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Updated on: 2 April, 2024 7:12 PM IST
प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन, कृषि विज्ञान केन्द्र, झालावाड़

झालावाड़ के कृषि विज्ञान केन्द्र में जनजातीय उप योजनान्तर्गत (T.S.P.) प्राकृतिक खेती के विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन 28 मार्च 2024 को किया गया था. इसकी जानकारी केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ.टी.सी. वर्मा ने देते हुए बताया है कि इस कार्यक्रम में 62 कृषकों ने भाग लिया था. वर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती पूर्णतया प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर आधारित होती है और जहर व रसायन मुक्त टिकाऊ खेती करना वर्तमान समय की मांग बन गई है. उन्होंने कहा, स्वस्थ धरा से ही “स्वस्थ समाज व स्वस्थ राष्ट्र” के निर्माण की कल्पना की जा सकती है.

मृदा में जीवाणुओं का संरक्षण आवश्यक

कृषि विभाग, झालावाड़ में कैलाश चन्द मीणा (संयुक्त निदेशक, कृषि विस्तार) ने प्राकृतिक खेती पर सरकार द्वारा संचालित विभिन्न किसान हितेषी योजनाओं से किसानों को अवगत करवाया है. उन्होंने बताया कि मृदा में जीवाणुओं का संरक्षण करना नितान्त आवश्यक है ताकि मृदा लम्बे समय तक गतिशील व कार्यशील बनी रहे. जीवन में खाद्य वस्तुओं को भी विविधिकरण के माध्यम से भोजन में शामिल करें जैसे श्री अन्न/मोटा अनाज एक लाभकारी एवं पौष्टिक अनाज कहलाता है. अतः इन्हें अपने दैनिक भोजन की थाली में शामिल भी करना चाहिए.

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पौधों के लिए सम्पूर्ण प्रकार का भोजन

डॉ. एम.एस. आचार्य (पूर्व अधिष्ठाता, उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, झालरापाटन) ने प्राकृतिक खेती में पौधों के लिए सम्पूर्ण प्रकार का भोजन किस तरीके से दिया जाए पर प्रकाश डाला है. प्राकृतिक खेती में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न घटकों जैसे पेड़ पौधों की पत्तियों से लीफ मेन्योर व कम्पोस्ट टी बनाने की प्रायोगिक विधि बताई है. किसानों को इस प्रकार के घटक खेत पर ही बनाकर खेती किसानी में डालने के लिए आह्वान किया. इन घटकों के उपयोग से मृदा में जीवांश पदार्थ की आपूर्ति निरन्तर बनायी जा सकती है, जिससे मृदा के स्वास्थ्य को लम्बे समय तक सुचारू बनाया जा सकता है.

खेती में ढैंचा की उपयोगिता लाभदायक

डॉ. उमेश धाकड़ ने प्राकृतिक खेती में ढैंचा की उपयोगिता बताई है. इसके उपयोग से मृदा में लाभदायक सूक्ष्म जीवों को बढ़ाने में सहायता मिलती है. ढैंचा की हरी खाद मृदा के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने में अतुलनीय योगदान देती है. अतः किसानों को प्रतिवर्ष हरी खाद करने की पहल करनी चाहिए.

प्रशिक्षण और जागरूकता का कार्यक्रम

प्रशिक्षण प्रभारी एवं केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. सेवा राम रूण्डला ने एक दिवसीय प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुये बताया कि इस प्रशिक्षण व जागरूकता कार्यक्रम को सैद्धान्तिक व प्रायोगिक कालांशों के माध्यम से करवाया गया है. प्राकृतिक खेती स्थानीय उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं न्यायसंगत उपयोग पर निर्भर होती है. इस खेती में संश्लेषित रसायनों का उपयोग में नहीं किया जाता है बल्कि प्राकृतिक खेती के स्तम्भों जैसे बीजामृत, घंजीवमृत, जीवामृत, मल्चिंग, वापसा, वानस्पतिक काढ़ा, गौ मूत्र, नीमास्त्र, हरीखाद आदि का अनुप्रयोग किया जाता है. इससे कृषिगत लागतों में कटौती होने के साथ मानव, पशु, पर्यावरण की गुणवत्ता एवं मृदा स्वास्थ्य में सकारात्मक सुधार होता है. कार्यक्रम के दौरान प्राकृतिक खेती प्रदर्शन प्रक्षेत्र का भ्रमण करवा कर किसानों को लाभान्वित करवाया.

मृदा और जल जांच के महत्त्व

गोविन्द नागर (कृषि अधिकारी, कार्यालय सहायक निदेशक), कृषि विभाग, झालावाड़ ने प्राकृतिक खेती के प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा संचालित विभिन्न किसान हितेषी योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इन योजनाओं के माध्यम से किसान अपनी कृषि प्रणाली में नवाचार करते हुए खेती से वर्षभर आमदनी प्राप्त कर सकते है. मृदा व जल जांच के महत्त्व व उपयोगिता के बारे में समझाया.

English Summary: one day training awareness program organized on natural farming in Krishi Vigyan Kendra Jhalawar
Published on: 02 April 2024, 07:15 PM IST

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