मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में किसान खरीफ सीजन की बुवाई की तैयारी में जुटे हैं. लेकिन किसानों को तिलहन फसल के बीज की कमी से परेशान होना पड़ रहा है. यही वजह है कि उन्हें बीज की खरीददारी के लिए पिछले साल की तुलना दो गुना अधिक दाम चुकाना पड़ रहे हैं.
गौरतलब है कि 'पीला सोना' कही जाने वाली सोयाबीन के उत्पादन में मध्य प्रदेश का देश में पहला स्थान है. लेकिन इस बार प्रदेश में सोयाबीन बीज की बड़ी किल्लत है जिसकी वजह से इस साल इसके उत्पादन में कमी देखी जा सकती है.
प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने बताया कि इस बार राज्य में सोयाबीन की खेती का 'घाटे का सौदा' है. ऐसे में किसान अन्य फसलों की खेती करें ताकि उन्हें खरीफ सीजन में आर्थिक नुकसान न उठाना पड़े. कृषि मंत्री पटेल का कहना है कि पिछले तीन खरीफ सीजन से प्रदेश में सोयाबीन की अच्छी पैदावार नहीं हुई है. जिस वजह से किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
आज सोयाबीन की खेती करना घाटे का सौदा है. इसमें लागत अधिक और मुनाफा कम है. बता दें कि पिछले वर्ष भी सोयाबीन की खेती पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी जिसके चलते किसानों को अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाया था. यहां तक प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे किसान है जो बीज का भी उत्पादन भी नहीं कर पाए थे.
इन फसलों की करें खेती
कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों को सोयाबीन की जगह अन्य फसलों की खेती करना चाहिए. ताकि वे इस सीजन के नुकसान की भरपाई कर सकें. सोयाबीन की जगह किसान मक्का, कपास, मूंगफली और दलहनी फसलों की खेती कर सकते हैं. इधर, कृषक संगठन किसान सेना के सचिव जगदीश रावलिया का कहना हैं कि सोयाबीन बीज के दामों से इस साल किसान परेशान है. निजी कंपनियों के बीज विक्रेता अधिक मुनाफा कमाने के लिए 9 हजार से 12 हजार रूपये प्रति क्विंटल की दर से बीज बेच रहे हैं. यह दाम सामान्य दाम से दोगुना अधिक है. रावलिया ने बताया कि इस साल प्रदेश की सहकारी समितियों के पास भी सोयाबीन का बीज नहीं है. इस वजह से किसानों को दोगुना दाम में बीज की खरीददारी करना पड़ रही है.
पहले पायदान पर मध्य प्रदेश
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के मुताबिक पिछले साल मध्य प्रदेश में सोयाबीन का रकबा 58.54 लाख हेक्टेयर था जो देश के कुल रकबे का 50 फीसदी था. वहीं महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती 40.40 लाख हेक्टेयर रकबे पर की गई थी. जिसका देश में दूसरा स्थान था. एसोसिएशन के अध्यक्ष डेविश जैन का कहना है कि देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर एवं कुपोषण दूर करने के लिए सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देना चाहिए. इसलिए सरकार को अब किसानों को नई किस्मों के उन्नत बीज उपलब्ध कराने की आवश्यकता है.