खेतीबाड़ी पर भारत के किसानों की आजीविका निर्भर रहती है, लेकिन वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों को खेती करना काफी महंगा पड़ रहा है. जी हाँ बढ़ते खाद और डीजल के दामों ने किसानों के लिए खेती करना मुश्किल कर दिया है. लगातार बढ़ती हुई महंगाई ने किसानों की रूचि खेती के प्रति ख़त्म सी कर दी है एवं किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है.
प्रदेश के किसानों का कहना है कि खेती में उपयोग होने वाले सभी जरुरत की चीजें जैसे डीजल, खाद, कीटनाशक एवं बीज की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि अब खेती से लागत भी निकलना असंभव हो रहा है. अब कर्ज के बोझ तले खेती करनी पड़ रही है. वहीँ बुंदेलखंड की सूखी धरती पर पानी की सबसे ज्यादा जरुरत पड़ती है, लेकिन डीजल के बढ़ते दामों ने खेत में सिंचाई कार्य भी बहुत महंगा पड़ रहा है.
वैज्ञानिकों द्वारा जानिए प्रदेश की महंगाई का हाल (Know The State's Inflation Condition By Scientists)
वैज्ञानिकों का कहना है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में गेहूं, मटर, चना, मूंगफली, उड़द, हल्दी, अदरक और मूंग आदि फसलों की खेती सबसे ज्यादा की जाती है. मगर महंगाई के चलते हर साल किसानों की लागत दोगुनी बढ़ रही है. अगर फसल में खर्च की बात करें, तो नाबार्ड के स्केल ऑफ फाइनेंस इन एग्रीकल्चर के मुताबिक, झांसी में एक हेक्टेयर गेहूं की फसल का खर्च 62 हजार रुपये लग रही है.
इसे पढ़ें- इफ्को ने बढ़ाई खाद की कीमत, देखिए नए दामों की सूची
कितने बढ़े दाम (How Much Did The Price Increase)
कृषि विभाग की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार, खाद/डीएपी की कीमत पिछले साल की तुलना में इस साल 650 से बढ़कर 1350 रुपये हो गई है. वहीँ एक हेक्टेयर खेत में करीब छह बोरी डीएपी एवं खाद लग जाती है. जिसमें कुल लागत 8100 रुपये आती है. वहीं, सिंचाई के लिए पानी की जरुरत के लिए डीजल का उपयोग किया जाता है. करीब एक हेक्टेयर में जुताई से लेकर कटाई तक पूरी क्रिया में करीब 300 लीटर से अधिक डीजल की खपत होती है. जिसमें यदि लागत की बात करें, तो डीजल की 96.49 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से 2,8947 रुपये खर्च आता है. इसके अलावा मजदूरी, बीज, कीटनाशक और अन्य खर्च को जोड़ लें, तो कुल मिलाकर 62 हजार रुपये का खर्च बैठता है.
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में बढ़ती महंगाई के चलते किसानों को अपनी गेहूं की फसल से करीब 22 हजार रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है. जिससे कम करने के लिए किसान अपने खेत में मजदूरी का कार्य खुद से करते हैं. साथ ही सिमित जमीन पर ही खेती भी करते हैं.