मधुमक्खियों के छत्ते या मधुमक्खी पालन को एपिकल्चर कहा जाता है. मधुमक्खी पालन उतना ही पुराना है जितना की इतिहास. हनीबीज को साहित्य, दर्शन, कला, लोककथाओं और यहां तक की वास्तुकला में जगह मिली है. कहा जाता है कि मधुमक्खियां दुनिया में सबसे व्यापक रूप से अध्ययन किए जाने वाले कीटों में से एक हैं. यह एक ऐसा कीट है, जिसके जरिए हमें शहद पराग मोम और परपोलीस यानि मधुमक्खी का गोंद तथा रोयल जैली यानि मधुमक्खी का दूध तो मिलता ही है इसके साथ ही यह फसलों में फूलों में परागण के द्वारा निषेचन क्रिया करती हैं. यह फसल की उपज वृद्धि में भी सहायक हैं. अगर इनकी जीवनशैली के बारे में बात करें तो मधुमक्खी अपनी पूरी जिंदगी में कभी नही सोती. ये इतनी मेहनती होती है कि शहद के लिए दूर-दूर तक जाती है. तो चलिए आज हम आपको हनीबीज से जुड़ी हर एक जानकारी से रूबरू करवाते है.
शहद बाहर निकालना
आधुनिक तरीके से शहद बाहर निकाला जाता है, जिसमें अंडों (मधुमक्खी के बच्चे) का चैम्बर अलग होता है. शहद चैम्बर में भर जाता है. शहद भर जाने पर उसका फ्रेम सील कर दिया जाता है. फिर उसके शील्ड भाग को चाकू से उसकी परत को उतारकर शहद फ्रेम से निष्कासक यंत्र में रखने से तथा उसे चलाने से सेन्ट्रीफ्यूगल बल से शहद निकल आता है.
मधुमक्खी पालन से आर्थिक आय-व्यय
मधुमक्खी पालन से फलों, सब्ज़ियों, दलहनी और तिलहनी फसलों पर परागण के द्वारा उपज की बढ़ोत्तरी तो होती ही है, इसके साथ-साथ इसके द्वारा उत्पादित शहद और मोम का लाभ भी मिलता है. इसकी स्थापना के प्रथम वर्ष में तीन मौन वंश ( मधुमक्खी) से 20 से 25 किलोग्राम शहद का उत्पादन करके करीब 2000 से 2500 रूपये की आय प्रति वर्ष होती है. दूसरे वर्ष में केवल 300 से 350 रूपये व्यय करके भी आप शहद का उत्पादन करके करीब 3500 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक की प्रतिवर्ष आय कमाई जा सकती है.
मधुमक्खी की कॉलोनी को शक्तिशाली कैसे बनाएं
1) प्रवासी मधुमक्खी पालन
विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग समय पर मधु स्त्राव से लाभ उठाने के लिये मौनवंशो व मौनालय को उन क्षेत्रों में उचित समयों पर स्थानान्तरित करके मौनपालन करने को प्रवासी या सचल मौनपालन कहते हैं. प्रवासी मौनपालन से हम मौनवंशो को अधिक शक्तिशाली बना सकते है और अधिक क्षेत्रों में पर-परागण का लाभ भी ले सकते है.
2) स्थानान्तरण करने से पहले मौन वंशो की तैयारी
यात्रा की दूरी के अनुसार मौनवंशो में पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कर देनी चाहिए. ऐसा करने के लिए या तो शक्तिशाली वंशो से शहद वाले छत्ते निकाल कर कमजोर वंशो को दे दें या फिर कुछ दिन पहले ही जरूरत अनुसार चीनी के घोल की कृत्रिम खुराक दे दें. चीनी का घोल ज्यादा न दें क्योंकि मौन इसे संभाल नहीं सकेंगी और फालतू चीनी का घोल छत्तों से मौनगृह में गिर सकता है जिससे दूसरे वंशो की मक्खिंया चोरी करना शुरू कर सकती है.
यदि मौनवंशो में पका शहद ज्यादा हो तो मौनवंशो को स्थानान्तरित करने से एक सप्ताह पहले शहद निकाल लेना चाहिए. गर्मी के मौसम में मौन गृह के प्रवेश द्वार पर लोहे की जाली का टुकड़ा लगा दें और जालीदार अंतरपट भी उपयोग में लाएं ताकि यात्रा के दौरान हवा का संचार होता रहे. यदि मौनवंश काफी शक्तिशाली अथवा सुपरों पर हो तो पहले उनका विभाजन कर लें. विभाजन किए वंशो में खाली फ्रेम डालकर 10-10 फ्रेम पूरे कर लें अथवा अंत वाले फ्रेम के बाहर दोनों तरफ सटाकर, चैंबर में कील ठोक दें ताकि यात्रा के दौरान फ्रेम हिल-डुल न सकें.
