Matar ki kheti: मटर बहुत लोकप्रिय फसल है. इसकी हरी फली के साथ-साथ सूखे बीज क्रमशः सब्जी और डाल के रूप में पकाने के लिए अत्यधिक मांग है. मटर में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट विटामिन ए एवं विटामिन के और कैल्शियम और फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है.
मटर की उन्नत किस्म/Improved Variety of Peas
क्षेत्र वाली किस्में : आई.पी.एफ. 99-25 (आदर्श), आई.पी.एफ.डी. 99-13 (विकास), आई.पी.एफ.डी. 1-10 (प्रकाश), आई.पी.एफ.डी. 5-1 (अमन), आई.पी.एफ.डी. 6-3, आई.पी.एफ.डी. 10-12, आई.पी.एफ.डी. 11-5, आजाद पी. 3, आजाद पी. 1, पन्त पी. 1, आई.पी.एफ.डी. 12-2, पन्त पी. 250, आई.पी.एफ.डी. 9-2, आई.पी.एफ.डी. 4-9, एच. एफ. पी. 529.
सब्जी वाली किस्में : कशी समृद्धि, कशी नंदनी, कशी मुक्ति, अर्किल, बोनेबिले, जवाहर मटर 1, जवाहर मटर 2, आजाद मटर 3 आदि.
भूमि की आवश्यकता और पृथक्करण की दूरी
इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन अच्छी जल निकास निकासी वाली उपजाऊ दोमठ भूमि फसल के लिए सबसे अच्छी होती है. मटर 6 से 7 पीएच वाली मिट्टी में सबसे अच्छा विकास करता है. भौतिक मिलान एवं अनुवांशिक संदूषण से बचाने के लिए आधारित बीज के उत्पादन के लिए 10 मी और प्रमाणित बीच की उत्पादन के लिए 5 मीटर की दूरी दो किस्मों/ खेतों के बीच रखी जानी चाहिए.
क्षेत्र मानक
अवयव |
प्रत्येक वर्ग के लिए मानक |
|
आधारीय बीज |
प्रमाणित बीज |
|
पृथक्करण दुरी (न्यूनतम) |
10 मीटर |
5 मीटर |
क्षेत्र परिक्षण की संख्या |
2 |
5 |
भिन्न किस्म के पौधे (अधिकतम) |
0.10 प्रतिशत |
0.20 प्रतिशत |
अविभाज्य अन्य फसल (अधिकतम) |
कोई नहीं |
कोई नहीं |
अविभाज्य खरपतवार (अधिकतम) |
कोई नहीं |
कोई नहीं |
चिन्हित रोग में प्रभावित पौधे (अधिकतम) |
0.10 प्रतिशत |
0.20 प्रतिशत |
जलवायु
मटर के बीज न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अंकुरित हो सकते हैं और अंकुरण के लिए ईस्टतम तापमान 18 से 22 डिग्री सेल्सियस होता है 30 डिग्री सेल्सियस के करीब तापमान मटर की डिब्बा बंदी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. मटर सुखा के प्रति बहुत संवेदनशील फसल है.
खेत की तैयारी
2 से 3 जुताई या हर्रोविंग के बाद पाटा लगाना मिट्टी को चूर्णीत करने के लिए पर्याप्त होती है जो बीज के अंकुरण और पौधों के आगे विकास के लिए अच्छा होता है. खेत खरपतवार से मुक्त होना चाहिए फसल चक्र को अपने से खेत की उर्वरता बनी रहती है तथा खेत में स्वजनित पौधों से मुक्त होते हैं.
बुआई का समय और बीजदर
बीज फसल की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के द्वितीय सप्ताह में करें यंत्रीकृत बुवाई के लिए अगेती किस्मे 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और मध्य और लंबी अवधि वाली पर किस्म की 80 से 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर पर्याप्त होती है. मैन्युअल बुवाई से बीच की दर 10 किलोग्राम प्रति एकड़ तक कम हो सकती है शुरुआती और मुख्य मौसम की किस्म के लिए पीछे पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं पौध से पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए. मटर के तने की मक्खी कभी-कभी अंकुर अवस्था में गंभीर क्षति का कारण बनती है इसलिए बुवाई के समय कुंडों में तीन किलोग्राम थिमेट (फोरेट) अथवा 10 किलोग्राम फुरादान 3जी (कार्बोफुरान) दाने प्रति एकड़ में डालें. मटर की बुवाई में डापर बीज सह उर्वरक मटर ड्रिल के साथ भी की जा सकती है जो 60 सेंटीमीटर चौड़ी होती है. यह ड्रिल मटर की दो पंक्तियों को बोती है जो प्रत्येक कटक पर 25 सेंटीमीटर की दूरी पर होती है यह ड्रिल एक एकड़ प्रति घंटे की बुवाई कर सकती है .
