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Updated on: 15 October, 2020 12:00 AM IST

भारत में सभी फलों में आम सबसे ऊपर हैं. इस फल की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत मांग रहती है. भारत में आम लगभग सभी राज्यों में होते हैं, लेकिन हर राज्य में आम फल की वेराइटी अलग– अलग होती है. आज आम की खेती से किसान अच्छी आमदनी कमा रहे हैं. आम की खेती तो सभी करते हैं, लेकिन कई बार आम में रोग और कीट का प्रकोप हो जाता है. इससे आम की फसल को अधिक नुकसान होता है. ऐसे में किसानों को इन रोग और कीटों का समय रहते रोकथाम कर लेना चाहिए. आइए आज आपको आम में लगने वाले प्रमुख रोग और कीट की जानकारी देते हैं.

आम में लगने वाले कीट और उनकी रोकथाम  

आम तेला

यह आम का प्रमुख कीट होता है. ये हरे मटमैले कीट कलियों, फूल की ड्डियों व नई पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे वे मुरझाकर सुख जाती हैं. साल में फरवरी, अप्रैल, जून व जुलाई के दौरान इस कीट की दो पीढ़ियां होती है. इसके बचाव के लिए पेड़ों को ज्यादा दूरी पर लगाना चाहिए, ताकि अच्छी तरह सूर्य का प्रकाश मिल सके. बाग में पानी की निकासी सही रखनी चाहिए. इसके अतिरिक्त मैलाथिओन 50 ईसी 500 मिली या कार्बेरिल 50 डल्यूपी की 1.5 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर फरवरी के अंत में व दोबारा मार्च के अंत में छिड़काव करने से कीट प्रभावी तरीके से नियंत्रित होता है.

आम का मिलीबग

दिसंबर व जनवरी के दौरान ज्यादातर अखरोट जैसे दिखने वाले  मिलीबग जमीन में अण्डों से निकलकर पेड़ पर चढ़कर पत्तियों के नीचे जमा हो जाता है. ये कीट जनवरी से अप्रैल तक बढ़ने वाली टहनियों पर गुच्छों की तरह जमा होकर रस चूसते है, जिसके परिणाम स्वरूप टहनियां सूखने लगती है. इसके बचान के लिए दिसंबर के मध्य भूमि से एक मीटर की ऊंचाई तने पर 30 सेंटीमीटर छोड़ी पॉलिथीन की पट्टी लगनी चाहिए व पट्टी के नीचे एकत्रित कीटों को खत्म करने के लिए प्रोफेनीफोस 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में या डाइजियान 20 ईसी 250  मिली को 50 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाना चाहिए,  

तना छेदक

इस कीट की सुंड़ियां 6 से 8 सेंटीमीटर लंबी पीले रंग की होती हैं, जिनके मुखांग बहुत मजबूत होते हैं. ये कीट तने व शाखाओं में छाल के नीचे लकड़ी में सुरंग बनाकर उसको अंदर से खा जाती हैं. ये सुंड़ियां तने को खाने की बजाए काटती ज्यादा हैं. इस की से प्रभावित पेड़ की टहनियां हवा से टूटने लगती हैं. इसके बचाव के लिए जून, जुलाई के दौरान पेड़ों के नीचे अच्ची जुताई की जानी चाहिए, ताकि सूर्य की गर्मी से कीट खत्म हो जाए. इसके अतिरिक्त तने के सुराग पर 2ml कोनफीढोर को एक लीटर पानी में मिलाकर छेद में डालकर मिट्टी से बंद करने से कीट मर जाते हैं.

गोभ छेदक

इस कीट की सुंडियां पीले नारंगी रंग की होती हैं. प्रारंभ में ये कीट पत्तियों की शिराओं में छेद बनाकर खाती हैं. इसके बाद नए टहनियों को भी खाने लगती हैं. यह कीट जुलाई से अक्टूबर तक सक्रिय रहता है. यह कीट पुराने वृक्षों को ज्यादा मुकसान पहुंचाता है. इसके बचाव के लिए 125 मिली डाइक्लोरवास को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए.

आम में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

टहनिमार रोग

इस रोग में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं. टहनियां सुख जाती हैं और फूलों पर भी धब्बे बनने लगते हैं. इसके बचाव के लिए रोगग्रस्त टहनियों को काटकर बोर्डो पेस्ट लगाया जाना चाहिए. इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति एक लीटर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए.

ब्लैक टिप (कला सीरा)

आम में यह रोग भट्टों से निकलने वाली जहरीली गैस से फैलता है. फल सिरे से बेढ़ंगे होकर जल्दी पक जाते हैं व आधा फल खराब हो जाता है. इसके बचाव के लिए फरवरी से अप्रैल एक लीटर पानी में  6 ग्राम बोरेक्स मिलाकर फूल आने से पहले 2 छिड़काव किया जाना चाहिए. फल आने के बाद तीसरा छिड़काव कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का करें. जुलाई से सितबर के दौरान बेढ़ंगे गुच्छों को काट दिया जाना चाहिए व पौधों में अच्छी तरह से खाद डालनी चाहिए.

गुच्छा मुछा रोग

इस रोग में कोपलों के आगने गुचे बन जाते हैं, जो फूल के स्थान पर आते हैं व इनमें छोटी पत्तियां भी होती हैं. इसके बचाव के लिए सबसे पहले रोग गुच्छों को काटना चाहिए व 10 से 12 दिन के अंतराल पर कैप्टान 0.2 प्रतिशत व मैथालिओन 0.1 प्रतिशत के मिश्रण को मिलाकर छिड़ाकाव करना चाहिए.

सफेद चूर्णी रोग

इस रोग में पुष्प व पुष्वृत्तांतों पर सफेद चूरन छा जाता है, जिससे फूल व छओटे पनपते हुए फल गिर जाते हैं. इस रोग से प्रभावित होने पर फलों का आकार भी छोटा रह जाता है. इसकी रोकथान के लिए फल लगने के तुरंत बाद कैराथिऑन 1 ग्राम प्रति लीटर या केलिक्सिन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव किया जाना चाहिए.

फसल तुड़ाई व उपज

आम के फलों को पूरी परिपक्वता के साथ तोड़ा जाना चाहिए. चोट से बचने के लिए अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए. फलों की परिपक्वता का आंकलन बाग में ही किया जा सकता है. जब कोई फल किसी कल्टीवेटर का थोड़ा रंग विकसित करता है या उसे हल्का हरा मिलता है, फल परिपक्व होते हैं. कटाई के लिए पेड़ों को नहीं हिलाया जाना चाहिए, क्योंकि गिरने पर फल घायल हो जाते हैं. इसके बाद सड़ने वाले कवक को आमंत्रित करते हैं. परिक्वता समय क्षेत्र में भिन्न होता है. हरियाणा पंजाब में जल्दी पकने वाली खेती जून के मध्य से जुलाई के पहले तक परिपक्व होती है व देर से पकने वाली किस्में अगस्त में देर से परिपक्व होती है. आम के एक स्वस्थ्य एवं प्रौढ़ पेड़ से 100 से 125 किलोग्राम पेड़ पैदावार ली जा सकती है. 

English Summary: Major pests, diseases and prevention of mangoes
Published on: 15 October 2020, 01:37 IST

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