केंद्र व राज्य सरकार समय - समय पर खेती में उन्नति एवं किसानों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं लाती रहती है. इसी कड़ी में बिहार सरकार की ओर से 'निजी नलकूप योजना' को लाया गया है. जिसके अंतर्गत किसानों को नलकूप लगवाने के लिए अनुदान राशि दी जाएगी. गौरतलब है कि बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी 80 % जनसंख्या कृषि पर आधारित है . कृषि के लिए सिंचाई एक मुख्य कारक है . बीते सालों में अनिश्चित मानसून एवं कम वर्षा होने की वजह से खेतों की सिंचाई के लिए किसानों की भू-जल आधारित सिंचाई पर निर्भरता बढ़ गयी है .
बिहार राज्य के सरकारी आकड़ों के मुताबिक, राज्य के 90-95 फीसद किसान लघु एवं सीमान्त श्रेणी के हैं. अतः वे सिंचाई साधन विकसित करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं. अतः राज्य में कृषि विकास एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु अनुदान आधारित निजी नलकूप योजना लागू की गयी है. इस योजना का क्रियान्वयन चरणबद्ध रुप से जिलावार किया जाने का लक्ष्य है. इस योजना में बिहार राज्य के सभी जिलों के सभी प्रखंडों को शामिल किया गया है.
जिलों के सभी प्रखंडों को शामिल किया गया है.
अनुदान की दर
- शैलो नलकूप के बोरिंग के लिए 100 रुपये प्रति फीट (328 रुपये प्रति मीटर ) की दर से अधिकतम 15000 / तक -
- मध्यम गहराई के नलकूप के बोरिंग के लिए 182 रुपये प्रति फीट (597 रुपये प्रति मीटर ) की दर से अधिकतम 35000 / तक .
- सभी प्रकार के मोटर पंप सेट के लिए अधिकतम खुदरा मूल्य का 50 प्रतिशत की दर से अथवा 10000 / - रुपये में जो कम हो तक सीमित होगी.
अनुदान हेतु पात्रता
- किसान प्रगतिशील और इच्छुक हो
- अनुसूचित जाति के न्यूनतम 16 फीसद एवं अनुसूचित जनजाति के अनुपलब्ध होने पर यह 1 फीसद अनुसूचित जाति के 16 फीसद में जोड़कर 17 फीसद होगा। इनके अनुदान के लेखा की अलग व्यवस्था राखी जाएगी.
- लघु /सीमांत किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी.
- किसान के पास न्यूनतम 40 एकड़ (40 डिसमिल ) कृषि योग्य भूमि हो।
-एक किसान को एक ही बोरिंग एवं पंपसेट के लिए ही अनुदान अनुमान्य होगा
इस खबर के बारें में और अधिक जानकारी के लिए dbtagriculture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते है.
आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लागू की गई है जिसके उपघटक 'मोर क्रॉप पर ड्राप- माइक्रोइरीगेशन' कार्यक्रम के अन्तर्गत ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को प्रभावी ढंग से विभिन्न फसलों में अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस सिंचाई पद्धति को अपनाकर 40-50 प्रतिशत पानी की बचत के साथ ही 35-40 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि एवं उपज के गुणवत्ता में सुधार सम्भव है.