अपनी खूबसूरती और महंगे दामों के चलते विश्व की टॉप टेन रैंकिग में शुमार ओरिएंटल लिली का फूल बल्ब अब हिमाचल के थुनाग मे स्थित बागवानी अनुसंधान और विस्तार केंद्र में तैयार होंगे. वर्तमान में खेती के लिए यह बल्ब हॉलैंड से मंगवाए जाते है. आज देश में उत्तराखंड के अलावा पूर्वी हिमालय, दार्जिलिंग, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में कुछ निजी फूलवाले भी बल्ब तैयार कर रहे है. हिमाचल प्रदेश में पहली बार सरकारी क्षेत्र में यह वैरायटी फूलों से जुड़े आम लोगों के लिए भी तैयार होगी.
बड़े पैमाने पर फूल की विशेषताओं पर शोध जारी
नौणी विवि में पुष्प एवं स्थल सौंदर्य विभाग ने इस तरह की सुंदर प्रजाति के टिश्यू कल्चर को तैयार करने में सफलता पाई है. वही बल्ब से बल्ब तैयार करने की विधि को भी ईजाद कर लिया है. यहां पर मंडी जिले के सराज की मिट्टी और यहां की आबोहवा को लिलियम के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानते हुए बड़े पैमाने पर इस पर काम किया जाएगा. इससे हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा सकेगा. यहां पर फूल की डस्ट टेस्टिंग का काम शुरू हो गया है. इसमें फूल की विशेषताओं पर शोध चल रहा है.
लिलियम की एक डंडी की कीमत 50 रूपये तक
लिलियम फूल की देश और विदेश में काफी ज्यादा डिमांड है. यह फूल अमीर वर्ग के ड्राइंग रूम और पांच सितारा होटलों में सजावट का अहम हिस्सा बनता है. ऐसे में किसानों को लिलियम की एक डंडी की कीमत 20 से 50 रूपये तक है. साथ ही बाजार में इसकी काफी ज्यादा डिमांड है.
70 दिन में तैयार होंगे फूल
वैज्ञानिकों का दावा यह है कि यह लिलियम फूल 70 दिनों में पैदा हो सकेगा. लिलियम फूल की खेती के लिए सराज की जलवायु सबसे उपयुक्त मानी गई है. यहां गर्मियों में भी अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम रात का तापमान 12 डिग्री सेल्सियस रहता है. यहां पर तेज हवा और एकदम से बदलने वाले मौसम का मिजाज खेती में बाधक हो सकता है. यहां नेट शेड हाउस में लिलियम की खेती और ज्यादा अच्छी हो सकती है.
हो चुका है टिश्यू कल्चर तैयार
यहां के नौणी विवि में टिश्यू कल्चर भी तैयार किया जा चुका है. साथ ही बल्ब से बल्ब भी विकसित किया गया है. लिलियम की खेती का सराज में बहुत ही ज्यादा स्कोप है. हॉलैंड से मंगवाया जाने वाला बल्ब यही पर आम किसानों और लोगों को नौणी विवि उपलब्ध करवा रहा है.