Phalsa Cultivation: तेज गर्मी के ठंडी तासीर वाला फालसा (Grewia Subinaequalis) भारतीय मूल का फल है, जो कठोर प्रकृति का होने की वजह से सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में उगाया जाता है. यह फल किसानों के लिए बेहद फायदे का सौदा है. मुख्य रूप से फालसा की खेती भारत, पकिस्तान और बांग्लादेश में की जाती है. देश में हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तरप्रदेश के किसान फालसे की खेती करते हैं. फालसा अधिक पोषण और औषधीय गुणों से भरपूर होने के बावजूद यह अव-प्रयोगी फसलों के अंतर्गत आता है और भारत में इसकी खेती छोटे पैमाने पर की जा रही है. आपको बता दें, फालसे का उपयोग ताजे फल और जूस के रूप मे किया जाता है. इसके फलों के गूदे में प्रोटीन, विटामिन, अमीनो अम्ल, फाइबर और अनेक खनिज लवण मौजूद होते हैं, जो पोषण के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. इसके अलावा, फालसा के पौधे के अन्य भाग, जैसे- पत्तियां, तना और जड़ आदि भी का इस्तेमाल किया जाता है. इनका इस्तेमाल ईंधन, लकड़ी, घरेलू पशुओं के लिए चारा और पारंपरिक औषधियों के लिए किया जाता है.
जलवायु और मिट्टी
फालसा उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल होता है. इसके फलों को पकने के साथ-साथ रंग के विकास और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए पर्याप्त धूप एवं गर्म तापमान की आवश्यक होता है. इसकी खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. किसान फालसा की खेती 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में कर सकते हैं. इस पौधे को अच्छे जल-निकास वाली भूमि में पैदा किया जा सकता है. इसकी खेती के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई भूमि जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो उसे सबसे उपयुक्त माना जाता है. फालसा की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. लेवल 6.1 से 6.5 उपयुक्त मान जाता है.
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फालसा की बुवाई और उपयुक्त समय
फालसा की बुवाई के लिए इसके बीज या कटिंग का उपयोग किया जाता है. इसके बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने के बाद बोया जाता है. वहीं अगर किसान इसकी कटिंग से बुवाई करते हैं, तो इसके पौधे को तैयार करने के लिए, आपको पौधे से लगभग 20 से 25 सेमी लंबी स्वस्थ टहनियों को काटकर बुवाई करनी होती है. फालसा के पौधरोपण का सबसे उचित समय मानसून के दौरान यानि जुलाई-अगस्त को माना जाता है. किसानों को इसके पौधेरोपण से लगभग एक माह पूर्व खेतों में 60x60x 60 से.मी. गहरे गड्डे खोदकर इनमें गीले गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए. किसानों को पौधरोपण लगभग 3x 2 अथवा 3x1.5 मीटर (पंक्ति x पौंधा) की दूरी पर करना चाहिए. पौधे लगाने के बाद मिट्टी में पौधों की स्थिरता को बनाए रखने के लिए सिंचाई करनी चाहिए.
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
किसान फालसा की खेती खाद और उर्वरकों के बिना भी कर सकते हैं, लेकिन गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए खेतों में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए. किसानों को अपने खेत की उर्वराशक्ति को बनाये रखने के लिये प्रतिवर्ष 10 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए. इसके अलावा, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम फॉस्फोरस और 40 ग्राम पोटाश प्रति झाड़ी की दर से हर साल खेतो को देना चाहिए.
फालसा के पौधे की सिंचाई
किसानों को फालसा के खेतो की अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है. गर्मियों के मौसम में इसके पौधों की 1 या 2 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए, जिससे इसके पौधें को गर्मी सहन करने की शक्ति मिल सकें. इसके अलावा, सर्दियों में फालसा के पौधों की कटाई छंटाई के पश्चात 15 दिनों के अंतराल पर इसकी सिंचाई करनी चाहिए, जिससे इसके पौधे में फुटाव जल्दी और अच्छा होता है. इसके पौंधो में फल बनने के लगभग 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करने से फल गुणवत्ता में भी काफी अच्छी वृद्धि होती है.
फालसा की कटाई एवं छटाई
किसानों के लिए फालसा की अच्छी खेती के लिए कटाई एवं छटाई की प्रक्रिया बेहद जरूरी होती है, इसके पौंधे को झाड़ी के रूप में साधा जाता है. यदि किसान ऐसा करते हैं, तो अधिक फल शाखाएं बनती है और प्रति झाड़ी से अच्छी उपज प्राप्त होती है. उत्तर भारत में फालसा के पौधे की कटाई छंटाई एक बार की जाती है, वहीं दक्षिण भारत में इस प्रकिया को 2 बार किया जाता है. इसके पौंधे की कटाई छंटाई उत्तर भारत में जनवरी माह में की जाती है, भूमि सतह से 15 से 20 से.मी. की ऊंचाई में की जाती है, इससे नई शाखाएं ज्यादा निकलती हैं. ऐसा करने से इसके फलों की गुणवत्ता और उपज में वृध्दि होती है.
फालसा के पौंधे में पुष्पन एवं फलन
फालसा के पौंधे में पुष्पन फरवरी से मार्च माह में शुरु होता है और यह एक माह तक चलता है. इसके पौधे में फूल छोटे और पीले रंग के होते हैं, जो गुच्छों में आते हैं. अप्रैल के महीने में इस पर फल पकना शुरू हो जाते हैं, जो मई माह तक चलते हैं. बुवाई के लगभग 15 से 18 महीने में इसके पौंधे में फलन शुरु हो जाता है. लेकिन अच्छी उपज इसके पौधे सेपौधरोपण के लगभग 3 साल बाद मिलना शुरु होती है.
फालसा की तुड़ाई एवं विपरण
फालसा के पौंधे में फल पुष्पन के 40 से 55 दिनों के पश्चात फल पकने शुरू हो जाते हैं. इसके फलों की तुड़ाई अप्रैल से मई माह में की जाती है और इसके फल का रंग हरे रंग से लाल या गहरे बैंगनी में बदल जाता हैं. किसान इसके फलों को हाथों से तोड़कर किसी वस्तु में रख सकते हैं और इसकी तुड़ाई प्रकिया लगभग एक माह तक चलती है. फालसा जल्दी खराब होना शुरू हो जाता है, इसलिए तुड़ाई के लगभग 24 से 48 घंटे के अंदर उपयोग कर लेने चाहिये. फालसा की प्रति झाड़ी से लगभग 5 से 10 किलोग्राम उपज प्राप्त की सकती है.
फालसा की खेती से मुनाफा
किसान फालसा के फल से अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. यदि किसान एक एकड़ में इसके 1500 पौधे लगाते हैं, तो 50 से 60 क्विंटल तक इसके फल की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. किसान इसके फल को सीधा बाज़ार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसके अलावा, यदि किसान का फालसा से जुड़े उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से लिंक हैं, तो वह इसकी खेती से बंपर मुनाफा कमा सकता है.
लेखक
डॉ. पूजा पंत, सह प्राध्यापक, कृषि संकाय, एस.जी.टी. विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा