फलों का राजा कहा जाने वाला आम हरियाणा प्रदोश का महत्वपूर्ण फल है. इसकी खेती मुख्यता: अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, सोनीपत और जींद जिलों में की जाती है. बेहतर स्वाद के कारण इसे हर उम्र और वर्ग के लोगों द्वारा पसंद किया जाता है. पके आम के फल को स्फर्तिदायक और ताजगी देने वाला माना जाता है. इसमें मजबूत एंटीऑक्सीडेंट, एंटी लिपिड पेरोक्सीडेशन, कार्डियोटोनिक, हाइपोटेंशन, घाव भरने, एंटीडिजेनेटिव और एंटीडायबिटिक जैसे गुण मौजूद होते हैं. आयुवर्दे के अनुसार, आम के पेड़ के अलग-अलग भागों में विभिन्न औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसकी जलती पत्तियों से निकलने वाले धुएं से गले की हिचकी और दर्द से राहत मिलती है. आम के पौधे की छाल में टैनिन नामक पदार्थ पाया जाता है, जिसका उपयोग रंगाई के लिए होता है.
भूमि और जलवायु
आम एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फल है, जिसे समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है. इसके फूल की अविध के दौरान उच्च आर्द्रता, अधिक बारिश या ठंड न हो. आम की वृद्धि और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 22 से 27 डिग्री सेल्सियस होता है. फैलने के आकार और गुणवत्ता में सुधार के लिए फलों की परिपक्वता पर बारिश काफी फायदेमंद होती है. आम को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. जलोढ़ मिट्टी जिसका ph मान 6.5 से 7.5 के बीच होता है. आम की वृद्धि के लिए सबसे अच्छी मिट्टी मानी जाती है. इसके अतिरिक्त आम का पेड़ क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकता है.
रोपण का समय, विधि और पौधों के बीच दूरी
भारत में आम की खेती एक अच्छा दीर्घकालिक कृषि व्यवसाय है. आमतौर पर आम के रोपण का समय क्षेत्र में बारिश की मात्रा पर निर्भर करता है. पर्याप्त बारिश वाले स्थानों पर वर्षा ऋतु के अंत में पौधरोपण होता है, जबकि कम वर्षा या सिंचाई वाले क्षेत्रों में फरवरी और मार्च के दौरान रोपण किया जाता है. रोपण से पहले खेती की अच्छी तरह से जुताई करके समतल बनाया जाता है. इसके बाद वर्षा से पहले निर्धारित दूरी पर 1x1 मीटर की गहराई के गड्डे खोदकर ऊपरी मिट्टी में एक तिहाई गोबर की खाद मिलाकर पुन: भर दिया जाता है. चींटियों से उपचार के लिए गड्डों में 200 से 250 ग्राम एल्ड्रेकस धूल मिलाई जा सकती है. इस प्रकार से तैयार गड्डों में मानसून के दौरान पौधरोपण कर दिया जाता है. विभिन्न जलवायु परिस्थितियों व अपनाई जाने वाली तकनीक के आधार पर आम के पौधों को निम्नलिखित दूरी पर लगाया जाता है. आमतौर पर दशहरी, चौसा, लंगड़ा, रामकेला के पौधों के बीच की दूरी 10x10 मीटर रखी जाती है. इसके अलावा आम्रपाली किस्म के पौधों की दूरी 2.5x2.5 रखी जाती है.
नए पौधे तैयार करना
आम के पौधे तैयार करने के लिए विनियर कलम / वैज ग्राफ्टिंग विधि सबसे सरल तरीका है. इसके लिए कलम (साइन) का चुनाव सावधानी से करना चाहिए. कलम की मोटाई मूलवृन्त के बराबर की होनी चाहिए, साथ ही उस तने की होनी चाहिए, जिस पर फूलन आया हो. कलम लेने से 7 से 10 पहले उससे पत्तियों को हटा दिया जाता है. ऐसा करनमे से कलियां फूल जाएंगी और ग्राफ्टिंग में ज्यादा सफलता मिलेगी. मार्च से सितंबर का समय पौधे तायर करने का सबसे सही समय माना जाता है.
