जिस बिल को लेकर पिछले काफी दिनों से राजधानी दिल्ली की सियासी फिजा गरमाई हुई थी. आज आखिरकार काफी लंबी कश्मकश के बाद वही हो गया, जिसका डर था. दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति में कमी आ गई है और परोक्ष रूप से ही सही, मगर केंद्र सरकार की शक्ति में अच्छा खासा इजाफा हुआ है. बेशक, दिल्ली सरकार ने उन सभी कोशिशों को अंजाम दिया था, जिससे की ऐसा कुछ भी न हो, लेकिन अफसोस आखिरी पड़ाव पर आकर काफी लंबी कश्मकश के बाद ही सही, मगर गेंद केंद्र सरकार के पाले में ही गिरी है. आखिर क्या है पूरा माजरा, आखिर कैसे हुई दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति कम, जानने के लिए पढ़िए हमारी यह खास रिपोर्ट...
यहां जानें पूरा माजरा
यहां हम आपको बताते चले कि बीते 22 मार्च को केंद्र सरकार एक बिल लेकर आई थी, जिसका नाम था राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन. इस बिल के तहत जहां दिल्ली सरकार की शक्ति को न्यूनतम किया गया. वहीं परोक्ष रूप से ही सही, मगर केंद्र सरकार की शक्ति में अच्छा खासा इजाफा हुआ. वो कैसे? तो वो ऐसे कि इस बिल के पारित होने के बाद दिल्ली सरकार को कोई भी कार्यकारी निर्देश लेने के लिए सर्वप्रथम उपराज्यपाल अनिल बैजल से निर्देश लेने होंगे और जैसा कि आप सभी को पता ही है कि उपराज्यपाल की नियुक्त प्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार की तरफ से होती है. ऐसे में दिल्ली सरकार के मन में इस बात को लेकर आशंका थी कि कहीं अगर यह बिल पारित हो गया, तो उनकी कार्यकारी शक्तियों में में इसका सीधा कुठाराधात होगा, जिससे क्षुब्ध होकर केजरीवाल सरकार ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा था, मगर अफसोस लगता है कि दिल्ली सरकार के किसी भी निशाने का केंद्र सरकार पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा और आखिरकार गेंद केंद्र सरकार के पाले में जाकर ही गिरी.
पहले तो यह बिल महज लोकसभा और राज्यसभा से पारित ही हुआ था, मगर आज इसे केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति से मंजूरी लेने के बाद अधिसूचित भी कर दिया है, जिसके बाद अब यह बिल दिल्ली में प्रभावी हो चुका है. इस बिल के पारित होने के बाद दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों में कमी आई है. वहीं, इस बिल के अधिसूचित किए जाने के बाद दिल्ली सरकार ने इसे केंद्र सरकार द्वारा मनमानी भरा कदम और जम्हूरियत की हत्या बता रही है. दिल्ली सरकार का दो टूक कहना है कि हमें दिल्ली की जनता ने चुनकर यहां भेजा है. ऐसे में केंद्र सरकार का यह बिल दिल्ली जनता के मताधिकार पर सीधा हमला है.
आखिर इस बिल से क्यों क्षुब्ध है दिल्ली सरकार
इस बिल के तहत अब दिल्ली सरकार को कोई भी विधायी कार्य करने से पहले उपराज्यपाल को 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले ही भेजना होगा. माना जा रहा है कि इससे दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच आने वाले दिनों में टकराव बढ़ सकता है.