बिहार में विगत कई सालों से आम उत्पादक किसान एक नई समस्या से दो चार हो रहे हैं. विगत वर्षों में अत्यधिक बारिश होने की वजह से लंबे समय तक बाग में पानी लगे होने की वजह से अब पेड़ के मुख्य तने के छिलके सड़ रहे हैं, जिसकी वजह से पेड़ सूख रहे है या वहीं से टूट कर गिर जा रहे हैं. आक्रांत पेड़ में पत्तियों के झड़ने की प्रक्रिया बहुत तेज हो जाती है. देखते पेड़ पर बहुत कम पत्तियां दिखाई देती है. पेड़ बीमार सा दिखाई देता है, अभी इसी वक्त इस तरह के पेड़ों का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया तो पेड़ सूख जाएंगे. इस रोग में सर्वप्रथम आम की सभी पत्तियां या कोई डाल विशेष की सभी पत्तियां मुरझाई सी दिखाई देती है और देखते-देखते पूरा पेड़ या पेड़ की कोई डाली सुख जाती है. यह रोग बरसात के समय या बरसात के बाद ज्यादा देखने को मिलता है. यह रोग आम एवं लीची के बागों को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. बिहार एवं उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा आम एवं लीची के मुरझाने की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई.
चूंकि, पूर्व में मुरझाने के संबंध में कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया गया था, इसलिए बिहार एवं उत्तर प्रदेश के प्रमुख फल उत्पादक क्षेत्रों में बीमारी को समझने में कठिनाई हो रही है. इस रोग के प्रमुख लक्षण, अचानक मुरझाने, गिरने और शाखाओं के सूखने के रूप में प्रकट होते हैं. ज्यादातर मुरझाए हुए पेड़ों के तने से गोंद का गंभीर रिसाव देखा गया. रोग से प्रभावित टहनियों का काट कर देखने पर संवहनी ऊतकों का लाल-भूरे से गहरे भूरे या काले रंग का मलिनकिरण देखा गया. यह रोग बिहार एवं उत्तर प्रदेश में आम उत्पादक किसानों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है. जिस बाग में इस रोग से कोई पेड़ सुख गया है, तो कुछ दिन के बाद फिर कोई दूसरा पेड़ सूखेगा, और इस प्रकार से बाग के दूसरे तीसरे पेड़ सूखेंगे. इसलिए आवश्यक है की आक्रांत पेड़ के साथ-साथ उसके आसपास के सभी पेड़ों को उपचारित किया जाए अन्यथा एक एक करके बाग के सभी पेड़ इसी तरह से सूख जाएंगे.
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इस रोग का कैसे करें प्रबंधन?
इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की रोग से आक्रांत आम के पेड़ के आसपास की मिट्टी को रोको एम (थियोफानेट मिथाइल) नामक फफुंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी घोलकर इसी घोल से आम के पेड़ के आसपास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भिगो दें. एक वयस्क पेड़ की मिट्टी को भीगाने के लिए कम से कम 15 से 20 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ती है. दस दिनों के बाद उपरोक्त प्रक्रिया को पुनः दोहराएं. बाग में सभी आम के पेड़ के आस पास के सभी पेड़ों को इस घोल से भीगना अत्यावश्यक है, अन्यथा कुछ दिन के बाद दूसरे आम के पेड़ मरना प्रारंभ करेंगे. आम का पेड़ जब भी किसी प्रकार की मुसीबत में पड़ता है, तो उसके तने से गोंद जैसा स्राव निकलता है, जो इस बात की तरफ इशारा करता है की पेड़ किसी मुसीबत में है. बागवान को तुरंत सक्रिय होकर देखना चाहिए की कारण क्या है. विल्ट में भी पेड़ से गोंद निकलता है.
आम में गामोसिस से बचाव के लिए आवश्यक है कि पेड़ के चारो तरफ, जमीन की सतह से 5-5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करनी चाहिए . प्रश्न यह उठता है कि बोर्डों पेस्ट बनाते कैसे है. यदि बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अगस्त एवम् दुबारा फरवरी- मार्च में पुताई कर दी जाय तो अधिकांश फफूंद जनित बीमारियों से बाग को बचा लेते है. इस रोग के साथ साथ शीर्ष मरण, आम के छिल्को का फटना इत्यादि विभिन्न फफूंद जनित बीमारियों से आम को बचाया जा सकता है. इसका प्रयोग सभी फल के पेड़ो पर किया जाना चाहिए.
बोर्डों पेस्ट बनाने के लिए आवश्यक सामान
कॉपर सल्फेट, बिना बुझा चुना (कैल्शियम ऑक्साइड), जूट बैग, मलमल कपड़े की छलनी या बारीक छलनी, मिट्टी/प्लास्टिक/लकड़ी की टंकी एवं लकड़ी की छड़ी|
- कॉपर सल्फेट 1 किलो ग्राम
- बिना बुझा चूना -1 किलो
- पानी 10 लीटर
बनाने की विधि
पानी की आधी मात्रा यानी 5 लीटर पानी में में 1किग्रा कॉपर सल्फेट को मिलाए इसके बाद बचे 5 लीटर पानी से 1 किग्रा चूने को बूझावे, शेष पानी में मिलावे इसके बाद इन दोनो घोलो को मिलाए, इस दौरान लकड़ी की छड़ी से लगातार हिलाते रहेI इस प्रकार से 10 लीटर बोर्डो पेस्ट तैयार हो जाएगा. यदि 20लीटर बोर्डो पेस्ट बनाना है तो सभी उपरोक्त चीजों की मात्रा को दुगुना कर दे, 30लीटर बनाना है तीन गुना कर दे. इसी प्रकार आपको जितना बोर्डो पेस्ट बनाना है उपरोक्त मात्रा की गड़ना करके बनाए.
ध्यान रखने योग्य बातें
किसानो को बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करने के तुरंत बाद ही इसका उपयोग बगीचे में कर लेना चाहिए. बोर्डो पेस्ट का घोल तैयार करते समय किसान लोहें या गैल्वेनाइज्ड बर्तन को काम में नहीं लेना चाहिए. यह ध्यान रखना हो की वे बोर्डो पेस्ट को किसी अन्य रसायन या पेस्टिसाइड के साथ में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.