भारत में बहुत सारी ऐसी गौशालाएं हैं जिन्हें चलाने के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारे धन देती है. इसी कड़ी में हरियाणा की 530 गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'गो मेक कास्ट' मशीन पर सरकार के ओर से 90 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है. गौरतलब हैं कि अभी तक करीब 22 गौशालाओं में गो मेक मशीन लगाई जा चुकी है. एक गो मेक मशीन की कीमत 50 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक है.
बता दे कि गो मेक मशीन गौशालाओं को चलाने वाले लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में काफ़ी कारगर साबित हो रही है. इस मशीन के द्वारा गाय, भैस के गोबरों को लकड़ी के रूप में बदला जाता है. तक़रीबन 50 हजार रुपए कीमत की ये मशीन एक घंटे में 500 किलोग्राम गोबर को लकड़ी में तब्दील कर देती है.
गोबर से बनी इन लकड़ियों को बाजार में मंहगे दाम पर आसानी से बेचा जा सकता है. बाजार में भी गाय के गोबर से बनी इन लकड़ियों की मांग दिनोंदिन बढ़ रही है. गौशाला के अलावा डेयरी उद्योग से जुड़े किसान भी गो मेक कास्ट मशीन खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. मशीन निर्माण उद्योग से जुड़े दरबारा सिंह के मुताबिक, वह इस व्यवसाय में 2012 से काम कर रहे है. पहले लोगों का इस मशीन के प्रति रूझान नहीं था लेकिन अब गौशालाओं के अलावा डेयरी फार्म का काम करने वाले भी इस तकनीकी का इस्तेमाल करने लग गए हैं.
प्रदेश में गो सेवा आयोग के गठन का नोटिफिकेशन साल 2010 में जारी किया गया था. जिसके बाद 2013 में पहली बार आयोग के पास 5 लाख रुपए का बजट प्रदेश सरकार के द्वारा दिया गया था. इसी कड़ी में सरकार ने वर्ष 2018-19 में गोशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बजट को कई गुना बढ़ाकर तक़रीबन 30 करोड़ रुपए कर दिया है. इसी बजट से आयोग गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गो मेक मशीन पर सब्सिडी देकर एक नई पहल कर रहा है.
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 'गो मेक' मशीन गोबर से लकड़ी बनाने के अलावा और भी कई कामों में इस्तेमाल की जा सकती है. इस मशीन के जरिए खेतों में पड़ी पराली, गेहूं का भूसा, सरसों की तूड़ी, ग्वार की तूड़ी आदि पड़े वेस्ट मेटिरियल से भी आमदनी की जा सकती है. इस वेस्ट मेटिरियल को किसान अपनी पंसद से मशीन में डाई लगाकर गोल, चकोर व आवश्यकता अनुसार साइज की भी लकड़ी बना सकते हैं. इससे किसानों को खेत में पराली व अन्य वेस्ट मेटिरियल जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे पर्यावरण भी पर्यावरण अच्छा रहेगा.