छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 58 किमी दूर महासमुंद जिले के भलेसर गांव में कृषि विज्ञान केंद्र ने 15 एकड़ की फलदार पौधों वाली नर्सरी तैयार की है. यह नर्सरी मनरेगा के तहत बनाई गई है. इस नर्सरी से मात्र ढा़ई साल में लगभग 17 तरह के फलदार पेड़ों की उन्नत किस्में तैयार कर ली गईं हैं. इस दौरान लगभग 18 हजार से अधकि किसानों को 1 लाख 63 हजार से ज्यादा फलदार पौधे दिए गए हैं. इससे अब तक 400 परिवारों को रोजगार भी मिला है. इस नर्सरी के लिए काम करने वाले श्रमिकों को लगभग 20 लाख रुपए की मजदूरी भी दी जा चुकी है. नर्सरी के वैज्ञानिकों का कहना है कि फलदार पौधों से छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों को अतिरिक्त आमदनी कमाने का अच्छा मौका मिल रहा है.
17 किस्म के फलदार पेड़
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के मुताबिक, यहां फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है. वैज्ञानिकों ने कम से कम 17 किस्म के फलों के मातृवृक्ष तैयार किए हैं. इन वृक्षों द्वारा लगभग 12 हजार किस्नें तैयार की गई है, जो कि अनुवांशिक और भौतिक रुप से शुद्ध व स्वस्थ हैं. इससे फलों का अधिक उत्पादन भी हो रहा है. बता दें कि नर्सरी को मजदूरों के श्रमदान के जरिए 34 लाख रुपए में तैयार किया गया है.
इन 17 किस्मों के फलदार पौधे
आपको बता दें कि कृषि विज्ञान केंदर् ने उन्नत पौधशाला तैयार करने के लिए पूरे क्षेत्र को 15 भागों में बांटा दिया है. यहां अनार, अमरुद, नींबू, सीताफल, कटहल, बेर, मुनगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोडा एवं इमली के पौधों की रोपाई की गई है. जानकारी के लिए बता दें कि इनमें अमरुद की 3 किस्में इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 और ललित शमिल हैं. इसके अलावा नींबू की कोंकण लेमन किस्म, अनार की भगवा किस्म, संतरा की कोंकण संतरा किस्म, अंजीर की पूना सलेक्शन किस्म, करौंदा की हरा-गुलाबी किस्म, मुनगा की पी.के.एम.-1 किस्म, आम की इंदिरा नंदिराज, आम्रपाली और मल्लिका किस्म शामिल हैं.
15 एकड़ में की नर्सरी तैयार
5 साल पहले 15 एकड़ की जमीन बंजर थी, लेकिन मनरेगा के तहत नर्सरी बनाने का काम शुरू किया गया. इसके बाद मजदूरों की मेहनत रंग लाई और बंजर जमीन हरीभरी बन गई है. यहां पर जमीन का चुनाव करने के बाद गैरजरूरी झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण जैसे काम किए गए थे.
पौधरोपण
सालभर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए ले-आउट कर गड्ढों की खुदाई की गई. इस के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया गया. इसके तहत गड्ढों को इस तरह खोदा गया कि 2 पौधों के बीच की दूरी के साथ ही 2 कतारों के बीच परस्पर 5 मीटर की दूरी रखी गई. पौधरोपण के लिए 1 मीटर लंबाई, 1 मीटर चौड़ाई और 1 मीटर गहराई के मापदण्ड को अपनाया गया. इसके साथ ही सभी गड्ढों की खुदाई की गई, ताकि पौधों के विकास के समय उनकी जड़ों को जमीन के अंदर वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह मिल सके. इनमें गोबर खाद, मिट्टी, रेत और अन्य उपयुक्त खादों को मिलाकर भराई की गई. इससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो पाए.
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