आम की किस्में
दशहरी- बच्चों द्वारा प्यार से इसे चूसने वाला आम भी कहा जाता है. इसके फल आकार में छोटे और अंडाकार होते हैं. इसका छिलका औसतन मोटा और चिकना, गुदा पीला, रेशा रहिचत होता है. इस किस्म का स्वाद बहुत मीठा और सुगंधित होता है. इसका छिलका मोटा होने के कारण फल को काफी समय तक रखा जा सकता है.
लंगड़ा- इस किस्म के फल आकार में मध्य होते हैं, लेकिन इनका छिलका औसतन मोटा व हरा, गुदा सख्त व रेशा रहित होता है. यह काफी मीठा और सुगांधित वाला फल है. इसकी गुठली का आकार मध्यम होता है. यह किस्म जुलाई में पककर तैयार हो जाती है.
चौसा- जब सबको लगता है कि आम का मौसम खत्म हो रहा है, तो चौसा किस्म के आम की बाजार में बाढ़ आ जाती है. इन आमों में अविश्वनीय रूप से मीठा गूदा और चमकदार पीली त्वचा होती है. आम की यह किस्म जुलाई के अंत व अगस्त में पककर तैयार होती है.
फाजली- आम की इस किस्म का आकार बड़ा व छिलका औसतन मोटा होता है. इसका गुदा सख्त व रेशा रहित होता है. इसके फल की गुठली का आकार औसतन बड़ा होता है. आम की यह किस्म अगस्त में पककर तैयार हो जाती है.
इसके अतिरिक्त भारत में विभिन्न प्रदेशों में अलग जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए आम की निम्नलिखित किस्मों की खेती की जाती है.
पंजाब : दशहरी, लंगड़ा, चौसा, मालदा
उत्तर प्रदेश : बश्र्म्बे ग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, सफेदा लखनऊ, चौसा, फाजली
हिमाचल प्रदेश : चौसा, दशहरी, लंगड़ा
मध्य प्रदेश : अल्फोंसो, बश्र्म्बे ग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, सुंदरता, फाजली, नीलम, आम्रपाली, मल्लिका
गुजरात : अल्फोंसो, केसर, राजपुरी, वनराज, तोतापुरी, दशहरी, लंगड़ा, नीलम
सिंचाई
प्रारंभिक वर्षा के दौरान पौधों को सामन्यत: 4 से 5 दिनों के अंतराल पर सिंचित किया जाता है, लेकिन अत्यधिक सूखे मौसम के दौरान 2 से 3 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए. 5 से 8 साल आयु वर्ग के पौधों के लिए सिंचाई अंतराल 10 से 15 दिन रखा जाता है. परिपकव पेड़ को फल सेट हो जाने पर 2 से 3 सिंचाई की जाती है. इसके परिणाम स्वरूप फलों की पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि होती है.
कटाई-छंटाई
आम एक सदाबहार पौधा होता है, जिसके लिए बहुत कम कटाई और छंटाई की आवश्यकता होती है. युवा पौधे को जमीन के स्तर से एक मीटर की ऊंचाई तक साइड शाखाओं को हटाकर रोपण के शुरुआती वर्षों में किया जाता है. इसके अलावा साइड शाखाओं को 1 मीटर की ऊंचाई से आगे बढ़ने की अनुमति दी जाती है.
पौधे की आय |
गोबर की खाद (kg) |
यूरिया (kg) |
सुपर फास्फेट (kg)
|
म्यूरेट ऑफ पोटाश (kg) |
1 से 3 साल |
05 से 20 |
0.100 से 0.200 |
0.250 से 0.500 |
0.175 से 0.350 |
4 से 6 साल |
25 से 50 |
0.200 से 0.400 |
0.500 से 0.750 |
0.350 से 0.700 |
7 से 9 साल |
60 से 90 |
0.400 से 0.500 |
0.750 से 0.1000 |
0.700 से 0.1000 |
7 साल से अधिक |
100 |
0.500 |
0.1000 |
0.1000 |