आम भारत का प्रमुख फल है और राज्य के आधे से अधिक बागान इसी फसल से भरे हैं. आम के वृक्ष शुरू में हर वर्ष फलते हैं, लेकिन 9-10 वर्षों के बाद इनका फलन अनियमित हो जाता है. किसी वर्ष यदि अच्छी फसल होती है, तो अगले वर्ष वृक्ष फल नहीं देते. इस प्रवृत्ति को "द्विवार्षिक या अनियमित फलन" कहते हैं. यह सभी किस्मों और वृक्षों में समान नहीं होता. कभी-कभी रखरखाव की कमी से दो फलन के बीच अंतराल तीन वर्ष तक बढ़ सकता है, जबकि उपयुक्त देखभाल और प्राकृतिक अनुकूलता से यह अंतर मिट भी सकता है. इसलिए, इसे "अनियमित फलन" कहना अधिक उपयुक्त है.
अनियमित फलन के कारण
- प्रारंभिक अवस्था में नियमित फलन - आम का ग्राफ्ट (कलम) 4-5 वर्षों में फलना शुरू करता है और अगले कुछ वर्षों तक नियमित फल देता है. यदि किसी वर्ष अत्यधिक फलन हो या सभी मंजर झड़ जाएँ, तो वृक्ष का फलन चक्र बाधित हो जाता है.
- नए प्ररोहों की कमी- अनियमित फलने वाली किस्मों में फलों से लदे वृक्ष नए प्ररोह नहीं निकालते. फलों की तुड़ाई के बाद भी नए प्ररोह नगण्य होते हैं और उनमें अगले साल फूलने की क्षमता नहीं रहती. जब नए प्ररोह वसंत में आते हैं, तो वे उसी साल नहीं बल्कि अगले साल फूलते हैं, जिससे द्विवार्षिक फलन होता है.
- पोषक तत्वों का असंतुलन - अनुसंधान से पता चला है कि फूल आने के लिए प्ररोहों में नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) की उच्च मात्रा होनी चाहिए, जबकि आक्सिन सदृश पदार्थ और जिब्रैलिन हार्मोन का स्तर कम होना चाहिए.
- जातीय विशेषताएं - कुछ किस्में, जैसे बिहार की फजली, प्रतिवर्ष फलती हैं. वहीं, लंगड़ा, दशहरी, चौसा जैसी किस्मों में अनियमित फलन अधिक होता है.
मंजरों में नर व उभयलिंगी फूलों का अनुपात
केवल उभयलिंगी फूल ही फल देते हैं. जिन किस्मों के मंजरों में उभयलिंगी फूल अधिक होते हैं, वे अधिक अनियमित फलती हैं. जैसे
- लंगड़ा: लगभग 70% उभयलिंगी फूल (अत्यधिक अनियमित)
- दशहरी: लगभग 30% उभयलिंगी फूल (अनियमित)
- नीलम: लगभग 15% उभयलिंगी फूल (नियमित)
- जहाँगीर: 1% के आस पास उभयलिंगी फूल (अत्यधिक नियमित)
फल और पत्तियों का संतुलन
"फजली" और "बारहमासी" किस्मों में पुष्पक्रम के साथ पत्तियाँ भी होती हैं, जिससे वे नियमित फलती हैं. वहीं, जिन किस्मों में पुष्पक्रम शुद्ध (केवल फूल) होते हैं, वे अनियमित फलती हैं.
फल का आकार और गुणवत्ता
- बड़े और उच्च गुणवत्ता वाले फलों वाली किस्में (मालदह, दशहरी, जरदालू) अधिक अनियमित होती हैं.
- छोटे और निम्न गुणवत्ता वाले फलों वाली किस्में (बीजू आम) अधिक नियमित होती हैं.
प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव
- हर वर्ष जलवायु, मिट्टी और अन्य पर्यावरणीय कारक बदलते हैं, जिससे फलन की अनियमितता बढ़ती है.
- पर-परागण की आवश्यकता - उत्तर भारत की प्रमुख किस्में लंगड़ा, दशहरी, चौसा स्वअनिषेच्य हैं और पर-परागण के बिना फल नहीं देतीं. परागण के लिए मक्खियाँ आवश्यक हैं, लेकिन प्रतिकूल मौसम (वर्षा, आकाश में बादल, ओले, गर्म हवाएँ) इनकी गतिविधियों को प्रभावित करता है.
कीट एवं रोग प्रकोप
- कीट: हॉपर, मिलीबग
- बीमारियां: चुर्णी फफूंदी, एंथ्रेक्नोज
- इनसे फूल और छोटे फल झड़ जाते हैं, जिससे अनियमित फलन बढ़ता है.
पत्तियों की संख्या एवं पोषण
- एक फल को पूरा पोषण देने के लिए 60-90 स्वस्थ पत्तियाँ आवश्यक होती हैं.
- यदि पर्याप्त पत्तियाँ न हों, तो पेड़ की ऊर्जा खत्म हो जाती है और अगले वर्ष फलन नहीं होता.
अनियमित फलन रोकने के उपाय
उचित देखभाल
- समय पर सिंचाई, खाद, खर-पतवार नियंत्रण, कीट एवं रोग प्रबंधन करें.
- इससे अनियमित फलन पूरी तरह तो नहीं रोका जा सकता, लेकिन इसका असर कम किया जा सकता है.
खाद एवं सिंचाई प्रबंधन
- मार्च तक: भरपूर सिंचाई करें.
- सितंबर-दिसंबर: बिल्कुल सिंचाई न करें.
- मंजर निकलने पर: पानी न दें, लेकिन अप्रैल-मई में भरपूर सिंचाई करें.
उर्वरक प्रबंधन
- जून-जुलाई: प्रति प्रौढ़ वृक्ष (20 वर्ष) – 1 किग्रा यूरिया + 5 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश
- सितंबर-अक्टूबर: 50-60 किग्रा कम्पोस्ट + 2 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट + 5 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश
कीट एवं रोग नियंत्रण
- हॉपर नियंत्रण: फूल आने से पहले रोगर (1%) का छिड़काव करें.
- मिलीबग नियंत्रण: तने के चारों ओर अल्काथीन बैंड लगाएँ.
- पैक्रोब्यूट्राजोल (कल्टार) का प्रयोग
- सितंबर-अक्टूबर में प्रयोग करें.
- मात्रा: वृक्ष के फैलाव (ब्यास) के अनुसार – प्रति मीटर 3 मि.ली. दवा.
- इसे वृक्ष के चारों ओर 4-10” गहरे छेदों में डालें.
- यह वृक्षों को हर वर्ष फल देने के लिए प्रेरित करता है.
- उपरोक्त प्रक्रिया को हमेशा विशेषज्ञों की देखरेख में ही करें.
फूलों की आंशिक तुड़ाई
- कुछ शाखाओं से फूल तोड़ देने पर वे अगले वर्ष फल देती हैं, जबकि शेष शाखाएँ उसी वर्ष फलती हैं.
- इससे वृक्षों को हर वर्ष फलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
- एनएए (नेफथलीन एसिटिक एसिड) का प्रयोग
- फूलों की आंशिक तुड़ाई के लिए उपयोगी.