GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी खुशखबरी! हर गरीब को मिलेगा अब पक्का घर, PM Awas Yojana की बढ़ाई आवेदन तिथि, जानें शर्तें और पूरी प्रक्रिया SBI की ‘हर घर लखपति’ योजना: सिर्फ 576 रुपए के निवेश पर पाएं 1 लाख, जानें क्या है स्कीम और आवेदन प्रक्रिया किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ Diggi Subsidy Scheme: किसानों को डिग्गी निर्माण पर मिलेगा 3,40,000 रुपये का अनुदान, जानें कैसे करें आवेदन फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 21 May, 2024 12:00 AM IST
केले का ऐसे करें रोग से बचाव, साभार: कृषि जागरण

केला के फलों के सड़ने की बीमारी या सिगार ईण्ड रॉट (Cigar End Rot) तीन चार वर्ष पूर्व केला का एक कम महत्वपूर्ण रोग माना जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं. अब यह एक महत्वपूर्ण रोग के तौर पर उभर रहा है जिसका मुख्य कारण वातावरण में अत्यधिक नमी का होना है. यह रोग फलों के सिरे पर सूखे, भूरे से काले सड़े से दिखाई देता है. कवक की वृद्धि वास्तव में फूल आने की अवस्था से ही  शुरू हो जाती है और फलों के परिपक्व होने के समय में या उससे पहले भी दिखाई देते है. प्रभावित क्षेत्र भूरे रंग के कवक विकास से ढके होते हैं जो सिंगार के जले हुए सिरे पर राख की तरह दिखते हैं, जिससे सामान्य नाम होता है. भंडारण में या परिवहन के दौरान यह  रोग पूरे फल को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप "समीकरण" प्रक्रिया हो सकती है. फलों का आकार असामान्य होता है, उनकी सतह पर फफूंदी दिखाई देती है और त्वचा पर घाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. सिगार इंड रॉट केले के फलों का एक प्रमुख रोग है. यह मुख्य रूप से कवक ट्रेकिस्फेरा फ्रुक्टीजेना द्वारा और कभी-कभी वर्टिसिलियम थियोब्रोमे द्वारा भी होता है.

इस रोग का फैलाव हवा या बारिश के माध्यम से होता है. स्वस्थ ऊतकों पर कवक का हमला बरसात के दौरान केले में फूल आने की अवस्था में होता है. यह फूल के माध्यम से केले को संक्रमित करता है. वहां से यह बाद में फल के सिरे तक फैल जाता है और एक सूखी सड़ांध का कारण बनता है जो राख के समान होता है जो सिगार, जैसा दिखाई देता है,जिसकी वजह से इस रोग का नाम सिगार ईण्ड रॉट पड़ा.

इस रोग का जैविक नियंत्रण

इस रोग के रोगकारक कवक (फंगस) को नियंत्रित करने के लिए बेकिंग सोडा पर आधारित स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्प्रे को बनाने के लिए प्रति लीटर पानी में 25 मिलीलीटर तरल  साबुन के साथ 50 ग्राम बेकिंग सोडा को पानी में घोलकर घोल तैयार करते है. संक्रमण से बचाव के लिए इस मिश्रण को संक्रमित शाखाओं और आस-पास की शाखाओं पर स्प्रे करें. यह केला के फिंगर (उंगलियों) की सतह के पीएच स्तर को बढ़ाता है और कवक के विकास को रोकता है. कॉपर कवकनाशी यथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का स्प्रे भी प्रभावी हो सकते हैं. लेकिन छिड़काव के 10 दिन के बाद ही फलों की कटाई करनी चाहिए.

रासायनिक नियंत्रण

यदि संभव हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें. आमतौर पर यह रोग मामूली महत्व का होता है और इसे शायद ही कभी रासायनिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है. लेकिन विगत तीन साल से इस रोग की उग्रता में भारी वृद्धि देखा जा रहा है क्योंकि अत्यधिक बरसात की वजह से वातावरण में भारी नमी है जो इस रोग के फैलाव के लिए अहम है. प्रभावित गुच्छों को एक बार मैन्कोजेब, ट्रायोफेनेट मिथाइल या मेटलैक्सिल @ 1ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है और बाद में प्लास्टिक के साथ कवर किया जा सकता है.

इस रोग से बचाव के उपाय

रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करें. केला के बाग में उचित वातायन का प्रबंध करें. पौधों से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच उचित दूरी बनाए रखें. खेत के दौरान पौधों के ऊतकों को नुकसान से बचाएं. उपकरण और भंडारण सुविधाओं को पूरी तरह से साफ सुथरी रखें. बरसात के मौसम में केले के फलों को बचाने के लिए प्लास्टिक की आस्तीन का प्रयोग करें. केले के पत्तों की छँटाई करें. नमी को कम करने के लिए बाग में उचित वातायन का प्रबंध करें.

गुच्छा में फल लगने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नीचे लगे नर पुष्प को काट कर हटा दें. सभी सुखी एवं रोग ग्रस्त पत्तियों को नियमित रूप से काट कर हटाते रहे, खासकर बरसात के मौसम में रोग से संक्रमित केला के फल (उंगलियों) को काट कर हटा देना चाहिए. संक्रमित पौधों के हिस्सों को जला दें या उन्हें खेतों में गाड़ दें. जहां केले की खेती नहीं होती है. केला को कभी भी 13 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर स्टोर नहीं करें.

English Summary: How to manage banana rot disease tip hindi Sigar End Rot banana latest news
Published on: 21 May 2024, 12:15 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now