भारत में किसान खेती के साथ दूध बेचकर भी बढ़िया मुनाफा कमा लेते हैं. इसके लिए किसानों को पशुपालन करना पड़ता है. लेकिन बहुत से किसान मवेशियों की दूध देने की कमतर क्षमता को लेकर चिंतित रहते हैं.
किसान तंग आकर पशु चिकित्सकों और महंगी दवाइयों उनका इलाज कराते हैं. इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर तो असर पड़ता ही है साथ ही किसानों को धन खर्च भी करना पड़ता है. हालांकि किसान इन घासों को खिलाकर भी मवेशियों की दूध देने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं.
बरसीम घास दुग्ध उत्पान के लिए है लाभदायक
कहा जाता है कि हरी-हरी घास खाने से जानवर तंदरुस्त और रोगमुक्त रहते हैं. पशु चिकित्सकों के अनुसार, बरसीम घास दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही लाभदायक है. इसमें पशुओं के लिए आवश्यक कई तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. इसे खाने से पशुओं का पाचन तंत्र भी अच्छा रहता है. साथ ही बरसीम घास के सेवन से गाय और भैंस की दूध देने की क्षमता भी बढ़ जाती है.
रिजका घास रबी की प्रमुख दलहनी फसल
बरसीम घास की खेती करने का यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. हल्की सिंचाई में ही पूरे सीजन के लिए चारे की व्यवस्था हो जाती है. बरसीम के अलावा रिजका घास भी दुधारू मवेशियों के लिए एक बढ़िया उपाय है. इसे भी मवेशियों को देने से उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है.
रिजका रबी की प्रमुख दलहनी फसल है. यह कम समय और लागत में तैयार हो जाती है. इसकी खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर के महीने को बेस्ट माना जाता है.
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50 दिनों में तैयार हो जाती है नेपियर घास
बरसीम और रिजका के बाद मवेशियों से दुग्ध उत्पादन के लिए नेपियर घास को बेहतरीन माना जाता है. ये देखने में गन्ने की तरह लगती है. पशुओं के लिए चारे के रूप में इसे बढ़िया आहार माना गया है. इसकी खासियत यह है कि इसकी फसल महज 50 दिनों में ही तैयार हो जाती है.
पशु चिकित्सकों के अनुसार, इन सभी घासों का सेवन मवेशियों को कराने के कुछ दिनों के भीतर ही दूग्ध उत्पादन में लाभ मिलने लगते हैं.