किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्माल सीतारमण ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव करने की जो बात कही है उससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी. इसलिए कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन होने के बाद किसान अपनी फसल मनचाही जगह उचित कीमत पर बिक्री करने के लिए स्वतंत्र होंगे. यहां तक कि उचित कीमत पाने के लिए वे अपनी फसल को अन्य राज्यों और यहां तक कि खुले बाजार में कहीं भी बिक्री करने के लिए स्वतंत्र होंगे. अभी तक किसानों को मंडी में एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) लाइसेंसधाकों को ही अपनी फसल बिक्री करनी पड़ती थी. किसानों को कभी-कभी नष्ट होने वाली फसल कम कीमत में ही बेच देनी पड़ती थी. हुगली के किसानों को तो अक्सर आलू सड़ने के डर से उसे औने-पौने दाम में बिक्री करने की खबरे आती रही है. इसलिए कि कि भंडारण का अधिकार भी सीमित था. लेकिन अवश्यक वस्तु अधिनिमय 1955 में संशोधन होने के बाद आलू, प्याज, तिलहन, दलहन आदि आवश्यक चीजों के भंडारण पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं रह जाएगा. केवल राष्ट्रीय आपदा और भूखमरी की स्थिति में ही भंडारण की सीमा रह जाएगी. आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन होने पर उसका पहला असर पश्चिम बंगाल पर पड़ेगा और यहां से अन्य राज्यों में आलू की आपूर्ति आसान हो जाएगी. आवश्यक चीजों के भंडारन की सीमा खत्म हो जाने के बाद पश्चिम बंगाल के आलू किसानों की आर्थिक स्थिति कुछ बेहतर हो सकती है. इसलिए कि वे खुले बाजार में मनचाही कीमत पर आलू की बिक्री कर सकते हैं और यहां तक कि अन्य राज्यों में भी आपूर्ति कर सकते हैं.
आलू उत्पादन में पश्चिम बंगाल आत्म निर्भर है. राज्य में 4.6 लाख हेक्टेयर भूमि में आलू की खेती होती है. साला अधिकतम एक लाख टन आलू का उत्पादन होता है. राज्य के हुगली, बर्दवान, बाकुड़ा और मेदिनीपुर जिले में विस्तृत भू खंड पर आलू की खेती होती है. घरेलू खपत 65 लाख टन है. उच्च गुणवत्ता वाले बंगाल के ज्योति आलू की बाजार में अधिक मांग है. राज्य में 65 लाख टन आलू की जरूरत है और शेष की अन्य राज्यों में आपूर्ति कर किसान अच्छी आय करने की स्थिति में है. उत्तर प्रदेश और पंजाब के बाद पश्चिम बंगाल देश में अधिक आलू उत्पादक राज्यों में शुमार है. लेकिन उत्पादन अधिक होने के कारण किसानों को राज्य में ही रियायत दर में उन्हें की बिक्री कर देनी पड़ती है.
स्थानीय व्यापारियों द्वारा किसानों से कम कीमत में आलू खरीद कर जमाखोरी कर देने से कभी-कभी बाजार में इसकी कीमतें बढ़ जाती है. 2014 में आलू का अधिक उत्पादन होने के बावजूद साल के मध्य में स्थानीय बाजारों में किमतें बढ़ गई थी. किमतों में इजाफा होने के बाद मांग भी बढ़ गई और बाजारों में इसकी कमी भी महसूस होने लगी. बाध्य हाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर सरकार को राज्य में अलग अलग विपणन केंद्र से आलू की बिक्री करनी पड़ी. इससे भी स्थिति में सुधार नहीं आया तो मुख्यमंत्री ने अन्य राज्यों में आलू की आपूर्ति पर रोक लगा दी. इससे झारखंड और ओड़िशा आदि में आलू को लेकर हाहाकर मच गया. अन्य पड़ोसी राज्यों ने भी पश्चिम बंगाल को मछली, अंडा, तेल और दाल आदि की आपूर्ति रोक देने की धमकी तक दे डाली. तब जाकर ममता पिछे हटीं और फिर बंगाल से अन्य राज्यों में आलू की आपूर्ति को छूट दी गई. आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन होने के बाद पश्चिम बंगाल के किसान उचित किमत पर आलू की बिक्री करने के लिए स्वतंत्र होंगे. घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद पश्चिम बंगाल से 30-35 लाख टन आलू की आपूर्ति तो अन्य राज्य में कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते ही हैं. राज्य सचिवालय नवान्न सूत्रों के मुताबिक कृषि उत्पाद के लिए बाजार खोले देने और किसी तरह का नियंत्रण नहीं रखने पर राज्य में आधिक आलू उत्पादन होने के बावजूद स्थानीय बाजार में किमतें बढ़ सकती है. इसलिए कि किसान को बाहर के व्यापारी से अधिक दाम मिलेगा तो वह वहीं अपनी फसल बिक्री करेंगे. स्थिति से निपटने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार भी अधिक से अधिक कृषि उत्पाद के भंडारण के लिए बड़े-बड़े गोदाम तैयार करेगी और सड़ने-गलने वाले कृषि उपज को सुरक्षित रखने के लिए ढांचागत सुविधाएं विकसित करेगी.