कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए नई तकनीकों पर कार्य चलता रहता है. हालांकि, पहले के मुताबिक अब कृषि क्षेत्र में काफी सुधार हो गया है. अगर मेघालय की बात करें, तो यहां पहले किसान पांरपरिक झूम कृषि प्रणाली खेती ज्यादातर अपनाते थे, लेकिन अब किसान इसे छोड़कर एकीकृत कृषि प्रणाली अपना रहे हैं. इसके पीछे आईसीएआर (ICAR) की अहम भूमिका है.
दरअसल, आईसीएआर के वैज्ञानिकों की मानें, तो पहले किसान पारंपरिक झूम तकनीक से खेती कर खेत को खाली छोड़ देते थे. मेघालय में भारी बारिश होने से पहाड़ों से पानी नीचे की ओर तेज बहाव के साथ गिरता है. इस बहाव में खाली पड़े सीढ़ीनुमा खेते से बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव होता था.
इसके चलते आईसीएआर द्वारा 1983-2006 के दौरान एक अध्ययन किया गया. इसमें बताया गया कि झूम खेती में शिफ्टिंग कल्चर की वजह हर साल 17.62 टन मिट्टी का कटवा होता है. इस वजह से प्रति हेक्टेयर 17.62 टन वार्षिक मिट्टी का नुकसान होता है. मगर अब यहां किसान एकीकृत कृषि प्रणाली अपना रहे हैं, जिससे उन्हें काफी मुनाफा हो रहा है. इसके साथ ही मिट्टी का कटाव भी कम हुआ है.
आईसीएआर ने विकसित किए विभिन्न आईएफएस मॉडल
एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) भूमि के रणनीतिक प्रबंधन में एक अभ्यास है, जिसकी मदद से खेती में जोखिम को कम करने, किसान की आमदनी को सुरक्षित करने और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाता है.
इसका मॉडल का मुख्य उद्देश्य स्थायी खाद्य उत्पादन को बढ़ाना है और कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर लचीलापन को बढ़ावा देना है. बता दें कि आईसीएआर ने विभिन्न आईएफएस मॉडल विकसित किए हैं.
मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कार्य
आपको बता दें कि सीढ़ीनुमा खेतों की मेड़ पर गिनी और झाड़ू घांस लगाई जाती है, ताकि मेड़ मजबूत रहे. यह पशुओं के लिए बेहतर चारा का काम भी करता है. ये सभी मिट्टी के कटाव की चुनौती से निपटने में मदद करते हैं.
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जैविक खेती को बढ़ावा
वैज्ञानिकों द्वारा बताया जा रहा है कि सुअर पालन, मुर्गी पालन और मछली जैसे पशुधन के एकीकरण से किसानों की आमदनी में वृद्धि हुई है. इसके साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए मिट्टी का कटाव रोकना जरूर है, इसलिए उच्च ढलानों वाले पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक वनों को बनाए रखना सुनिश्चित किया है.
इसेक अलावा मिट्टी और फसल उत्पादकता को बनाए रखने के लिए वर्मीकम्पोस्ट अपनाया जा रहा है. इतना ही नहीं, फसल अवशेष की रीसाइक्लिंग की जा रही है, साथ ही इंटरक्रॉपिंग को अपनाया जाता है.