जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर सीरियस हैं उनके लिए आई है एक बेहतरीन खबर. जी हां, छत्तीसगढ़ के कृषि विभाग की तरफ से सभी को तोहफे के रूप में पौष्टिक आटा तैयार करने का नया तरीका पता चला है जिससे कि बाजार के मिलावटी आटे को खरीदने से मुक्ति मिल सकती है.
मल्टीग्रेन आटा खाने के क्या है लाभ?
क्योंकि मल्टीग्रेन आटे में कई पौष्टिक अनाज होते हैं इसलिए ये कई तरह से फायदेमंद है, मोटापा कम करने से लेकर कमजोरी दूर करने तक ये काम में आता है. इसके अलावा डायबटीज के रोगियों के लिए भी ये आटा फायदेमंद है. इसके खाने से कब्ज और कॉलेस्ट्रोल की समस्या भी दूर होती है.
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने की शानदार पहल
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में चल रही रिसर्च पर आधारित मिलावटी आटे की जगह पौष्टिक आटा तैयार करने का काम जोरों-शोरों से किया जा रहा है. वैसे भी बाजारों में लोगों के बीच शुद्ध और बिना मिलावट वाले आटे की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है. कृषि विश्वविद्यालय के अंदर कृषि विज्ञान केंद्र (टेकरी) की ओर से ओम साईं राम स्वसहायता समूह की महिलाओं को शुद्ध मल्टीग्रेन आटा तैयार करवाने के लिए ट्रेनिंग दी गई. खुशखबरी यह है कि महिलाएं मल्टीग्रेन पौष्टिक आटा तैयार करने के बाद तकरीबन 2 क्विंटल आटा बाजार में बिक भी चुकी हैं.
समूह की महिलाएं पूरी कोशिश कर रही हैं कि मल्टीग्रेन शुद्ध आटे का जितना उत्पादन किया गया है उसकी खपत बाजार में बढ़ाई जा सके. इस कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए वह शहर के कई बाजारों में, सोसाइटी में, संचालित निजी संस्थाएं, किराने की दुकानों आदि जैसी जगहों में शुद्ध मल्टीग्रेन आटे को पहुंचा रही हैं.
अगर आप बाजार में मिलने वाले पौष्टिक आटे की जांच करने के लिए तह तक जाएं तो आप पाएंगे कि बाजार में बिक रहे आटे में केवल 9% मल्टी ग्रेन आटा मिलाया जाता है बाकि 91% गेहूं का ही आटा रहता है. लेकिन कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में स्व सहायता महिला समूह के द्वारा तैयार किए गए मल्टीग्रेन पौष्टिक आटे में गेहूं का आटा नहीं मिलाया गया है.
इस पौष्टिक आटे में इस्तेमाल किए गए हैं ढेरों अनाज
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वाइज चांसिलर डॉ. एस.के. पाटिल का कहना है की ढेर सारे अनाजों से मिलकर तैयार किए जा रहे. इस मल्टीग्रेन पौष्टिक आटे की मांग बाजार में बिक रहे आटे से ज्यादा हो रही है. दिन प्रतिदिन बढ़ रही मांग की वजह से ग्रामीण स्व सहायता महिलाओं के समूह को नया रोजगार मिलने की एक किरण दिखाई गई है ताकि वह आर्थिक रूप से किसी और पर निर्भर ना रहें और खुद को मजबूत बनाने के साथ-साथ जीवन में प्रगति भी कर पाएं.
डॉक्टर पाटिल आगे बताते हैं की कृषि विज्ञान केंद्र की ट्रेनिंग से महिलाओं के समूह ने चना, सोयाबीन, मक्का, रागी, ज्वार और बाजरा जैसे पौष्टिक अनाजों को सही मात्रा में मिलाकर मल्टीग्रेन आटा तैयार किया है.
सस्ता, शुद्ध और पौष्टिक है ये मल्टीग्रेन आटा
स्व सहायता महिलाओं के समूह का कहना है कि बाजार में बिक रहे मल्टीग्रेन पौष्टिक आटे में एक तो शुद्धता की गारंटी नहीं है और दूसरे ये महंगा होता है. लेकिन ये मल्टीग्रेन आटा पौष्टिक होने के साथ-साथ शुद्ध और सस्ता भी है.
कृषि विज्ञान केंद्र के इंचार्ज गौतम राय के मुताबिक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में तैयार किया गया ये मल्टीग्रेन आटा बहुत पौष्टिक है, क्योंकि इसमें 100 ग्राम की मात्रा में 25.23% प्रोटीन 17.31% फाइबर और 354.55 किलो कैलोरी मौजूद है. हालांकि जो पौष्टिक आटा बाजार में मिल रहा है उसमें 91% केवल गेहूं का आटा ही पाया जाता है और उसके अंदर केवल 9% मल्टीग्रेन उपलब्ध है.
स्वसहायता महिला समूह द्वारा बेहतरीन तरीके से तैयार किया गया मल्टीग्रेन आटा कानसेंटट्रेट कृषि विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद उत्पाद विक्रय केंद्र के जरिए प्रति 750 ग्राम आटा ₹150 के भाव पर बेचा जाता है. जो लोग बाजार में बिकने वाले मल्टीग्रेन आटा को तैयार करना चाहते हैं वह 750 ग्राम वाले मल्टीग्रेन आटे के कानसेंट्रेट को उपभोक्ता 7.5 किलोग्राम गेहूं के आटे में मिलाकर ऐसा कर सकते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा दी गई इस महत्वपूर्ण ट्रेनिंग से स्व सहायता महिला समूह की सदस्यों को स्वरोजगार का एक बेहतरीन अवसर प्रदान हो सकेगा और साथ ही इस पहल के जरिए कुपोषण की समस्या दूर करने में भी सहयोग प्राप्त किया जा सकेगा.