सर्दी के मौसम में फलों की खेती में पोषण प्रबंधन एक महत्वपूर्ण पहलू है जो सुनिश्चित करता है कि पौधों को सही मात्रा में पोषण मिलता है, ताकि वे सुदृढ़ और स्वस्थ रहें और उच्च गुणवत्ता के फलों की संवृद्धि हो सके. इसमें कुछ मुख्य पोषण तत्वों की उचित मात्रा में प्रदान की जानी चाहिए. नाइट्रोजन, जो पौधों के सही विकास और गुणवत्ता के लिए आवश्यक है, इस मौसम में संबंधित है. धीरे-धीरे उर्वरक देना फलों की सही बुवाई और उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है. फॉस्फोरस भी फलों की सुधार में मदद करता है और उच्च गुणवत्ता वाले फलों की प्राप्ति में सहायक है. पॉटैशियम फलों की स्वास्थ्यशाली बूंदीदार बनावट के लिए आवश्यक है और फलों की उच्च गुणवत्ता में सुधार करता है.
जल संरक्षण एक और महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि सही मात्रा में पानी देना फलों के सही विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है. इसके अलावा, मैक्रो और माइक्रो आपूर्ति की अच्छी समृद्धि भी सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि पौधों को सम्पूर्ण आवश्यक तत्व मिलें और फलों में वृद्धि हो. इस प्रकार, सर्दी के मौसम में फलों की पोषण प्रबंधन रखना एक सुरक्षित और उत्तम उत्पादन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
स्ट्रॉबेरी
स्ट्रॉबेरी एक स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है, जिसकी खेती कई देशों में की जाती है. स्ट्रॉबेरी की अच्छी उपज के लिए उचित उर्वरक प्रबंधन आवश्यक है. स्ट्रॉबेरी को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, और सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है.
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नाइट्रोजन स्ट्रॉबेरी की वानस्पतिक वृद्धि के लिए आवश्यक है. यह पौधों को हरी पत्तियां, मजबूत तने, और फूलों के विकास में मदद करता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में नाइट्रोजन की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर 100-150 किलोग्राम होती है.
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फास्फोरस फल लगने और विकास के लिए आवश्यक है. यह पौधों की जड़ प्रणाली के विकास को भी बढ़ावा देता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में फास्फोरस की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम होती है.
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पोटैशियम फलों के आकार और गुणवत्ता को बढ़ावा देता है. यह पौधों को सूखे और रोगों से भी बचाता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में पोटैशियम की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर 60-90 किलोग्राम होती है.
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कैल्शियम पौधों की जड़ों और फलियों के विकास के लिए आवश्यक है. यह पौधों को कैल्शियम की कमी से होने वाले रोगों से भी बचाता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में कैल्शियम की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर 20-30 किलोग्राम होती है.
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मैग्नीशियम पौधों की हरी पत्तियों के विकास के लिए आवश्यक है. यह पौधों को मैग्नीशियम की कमी से होने वाले रोगों से भी बचाता है. स्ट्रॉबेरी की खेती में मैग्नीशियम की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर 10-15 किलोग्राम होती है.
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सूक्ष्म पोषक तत्व स्ट्रॉबेरी के लिए भी आवश्यक होते हैं. इनमें लोहा, जिंक, बोरान, मैंगनीज, तांबा, मोलिब्डेनम, और क्लोरीन शामिल हैं.
उर्वरक का प्रयोग
स्ट्रॉबेरी की खेती में उर्वरकों का प्रयोग निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
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मूल स्थान पर उर्वरक का प्रयोग: यह सबसे आम तरीका है. इस विधि में उर्वरकों को खेत में मिट्टी में मिला दिया जाता है.
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पानी में घोलकर उर्वरक का प्रयोग: यह तरीका ड्रिप सिंचाई के लिए सबसे उपयुक्त है. इस विधि में उर्वरकों को पानी में घोलकर खेत में डाला जाता है.
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पर्ण छिड़काव: यह तरीका फल लगने के समय किया जाता है. इस विधि में उर्वरकों को पानी में घोलकर पौधों की पत्तियों पर छिड़का जाता है.