मौनवंशो का प्रवास उस समय करें जब पुरानी जगह पर मधुस्त्राव काल समाप्त हाने वाला हो और मौनवंशों में शिशुओं की सख्या भी कम हो. यात्रा से पहली शाम जब सारी मौन काम करना बंद कर दें और गृह के अन्दर हों तो मौनगृह द्वार पर लोहे की जाली का टुकड़ा लगा दें ताकि नई जगह पर जाकर मौन एकदम बाहर ना निकलें. गर्मी के मौसम में मौन गृहों के स्थानान्तरण के लिये देर शाम, रात्रि या सुबह का समय या जब गर्मी कम हो ठीक रहता है.
अगर उचित स्थान बहुत दूर हो और वहां जाने के लिये कई दिन लगते हो तो रास्ते में एक-दो बार रूक जाना चाहिए. दो दिन बाद यात्रा शुरू करने से पहली शाम को फिर से मौनगृहों को स्थानान्तरण के लिये तैयार करें. नई जगह पर मौनवंशो को उतार कर अपनी-अपनी जगह, एक-दूसरे से उचित दूरी पर रखें. सभी मौनवंश उतारने के बाद मौनगृह द्वार खोल दें. दूसरे दिन मौनवंशो का निरीक्षण करें.
परागण के लिये मौनवंश लेकर जाने हो तो फसल में कम से कम 10 प्रतिशत फूल आ गए हो नहीं तो मौनें उस फसल को छोड़कर साथ में ही फूलों वाली किसी और फसल पर जाने लग जाएंगी.
मौनगृह गाड़ी में रखते समय ध्यान रखें कि यदि ट्रेक्टर - ट्राली है तो मौनगृहों की लम्बाई वाली साईड ट्राली हो तो मौनगृह की लम्बाई साधन की चैड़ाई के समानान्तर रखें.
3.कृत्रिम भोजन
मधुमक्खियों को अन्य पालतू पशुओं की तरह प्रतिदिन भोजन देने की जरूरत नहीं होती. जहां तक संभव होता है मधुमक्खियां अपने परिवार की आपूर्ति के लिये फूलों से पराग और मकरंद इक्ट्ठा करती रहती है. परन्तु कुछ ऐसे अवसर और परिस्थितियां है जिनमें मधुमक्खियों को प्रकृति में पराग और मकरंद नहीं मिलता. ऐसे समय में उनको सुचारू रूप से पालने के लिए कृत्रिम भोजन की आवश्यकता पड़ती है. मकरंद से इन्हे ऊर्जा मिलती है और पराग से प्रोटीन जो शरीर के विकास में सहायक होते हैं.
उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में जून से सितम्बर तक मधुमक्खियों के लिए भोजन के अभाव का समय होता है जिसे ’’डर्थ पीरियड’’ कहते हैं. मधुमक्खियां फूलों से मकरंद और पराग इक्ट्ठा करके अपने गृह में संचय इसलिए करती है कि अभाव वाले समय में इसका उचित उपयोग करके अपने परिवार का निर्वाह कर सकें. क्योंकि, मधुमक्खी पालक समय-समय पर मधुमक्खी वंशो से शहद निकालते रहते हैं और मधुमक्खी वंशो के पालन-पोषण के लिए आवश्यक शहद नहीं छोड़ते. ऐसे हालात में रानी मधुमक्खी या तो अण्डे देना बन्द कर देती हैं या बहुत कम अण्डे देती हैं. इसके साथ ही प्रौढ़ कमेरी मधुमक्खियां अपना जीवन काल पूरा होने पर मरती जाती हैं. इससे मधुमक्खी वंश कमजोर होकर मर जाते हैं. कभी-कभी कीटनाशक पदार्था के विषैले प्रभाव से बचाने के लिए मधुमक्खी वंशो को बंद करके ऊपर बोरियां ढ़क दी जाती है ताकि जहरीली दवाओं का दुष्प्रभाव न पड़े. इन मौनवंशो को भी कृत्रिम भोजन देने की आवश्यकता पड़ती है. कृत्रिम भोजन में पराग एवं मकरंद के आवश्यक तत्व होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि उस भोजन के लिए मधुमक्खी उसकी तरफ आकर्षित हो.
चीनी की चाशनी का भोजन एक साधारण कॉलोनी को 400.500 उस चीनी की चाशनी हर सप्ताह देनी चाहिए. इसके लिए 1 किलो ग्राम चीनी को 1 लीटर पानी में उबालकर व ठंडा करके मोमजामें के सफेद लिफाफे में भरकर ऊपर से गांठ या रबर लगाकर बंद कर देते है. प्रति डिब्बा एक लिफाफा मधुमक्खी वंशो को दिया जाता हैं. लिफाफा रखने के बाद उसमें पिन से 3-4 सुराख कर दिए जाते हैं. मधुमक्खियां इससे रस लेकर अपने छत्ते में इक्ट्ठा कर लेती हैं. जब भी कृत्रिम भोजन दें तो मौनालय में जितनी भी कॉलोनियां हो सबको एक साथ सांयकाल में दें. चाशनी बनाने में गुड़ शक्कर या शीरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए.