जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गिलोय एक बेहद कारगर औषधि है. इसके द्वारा स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है, लेकिन बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया में गिलोय को लेकर भ्रामक सन्देश फैलाया जा रहा था कि इसके सेवन से लिवर पर प्रभाव पड़ता है और लिवर खराब हो जाता है.
अब इस भ्रामक सन्देश को संज्ञान में लेते हुए आयुष मंत्रालय ने अपना बयान जारी किया है.दरअसल मीडिया जगत में जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरीमेंटल हेपेटॉलॉजी (यह इंडियन नेशनल एसोसिएशन फॉर दि स्टडी ऑफ दि लिवर (आईएनएएसएल) की समीक्षा पत्रिका है.) में छपे एक अध्ययन के आधार पर खबरें लिखी गई हैं, जिसमें यह दावा किया गया है कि टिनोसपोरा कॉर्डीफोलिया (टीसी) जिसे आम भाषा में गिलोय या गुडुची कहा जाता है, उसके इस्तेमाल से मुम्बई में छह मरीजों का लिवर फेल हो गया था.
गिलोय है कई समस्याओं में बेहद कारगर (Giloy is very effective in many problems)
अब आयुष मंत्रालय को लगता है कि उक्त मामलों का सिलसिलेवार तरीके से जरूरी विश्लेषण करने में लेखकों का अध्ययन नाकाम है. इसके अलावा, गिलोय को लिवर खराब होने से जोड़ने की ख़बर भी भ्रामक और भारत में पारंपरिक औषधि प्रणाली (Traditional Medicine System) के लिए खतरनाक है, क्योंकि आयुर्वेद में गिलोय को लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है. कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को दूर करने में गिलोय (Giloy) बेहद कारगर साबित हो चुकी है.
लेखकों ने जड़ी के घटकों का विश्लेषण नहीं किया (The authors did not analyze the constituents of the herb)
इसके अलावा, आयुष मंत्रालय ने कहा है कि अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद, यह भी पता चला कि अध्ययनकर्ताओं ने उस जड़ी के घटकों का विश्लेषण नहीं किया, जिसे मरीजों ने लिया था. यह जिम्मेदारी लेखकों की है कि वे यह सुनिश्चित करते कि मरीजों ने जो जड़ी खाई थी, वह गिलोय ही थी या कोई और जड़ी. ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए लेखकों को किसी वनस्पति वैज्ञानिक की राय लेनी चाहिए थी या कम से कम किसी आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए था.
टिनोसपोरा क्रिस्पा का लिवर पर पड़ सकता है नकारात्मक प्रभाव (Tinospora crispa can have negative effects on the liver)
दरअसल, ऐसे कई अध्ययन हुए हैं, जिनके अनुसार यदि जड़ी-बूटियों की सही पहचान नहीं की गई, तो उसके हानिकारक परिणाम मिल सकते हैं. गिलोय से मिलती-जुलती एक जड़ी टिनोसपोरा क्रिस्पा (Tinospora Crispa) भी है, जिसका लिवर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. लिहाजा, गिलोय जैसी जड़ी पर जहरीला होने का ठप्पा लगाने से पहले लेखकों को मानक दिशा-निर्देशों के अंतर्गत उक्त पौधे की सही पहचान करनी चाहिए थी, जोकि उन्होंने नहीं की.
अधूरी जानकारी से पैदा होती हैं गलतफहमियां (Misunderstandings arise from incomplete information)
इसके अलावा, स्टडी में भी कई गलतियां हैं. यह बताया ही नहीं गया है कि मरीजों ने कितनी खुराक ली थी या उन लोगों ने यह जड़ी किसी और दवा के साथ ली थी क्या. इसके अलावा, स्टडी में मरीजों के पुराने या मौजूदा मेडिकल रिकॉर्ड पर भी गौर नहीं किया गया है. अधूरी जानकारी के आधार पर कुछ भी प्रकाशित करने से गलतफहमियां पैदा होती हैं और आयुर्वेद की युगों पुरानी परंपरा बदनाम होती है.
आयुष मंत्रालय के मुताबिक, वर्तमान समय में ऐसे तमाम वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं, जिनसे साबित होता है कि गिलोय लिवर, धमनियों आदि को सुरक्षित करने में कारगार है. इसके अलावा, गिलोय और उसके सुरक्षित इस्तेमाल पर सैकड़ों स्टडी भी मौजूद हैं.आयुर्वेद में सबसे ज्यादा लिखी जाने वाली औषधि गिलोय ही है. गिलोय में लिवर की सुरक्षा के कई गुण मौजूद हैं. हालांकि, इस संबंध में उसके सेवन तथा उसके प्रभाव के स्थापित मानक मौजूद हैं. किसी भी क्लीनिकल अध्ययन या फार्मा को-विजिलेंस द्वारा किये जाने वाले परीक्षण में उसका विपरीत प्रभाव नहीं मिला है. ऐसे में अखबार में छपे लेख का आधार सीमित और अध्ययन भ्रामक है.
औषधियों के प्रयोग और घरेलू नुस्खों से संबंधित जानकारियाँ पाने के लिए जरुर पढ़े कृषि जागरण की हिंदी वेबसाइट के लेख.