेत में कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट, प्रेसमड, हरी खाद आदि का प्रयोग किया जाए. इसके प्रयोग से भूमि की जल धारण क्षमता एवं उर्वरक प्रयोग क्षमता में वृद्धि होगी तथा फसल की पैदावार अच्छी होगी.
समेकित कृषि प्रणाली क्यों
प्रदेश में समेकित कृषि प्रणाली पर जोर दिया जाएगा तथा किसानों की आवश्यकता के अनुसार प्रणालियों का चयन करते हुए कार्य किया जाएगा जिससे की उनकी आय दोगुनी हो सके. जिसमें बहुस्तरीय पद्धति, फसल चक्र, अन्र्तफसल, मिश्रित फसल के साथ अन्य उद्यम जैसे बागवानी, पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन, बकरी पालन, सुअर पालन आदि को शामिल करने की योजना है. इससे बाढ़ सूखा अथवा अन्य किसी प्रकार की आपद से भी सुरक्षा मिलेगी. और, समेकित कृषि प्रणाली का मूल सिद्धान्त सुरक्षित खेती है.
कृषि में नई तकनीकों का महत्व
परंपरागत एवं प्राकृतिक खेती को अपनाकर कृषि उत्पादनों में आने वाले खर्चों में कमी की जा सकती है. इन्हीं सिद्धांतों को अपनाते हुए कृषि विभाग ने कुछ नए तकनीक को अपनाकर प्रदेश की सरकार के सपनों को साकार करने का कार्य किया है.
धान-गेहूं के फसल चक्र को अपनाने वाले जिन किसानों को फसलों की रोपाई/बुवाई आदि के लिए बहुत सारा समय, श्रम एवं धन व्यय करना पड़ता था उन्हें धान की बुवाई के लिए ड्रम सीडर एवं गेहूं की बुवाई के लिए हैपी सीडर, सीड ड्रील, जीरो टिल फर्टी सीड ड्रील को उपलब्ध कराने की योजना बनाई है जिससे लागत कम की जा सकती है. और साथ ही साथ उन्हें खेत की जुताई हेतु रोटावेटर के उपयोग करने की भी सलाह दी है जिससे वर्ष भर में किसान भाई लगभग 20 हजार रुपए की बचत कर सकते हैं.
सोलर पंप पर अनुदान
इसके अतिरिक्त, पर्यावरण संरक्षण हेतु सोलर पम्प का उपयोग किया जा सकता है. कृषि विभाग द्वारा सोलर पम्प 70 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराया जाता है.
मूल्य संवर्धन है जरूरी
किसानों को यह समझना चाहिए कि अब मूल्य संवर्धन का जमाना है. कड़ी मेहनत से तैयार फसल को सीधे बेचने के बजाय उसमें मूल्य संवर्धन करना चाहिए, ताकि उपज के मुनाफे के साथ अधिकतम मूल्य किसान को मिल सके.
इस कड़ी में, सहायक निदेशक (प्रसार) डा0 मेनका एवं डा0 अनीता सिंह ने हमारे संवाददाता को बताया कि ग्राम स्तर पर स्थानीय उत्पादन एवं आवश्यकता के आधार पर छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों के रूप में निम्न यंत्रों को स्थापित करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे आसानी से मूल्य संवर्धन हो सकता है, किसानों को अधिक आय प्राप्त हो सकती है और फसल को मंडियों में कम मूल्य पर बेचने के जोखिम से बचाया जा सकता है.
इसमें सोयाबीन पोहा बनाने का यंत्र, कुटीर स्तरीय सोया पनीर संयंत्र, सोया दूध छानने की इकाई, पनीर दबाने का सांचा, कदान्न अनाजों के छिलके निकालने वाला यंत्र, फल श्रेणीकरण यंत्र, कोल्ड स्टोरेज, बहुउद्देषीय ट्रे शुष्कक और सब्जी शुष्कक शामिल हैं.