फलों के वृक्षों की जड़ें बहुत दूर-दूर और गहरी जाती है. इसलिए यह वृक्ष नमी पोषण और खनिज इत्यादि धरती में निचले स्तरों से खींच सकते हैं. इसके कारण उनकी व्यवस्था या बगीचे के अन्य प्रबंध सामान फसलों के प्रबंध से भिन्न होते हैं. मिसाल के तौर पर सामान फसलों में, जैसे गेहूं या धान में उर्वरक उतना ही डाला जाता है जो उसे फसल के दौरान इस्तेमाल हो सके क्योंकि अगर वह फसल उसे प्रयोग न कर सके तो उसमें से काफी मात्रा धरती की निचली सतह में रिस जाता है. जब तक उस खेत में अगली फसल लगेगी तब तक यह पोषक तत्व इतने नीचे चले जाते हैं की अगली फसल की जड़ें उन्हें खींच नहीं सकती. कुछ रसायन जैसे फास्फोरस, मिट्टी में जम भी जाते हैं.
दूसरी ओर फलों के वृक्षे कि जड़ें काफी गहरी होती है और इसलिए जो उर्वरक या अन्ना रसायन साल डेढ़ साल पहले भी भूमि में डाले गए हों उन्हें भी यह जडें नीचे से खींच लेती है इसी तरह काफी फलों की किस्में ऐसी है जो जमी हुई फास्फोरस को भूमि से खींच सकती है और उसका पूरा इस्तेमाल कर सकती है. इसलिए बगीचे में अधिक उर्वरक या खाद डालने से वह नष्ट नहीं होते और कभी न कभी वृक्षों को मिल जाते हैं. कुछ विकसित देशों में आम प्रथा बन गई है कि फलों के वृक्ष लगाने से पहले ही उनके भविष्य की पूरी फास्फोरस की आवश्यकता खेत में डाल दी जाती है जीसे वृक्ष धीरे-धीरे सोखते रहते हैं.
फास्फोरस भूमि में बहुत साल पड़ा रहता है क्योंकि वह मिट्टी में जम जाता है और बहुत धीरे नीचे की सतह में उतरता है. नाइट्रोजन और पोटेशियम आसानी से पानी में घुल जाते हैं. इसलिए कुछ वर्षों के बाद जड़ों से नीचे उतर जाते हैं और वृक्षों को उपलब्ध नहीं रहते. यह उर्वरक वृक्षों को उचित समय में मिलनी चाहिए जैसे नाइट्रोजन वृक्षों को तब मिलनी चाहिए जब उनकी वृद्धि हो रही हो. अगर पहले या बाद में मिले तो उसका उतना फायदा नहीं हो सकता. शीतोष्ण इलाकों के फल जैसे सेब, प्लम आदि के वृक्षों को अधिक नाइट्रोजन तभी मिलनी चाहिए जब उनकी वृद्धि तेजी से चल रही हो न कि तब जल से प्रसुप्त अवस्था में हो.
शाकनाशक रसायन का इस्तेमाल वृक्ष में ध्यान से करें
वृक्षों और सामान्य फसलों के ऊपर रसायनों के छिड़काव में भी अंतर है. सामान्य फसल तो केवल तीन-चार महीने ही भूमि में लगी रहती है और फिर वह काट दी जाती है. इसलिए जो भी कीट या बीमारियां उन फसलों पर लगती है, वे उस फसल के काटने के साथ आमतौर पर उस साल के लिए खत्म हो जाती है. अगली साल फसल के कीड़े या रोग ज्यादातर भिन्न होते हैं. दूसरी ओर वृक्ष तो हमेशा ही धरती में लगे रहते हैं और कुछ कीड़े व रोग उन पर स्थाई तौर पर डेरा बना लेते हैं और जब भी अनुकूल अवस्था हो अपना आक्रमण कर देते हैं. इसलिए वृक्षों पर समय-समय पर रसायनों का छिड़काव करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है. छिड़काव करते समय यह भी ध्यान में रखना पड़ता है कि फसल में रसायन का विष ना रहे और तुड़ाई तक खत्म हो जाए. इसी तरह खरपतवारों को करने के लिए शाकनाशक रसायन का इस्तेमाल भी वृक्ष में कुछ ज्यादा ध्यान से करना पड़ता है.