स्ट्रॉबेरी की खेती में उर्वरक प्रबंधन के लिए कुछ सुझाव
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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जैविक उर्वरकों का प्रयोग करना फायदेमंद होता है.
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उर्वरकों का प्रयोग करते समय सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग करें.
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उर्वरकों का प्रयोग करते समय बच्चों और जानवरों को दूर रखें.
अमरूद
अमरूद एक बहुवर्षीय फलदार पौधा है, जो विभिन्न प्रकार की भूमि और जलवायु में उगाया जा सकता है. अमरूद के पौधों को अच्छी उपज देने के लिए उचित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. अमरूद के बगीचों में उर्वरक प्रबंधन का सही तरीका अपनाने से पौधों की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है.
अमरूद के बगीचों में उर्वरक प्रबंधन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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मृदा परीक्षण: अमरूद के बगीचे में उर्वरक प्रबंधन करने से पहले मृदा परीक्षण करवाना आवश्यक है. मृदा परीक्षण से मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा का पता चलता है. इस आधार पर उर्वरकों की मात्रा और प्रकार का निर्धारण किया जा सकता है.
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पौधे की आयु: अमरूद के पौधों की आयु के अनुसार उर्वरकों की मात्रा और प्रकार में अंतर होता है. छोटे पौधों को कम मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है, जबकि बड़े पौधों को अधिक मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है.
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फसल चक्र: अमरूद के बगीचे में एक ही फसल को लगातार कई वर्षों तक उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो सकती है. अतः, अमरूद के बगीचे में फसल चक्र को अपनाना चाहिए. इससे मृदा में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है.
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उर्वरकों का प्रकार: अमरूद के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, बोरान, और मैंगनीज जैसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. उर्वरकों का प्रकार मृदा की गुणवत्ता, फसल की किस्म, और पौधे की आयु के अनुसार निर्धारित किया जा सकता है.
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उर्वरकों की मात्रा: अमरूद के बगीचों में उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर निर्धारित की जाती है. सामान्य तौर पर, अमरूद के पौधों को प्रतिवर्ष 100 से 200 किलोग्राम गोबर की खाद, 20 से 40 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 20 से 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, और 10 से 20 किलोग्राम यूरिया की आवश्यकता होती है.
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उर्वरकों का समय: अमरूद के बगीचों में उर्वरकों को तीन किस्तों में दिया जाता है:
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वसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल): इस समय पौधों की वृद्धि और विकास के लिए उर्वरक दिया जाता है.
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ग्रीष्म ऋतु (मई-जून): इस समय पौधों में फूल आने के लिए उर्वरक दिया जाता है.
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शरद ऋतु (सितंबर-अक्टूबर): इस समय पौधों में फल आने के लिए उर्वरक दिया जाता है.
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उर्वरकों का विधि: अमरूद के बगीचों में उर्वरकों को जड़ों के पास या डालियों के आधार पर दिया जा सकता है. जड़ों के पास उर्वरक देने से पौधों को पोषक तत्वों की तुरंत उपलब्धता होती है, जबकि डालियों के आधार पर उर्वरक देने से पौधों की वृद्धि और विकास में सुधार होता है.
अनार
अनार एक पौष्टिक गुणों से भरपूर फल है. इसकी खेती भारत में मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में की जाती है. अनार के पौधे को अच्छे उत्पादन के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. अनार में उर्वरक प्रबंधन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:
उर्वरक की मात्रा:
अनार के पौधों को प्रति वर्ष 600-700 ग्राम नत्रजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस पेंटा ऑक्साइड, और 200-250 ग्राम पोटेशियम ऑक्साइड की आवश्यकता होती है. इस मात्रा को तीन समान भागों में विभाजित करके वर्ष भर में तीन बार दिया जाता है.
उर्वरक का प्रकार:
अनार के पौधों को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम की आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन पौधे के विकास और हरे पत्तों के निर्माण के लिए आवश्यक होती है. फॉस्फोरस पौधे की जड़ों के विकास और फलों के विकास के लिए आवश्यक होती है. पोटाशियम पौधे की सूखा सहिष्णुता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आवश्यक होती है.
