हमारे जीवन में प्राकृतिक सौंदर्य का बहुत महत्व है. प्राकृतिक सौंदर्य को देखने भर से ही मन को शांति मिल जाती है. यह मानव को तनाव से दूर रखता है. बता दें कि प्राकृतिक सौंदर्य की सजावट में जापानी पेड़ प्रूनस पर्सिका का काफी उपयोग किया जाता है, जो कि अब बागवानों के लिए ग्राफ्टिंग में भी मदद करेगा. अभी तक बागवान आडू, खुमानी, नेक्ट्रीन, बादाम और चेरी जैसे गुठलीदार फलों की ग्राफ्टिंग कई पेड़ों पर करते आएं हैं, लेकिन अब बागवान आडू, खुमानी, नेक्ट्रीन, बादाम और चेरी की कलम एक ही किस्म के पेड़ पर लगा पाएंगे. इस नई तकनीक को पटियाल ग्राफ्टिंग का नाम दिया गया है.
क्या है पटियाल ग्राफ्टिंग
बागवानों को ग्राफ्टिंग के लिए यह नई दिशा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute/IARI) शिमला केंद्र के वैज्ञानिकों ने दिखाई है. अभी तक बागवान गुठलीदार फलों की ग्राफ्टिंग चूली, बैमी, पाजा और कड़वे बादाम के पेड़ों की मदद से करते हैं. इस तरह कम से कम 4 साल की लंबी अवधि के बाद गुठलीदार फल जैसे आडू, खुमानी, नेक्ट्रीन, बादाम और चेरी का उत्पादन होता है. मगर वैज्ञानिकों की इस नई तकनीक द्वारा नए पेड़ में ग्राफ्टिंग के बाद केवल 2 साल में ही फल प्राप्त किए जा सकते हैं.
जानें प्रूनस पर्सिका की खासियत
यह पेड़ मूल रूप से जापान का है, जिससे अभी तक ऑर्नामेंटल प्लांट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अब यह गुठलीदार फलों के लिए ग्राफ्टिंग का काम करेगा. खास बता यह है कि यह सर्द और गर्म, दोनों इलाके में सफल रहेगा. इस पेड़ में 14 एमएम के फल लगते हैं, जिस पर मई में फूल खिलते दिखाई देते हैं. प्रूनस पर्सिका पेड़ पर कई तरह के गुठलीदार फलों की ग्राफ्टिंग करने में सफलता हासिल हुई है.
आईएआरआई के शिमला केंद्र के वैज्ञानिक पटियाल ग्राफ्टिंग के लिए नए पेड़ पर पिछले 4 साल से शोध कर रहे हैं. अभी उन्हें सिर्फ गमलों में फलों की ग्राफ्टिंग करके फल तैयार करने में सफलता मिली है. इसका फील्ड ट्रायल आईएआरआई के ढांडा स्टेशन में शुरू कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि बागवानों को यह पेड़ करीब 2 साल में मिल जाएगा.