सामान्य फसलों में तो संभव है कि फसल काटने के बाद जब भूमि खाली हो उसे समय शाकनाशक रसायन डाले जाएं मगर बगीचे की भूमि तो कभी भी खाली नहीं रहती है. पेड़ तो हमेशा ही ठीक रहते हैं और उनको भी शाकनाशक रसायनों से नुकसान हो सकता है. इसलिए इसके इस्तेमाल में भी ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है. खरपतवारों की समस्या फल उत्पादन में और भी जटिल होती है. पेड़ों के वजह से खेत में हल नहीं चलता. इसलिए सभी किस्म के खरपतवार अधिक फैल जाते हैं. वार्षिक खरपतवार हर वर्ष नए बीज छोड़ते हैं इससे वह और अधिक फैलते रहते हैं. स्थाई खरपतवार न केवल बीजों द्वारा बल्कि अपनी जड़ों द्वारा भी फैलते हैं.
इसलिए कुछ ही वर्षों में बगीचे में अनेक प्रकार के खरपतवार अपनी धाक जमा लेते हैं. यह वृक्षों के साथ पोषक तत्वों के लिए होड़ करते हैं और भूमि से काफी मात्रा में पोषण भी उठा लेते हैं जिससे पेड़ों में पोषण की कमी पैदा हो सकती है.
बागवानी में मृदा प्रबंध
बागवानी में मृदा प्रबंध भी ज्यादा जटिल होता है. हर वर्ष उर्वरक और फफूंद नाशक रसायनों के उपयोग से मिट्टी ज्यादा अम्लीय बन जाती है क्योंकि अधिकतर उर्वरक और कुछ गंधक के बने रसायन मिट्टी में अम्ल छोड़ते हैं. यह रसायन वृक्ष के घेरे के साथ-साथ डाले जाते हैं. शुरू में वृक्ष का दायरा छोटा होता है और यह रसायन भी तने के नजदीक डाले जाते हैं. जैसे-जैसे वृक्ष बड़ा होता रहता है. इन रसायनों का दायरा भी बढ़ता रहता है. इस अम्ल से मिट्टी का पी, एच, घटती रहती है और कुछ वर्षों के बाद तने के निकट भूमि बहुत अम्लीय हो जाती है और किनारे पर काम. इस कारण कई पोषक तत्व वृक्षों को उपलब्ध नहीं होते.
शीतोष्ण फलों में काट छांट
शीतोष्ण फलों में काट छांट बहुत महत्व रखती है जिसे सामान्य फसलों में कोई काम नहीं है. यह काट छांट भी काफी तकनीकी कार्य है और इसको समझाना बागवान के लिए आवश्यक है. काट छांट की संपूर्ण जानकारी के बाद और वृक्ष के अन्य लक्षणों को देखकर काट छांट की सीमा और तरीके को अपनाना एक बहुत महत्वपूर्ण विषय बन जाता है. काट छांट हर साल इस उद्देश्य से करनी पड़ती है कि वृक्ष हर वर्ष अच्छी ऊपर देता रहे. इन कारणों से एक बागवान को काफी अधिक तकनीकी ज्ञान हासिल करना पड़ता है जबकि एक सामान्य किसान को इतने ज्ञान की आवश्यकता नहीं हो सकती.
साफ स्पष्ट है कि उद्यान कृषि और सामान कृषि में काफी अंतर है. फलों के बगीचे लगाने का निर्णय बिना सोचे समझे और मनमाने ढंग से नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसमें अन्य अति सूक्ष्म अनिश्चितताएं व जोखिम भरी समस्या है. हर भौतिक व वित्तीय पहलू को देखकर उन पर पूरा ध्यान देकर ही फल उत्पादन करने का निर्णय लेना चाहिए. बागवानी एक स्थाई फसल है, इसलिए खास ध्यान देना पड़ता है ताकि उस पर व्यय से भी अधिक आए हो. अगर हर स्थिति में भविष्य की आय निश्चित हो तभी यह निर्णय लेना पड़ता है कि बागवानी शुरू की जाए या नहीं. आय और व्यय के हर तत्व पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करके पूरा वित्तीय विश्लेषण करना पड़ता है. अगर हर पहलू को ध्यान में न रखा जाए तो विश्लेषण का परिणाम गलत हो सकता है.
रबीन्द्रनाथ चौबे ब्यूरो चीफ कृषि जागरण बलिया, उत्तरप्रदेश.