उर्वरक देने का तरीका:
अनार के पौधों को उर्वरक देने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं:
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जड़ों के पास डालना: उर्वरक को पौधे की जड़ों के पास 20-25 सेंटीमीटर गहराई में डालना चाहिए.
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छिड़काव करना: उर्वरक को पौधे के तने और पत्तियों पर छिड़काव करके भी दिया जा सकता है.
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भूमि में मिलाना: उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर भी दिया जा सकता है.
उर्वरक देने का समय:
अनार के पौधों को उर्वरक देने का सबसे अच्छा समय फलों के विकास और पकने के समय होता है.
उर्वरक प्रबंधन के लाभ:
अनार के पौधों में उचित उर्वरक प्रबंधन से निम्नलिखित लाभ होते हैं
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उत्पादकता में वृद्धि होती है.
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फलों का आकार और गुणवत्ता में सुधार होता है.
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पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.
अनार के पौधों में उर्वरक प्रबंधन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता और पौधे की उम्र के अनुसार निर्धारित करनी चाहिए.
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उर्वरक को सही समय पर और सही तरीके से देना चाहिए. उर्वरक देने के बाद पौधों को अच्छी तरह से पानी देना चाहिए.
केला
केला एक भारी पोषक तत्वों का उपयोग करने वाला पौधा है. इसके लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, केला सूक्ष्म पोषक तत्वों, जैसे लोहा, मैंगनीज, जस्ता और बोरान की भी आवश्यकता है.
केले की खेती में उर्वरक का प्रबंधन निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
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मिट्टी का प्रकार और गुणवत्ता
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जलवायु
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फसल की किस्म
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फसल की अवस्था
केले की खेती में उर्वरक का प्रयोग निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
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भूमि में मिलाना: यह सबसे आम तरीका है. उर्वरक को पौधे से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रिंग बनाकर मिट्टी में मिला देते हैं.
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केले की खेती में उर्वरक मिलाना
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छिड़काव: यह तरीका अधिक प्रभावी होता है, लेकिन इसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. उर्वरक को पौधे के ऊपर छिड़क देते हैं.
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फर्टिगेशन: यह तरीका सबसे प्र.भावी होता है. उर्वरक को पौधे की जड़ों के पास सिंचाई के पानी के साथ मिला देते हैं.
केले की खेती में निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग किया जा सकता है:
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नाइट्रोजन: नाइट्रोजन पौधे की हरी पत्तियों और तने के विकास के लिए आवश्यक है. नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों में यूरिया, अमोनियम सल्फेट, और अमोनियम नाइट्रेट शामिल हैं.
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फास्फोरस: फास्फोरस पौधे के जड़ों और फूलों के विकास के लिए आवश्यक है. फास्फोरसयुक्त उर्वरकों में सुपरफॉस्फेट, ट्रिपल सुपरफॉस्फेट, और फॉस्फोरिक एसिड शामिल हैं.
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पोटेशियम: पोटेशियम पौधे की फलधारण और स्वाद के लिए आवश्यक है. पोटेशियमयुक्त उर्वरकों में पोटेशियम सल्फेट, पोटेशियम नाइट्रेट, और पोटेशियम क्लोराइड शामिल हैं.
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सूक्ष्म पोषक तत्व: सूक्ष्म पोषक तत्व पौधे के सामान्य विकास के लिए आवश्यक हैं. सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए, किसान को अपने खेत की मिट्टी की जांच करवानी चाहिए और उसी के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
केले की खेती में उर्वरक का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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उर्वरक का प्रयोग हमेशा उचित मात्रा में करें. अधिक उर्वरक का प्रयोग पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है.
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उर्वरक का प्रयोग हमेशा पौधे की अवस्था के अनुसार करें.
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उर्वरक का प्रयोग हमेशा मिट्टी की नमी की उपस्थिति में करें.
अनुशी1, सत्यार्थ सोनकर1, अभिषेक सिंह2, नितिन कुमार चौहान1
1 शोध छात्र, फल विज्ञान विभाग, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर (उ. प्र.) (208002)
2 शोध छात्र, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर (उ. प्र.) (208002)
संवादी लेखक: अनुशी