आधुनिक समय में फसल में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खर-पतवार नाशकों का प्रयोग काफी बढ़ गया है, जिससे कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों की कमी आ गई है. फसलों में रसायनों का अनियंत्रित इस्तेमाल किया जा रहा है, इसलिए मिट्टी का स्वास्थ्य भी लगातार बिगड़ रहा है. ऐसे में एक बेहतर विकल्प प्राकृतिक खेती या अमृत कृषि का सामने आया है. बता दें कि झारखंड की बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की बीएयू-बीपीडी सोसाइटी प्राकृतिक खेती या अमृत कृषि को बढ़ावा दे रही है.
क्या है अमृत कृषि
जब अमृत कृषि का प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया, तब अमृत कृषि के उत्पाद में पोषक तत्वों की मात्रा रासायनिक कृषि पद्धति के उत्पादों की तुलना में काफी अधिक पाई गई है. आज के समय में मिट्टी में पोषक तत्व घट रहे हैं, इसलिए दलहनी, तिलहनी फसलों, सब्जी, फलों, मसालों में विटामिन, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व कम हो रहे है. सभी जानते हैं कि कोरोना काल में शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत रखने लिए पोषक तत्व वाले उत्पादों की आवश्यकता काफी बढ़ गई है. ऐसे में बाजार में अमृत कृषि के उत्पाद हॉट केक की तरह बेचे जा रहे हैं.
पोषक तत्वों की कमी दूर होगी
कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 100 साल पहले की तुलना में आज पालक में आयरन की उपलब्धता 20वें हिस्से से भी कम रह गई है. यही हाल बाकी हरी सब्जियों का भी है. ऐसे में कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों को वापस लाने का तरीका अमृत कृषि ही है. बता दें कि इस बात को साल 2018 में एम्स दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय न्यूट्रिशन कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत शोधपत्र में साबित किया गया है.
स्कूलों में जैविक पोषण वाटिका
आपको बता दें कि बीएयू-बीपीडी सोसाइटी के मार्गदर्शन में रांची, बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग और खूंटी जिले के किसान अमृत कृषि कर रहे हैं. किसानों ने सोसाइटी और जिला प्रशासन की मदद से रांची के 10 कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों और दुमका के 10 सरकारी स्कूलों में अमृत कृषि से जैविक पोषण वाटिका स्थापित की है. खास बात है कि बीएयू-बीपीडी सोसाइटी ने किसानों के उगाए गए जैविक कृषि उत्पादों को बेचने के लिए कई स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया है. इसके मार्गदर्शन में चाकुलिया के 50 से 60 किसान अमृत कृषि और देसी बीज से उत्पादन कर रहे हैं. उनके द्वारा उत्पादित काला चावल और लाल बासमती दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में 250 रुपए किलो बिक रहा है. इसके अलावा देसी बीज से उत्पादित मूंग और अरहर भी 150 से 170 रुपए किलो बिक रहा है. इसके साथ ही रासायनिक कृषि से उत्पादित धान 15 से 20 रुपए किलो बिक रहा है. मगर खास बात है अमृत कृषि और देसी बीज से उत्पादित धान 40 से 60 रुपए किलो बिक रहे हैं.
अमृत कृषि में गोबर-गोमूत्र का इस्तेमाल
अमृत कृषि में रासायनिक खादों और कीटनाशकों की जगह गोबर-गोमूत्र का इस्तेमाल होता है. इसके साथ ही देसी बीजों का इस्तेमाल किया जाता है. खास बात है कि इसमें लागत औप पानी की कम जरूरत पड़ती है. इस तरह पोषक तत्वों की उपलब्धता काफी अधिक होती है.