शरबत का नाम हो और रूह-अफजा की बात ना आए…ऐसा हो ही नहीं सकता. गर्मी का मौसम है, रमजान का महीना चल रहा है. रमजान में रूह-अफजा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है. बता दें 2019 में रमजान के महीने में लोग रूह-अफजा कमी की शिकायत कर रहें थे.
दरअसल रूह-अफजा बाजार में उपलब्ध न होने पर तरह-तरह की अफवाहें आई थी कि रूह-अफजा अब बाजार से गायब हो रहा हैं.
बाजार में सप्लाई बंद होने की वजह से रूह-अफजा नहीं मिल रहा था, डिमांड ज्यादा थी और सप्लाई कम, ऐसे में पसंद करने वाले लोग परेशान थे. वहीं कंपनी का कहना था कि कच्चेमाल के चलते कुछ समय के लिए उत्पादन बंद कर दिया गया था. इसकी विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://youtu.be/VQV9pkUxbug
रूह-अफजा की शुरूआत एक हकीम ने गर्मी से बचाने वाले एक टॉनिक के रूप में की थी. चलिए आपको बताते हैं शुरूआती दिनों में बर्तन में बिकने वाला रूह-अफजा देखते ही देखते कैसे 400 करोड़ का ब्रांड बन गया.
जानिए ! कैसे फेमस हुआ रूह-अफजा
बात 1907 की है, यूनानी हर्बल चिकित्सा के एक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने रूह-अफजा की गाजियाबाद में ईजाद किया था. साल था 1906, उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द नामक एक क्लीनिक खोला था और 1907 के दौरान दिल्ली में भीषण गर्मी और लू से काफी लोग बीमार पड़ने लगे. तब हकीम अब्दुल मजीद मरीजों को इसी रूह-अफजा की खुराक देने लगे, लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह-अफजा कमाल का साबित हुआ. देखते ही देखते यह दवाखाना रूह-अफजा की वजह से पहचाना जाने लगा. और यह सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई. और लोग दवाखाने में दवा लेने नहीं, बल्कि रुह-अफजा लेने के लिए जाया करते थे, लेकिन अब रूह-अफजा दवा या टानिक ना रहकर एक प्यास बुझाने बाला शरबत बन गया है.
पहले रूह-अफजा को बर्तनों में दिया जाता था लेकिन बढ़ती मांगो को लेकर रूह-अफजा बोतलों में दिया जाने लगा है. रुह-अफजा की ब्रांड वैल्यू करीब 400 करोड़ रुपए है, तो ये थी टॉनिक से शुरु होकर करोड़ो लोगों तक पहुंचने वाली रूह-अफजा की कहानी.