Jamun Ki Kheti: भारत धीरे-धीरे मधुमेह (Diabetes) का गढ़ बनता जा रहा है. देश के अधिकांश घरों में आपको मधुमेह का कोई न कोई मरीज जरूर मिल जाएगा. भारत में मधुमेह खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. आंकड़ों पर गौर करें तो युवा आबादी में इसका प्रसार भी 10 प्रतिशत से अधिक हो गया है. शहरी क्षेत्रों में मधुमेह की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों से बदतर है, जहां सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में बीमारी का प्रसार लगभग दोगुना है. विशेष रूप से युवा आबादी में मधुमेह की वर्तमान वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता का कारण है. भारत में जिस गति से डायबटीज रोग बढ़ रहा है, हमारा ध्यान इस रोग के प्रबंधन के लिए सबसे पहले जिस फल की तरफ सबसे पहले जाता है, वह जामुन है.
औषधीय गुणों से भरपूर जामुन
जामुन आयरन, शर्करा, खनिज, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट सहित कई मूल्यवान गुणों वाला एक पौष्टिक स्वदेशी फल है. इसके पके फलों को ताजा खाया जाता है और इन्हें जेली, जैम, स्क्वैश, वाइन, सिरका और अचार जैसे विभिन्न पेय पदार्थों में संसाधित किया जा सकता है. जामुन फल, अपने मसालेदार स्वाद के साथ, गर्मियों के लिए एक ताजा पेय है, इसके अर्क में विभिन्न औषधीय गुण होते हैं, जिनमें जीवाणुरोधी, एंटिफंगल, एंटीवायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटी-एलर्जी, एंटीकैंसर, कीमोप्रिवेंटिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, फ्री रेडिकल स्केवेंजिंग, एंटीऑक्सिडेंट, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटी-डायरियल, हाइपोग्लाइसेमिक और एंटीडायबिटिक प्रभाव शामिल हैं.
जामुन के इन्हीं गुणों के चलते बाजार में इसकी डिमांड बनी रहती है. ऐसे में किसान जामुन की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इस खबर में हम आपको जामून की उन्नत किस्म गोमा प्रियंका (Goma Priyanka Jamun) के बारे में बताएंगे, जो किसानों के लिए वरदान है. आइए आपको इस किस्म के बारे में विस्तार से जानते हैं.
2010 विकसित हुई थी ये किस्म
जामुन की किस्म 'गोमा प्रियंका' को केन्द्रीय बागवानी प्रयोग केन्द्र गोधरा, गुजरात ने 2010 विकसित किया था. इसके लिए अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने जामुन के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य, आर्थिक सुरक्षा और विभिन्न विकारों के प्रति संवेदनशीलता के कारण पर व्यापक शोध किया था. तभी ये किस्म विकसित की गई थी. इस किस्म का फल स्वाद में काफी मीठा होते है. इसके फलों में नाममात्र की गुठली और गुदे की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. इस शोध को करने के पीछे का एक उद्देश्य अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की शुष्क भूमि स्थितियों के लिए उपयुक्त नई और बेहतर किस्मों और उत्पादन तकनीकों को विकसित करना भी था.
गूदा ज्यादा, नाममात्र की गुठली
2010 में अनुसंधान ने जामुन की दो किस्मों, गोमा प्रियंका और गोमा प्रियंका II विकसित की थीं.गोमा प्रियंका अपनी उच्च उपज, उच्च गूदा सामग्री और छोटे कद के कारण किसानों के बीच लोकप्रिय है, जो इसे उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए आदर्श बनाती है. गोमा प्रियंका, किसानों के बीच एक लोकप्रिय किस्म है, जो अपनी उच्च उपज (10वें वर्ष से 50-70 किग्रा/पेड़, उच्च गूदा सामग्री (85-90%), कम बीज वजन, विपुल और नियमित फल देने वाली किस्म के लिए जानी जाती है, जो इसे कद में तुलनात्मक रूप से छोटा बनाती है. उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए आदर्श। इसका विस्तार गुजरात से आगे राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश तक हो गया है.
बता दें कि 2009 से पहले, पश्चिमी भारत में कोई व्यवस्थित उद्यान उपलब्ध नहीं था. आईसीएआर-सीआईएएच क्षेत्रीय स्टेशन एक लोकप्रिय बागवानी फसल जामुन पर शोध कर रहा है. देश भर में किसान बड़े पैमाने पर ब्लॉक वृक्षारोपण शुरू कर रहे हैं, जिसमें 800 से अधिक किसान वीएनआर, नर्सरी और अंबिका एग्रो जैसे स्टेशनों से सामग्री खरीद रहे हैं. यह विविधता सामाजिक-आर्थिक समृद्धि और पोषण सुरक्षा का वादा करती है.
लाखों में होगी कमाई
इस परियोजना ने भारत में किसानों की उनके फसल क्षेत्रों और प्रबंधन तकनीकों पर निर्भरता बढ़ा दी है, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इस तकनीक को अपनाया है. पूर्ण विकसित पेड़ों से कमाई 2.5 लाख से 3.5 लाख रुपये तक हो सकती है. इस पहल ने अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अन्य किसानों को प्रेरित किया है, जिससे सामग्री आपूर्ति की आवश्यकता पैदा हुई है और युवा किसानों के लिए अवसर खुले हैं.