बीज का स्रोत
बुवाई हेतु बीजों की किसी प्रमाणित संस्था से ही कार्य करें आधारित एवं प्रमाणित बीजों के उत्पादन हेतु क्रमशः जनक एवं आधारित बीज प्राप्त करें .
बीज उपचार
बुवाई से पहले बीच को बाविस्टिन प्रति 1 ग्राम या कैप्टन प्रति 2 किलोग्राम पाउडर सुत्रिकरण आधारित से उपचारित करें उन क्षेत्रों में जहां मटर की फसल पहले नहीं बोई गई है बीज को बैक्टीरियल कल्चर (राइजोबियम लेग्युमिनीसोरमल) के साथ उपचारित करने की सलाह दी जाती है ताकि नोडल का निर्माण और त्वतरित विकास सुनिश्चित हो सके. इससे पहले की उपज और गुणवत्ता में वृद्धि होती है. एक एकड़ कल्चेर पैकेट को आधा लीटर पानी के साथ मिलाया जाना चाहिए बैक्टीरियल कल्चर से उपचारित करते समय इस आधा लीटर पानी में 30 किलोग्राम बीच के लिए कैप्टन / 90 एस को मिलना बेहतर है मिश्रण को अच्छी तरह से बीज पर रगड़े ताकि एक महीन आवरण मिल सके प्रत्येक बीज को कल्चर करें इसके बाद बीज को सुखाने के लिए छाया में फैलाएं और तुरंत बाद में रोपें.
बुवाई की विधि
बीज फसल की बुवाई पंक्ति में की जाती है बुवाई से पहले बीजों को बैक्टेरियम कलर (राइजोबियम लेग्युमिनीसोरमल) से उपचारित किया जाता है. गुड़ के खोल को बीजों के साथ अच्छी तरह से मिलना चाहिए ताकि बीज अच्छी तरह से भीग जाए इसके बाद बीजों को बुवाई से पहले छाया में सुख ले फास्फोरबैक्टेरियम के साथ मिट्टी का टीकाकरण समान रूप से प्रभावित होता है और कभी-कभी राइजोबियम के साथ टीकाकरण से बेहतर होता है.
खाद और उर्वरक
दलहनी फसल होने के कारण मटर को खाद और उर्वरकों की कम आवश्यकता होती है. लगभग 15 से 20 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 130 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट और 100 से 120 किलोग्राम मुरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टेयर आम तौर पर मटर की फसल की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. गोबर की खाद को बुवाई से एक माह पहले और तीन उर्वरकों को मिलाकर बुवाई के समय बेसल के रूप में लगाया जा सकता है .
खरपतवार नियंत्रण
अंकुरण के क्रमशः 4 से 8 सप्ताह के बाद दो बार निराई करके खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए. रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टांप 30 ई.सी. पेंडेमथलीन प्रति एकड़ का प्रयोग बुआई के तुरंत बाद करें हेर्बीसाइड को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर पूरे खेत में समान रूप से छिड़काव करें .
सिंचाई
समतल भूमि पर बीज को मिट्टी की नमी की उचित स्थिति में बोना बहुत महत्वपूर्ण होता है . पह्ली सिंचाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए, अगली सिंचाई फूल आने पर और जरूरत पड़ने पर फल लगते समय करनी चाहिए . मटर को सीमित सिंचाई के साथ बरानी फसल के रूप में उगाया जा सकता है. मिट्टी के प्रकार और मौसम की स्थिति के आधार पर आवश्यक सिंचाई की कुल संख्या 3 से 4 है .
क्षेत्र निरीक्षण
बीज फसल का निरीक्षण बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों द्वारा किया जाता है. यह निरीक्षण तीन बार पहला फूल आने से पहले, दूसरा फूल आने पर और तीसरा खाद्य फली अवस्था में किया जाता है. आधारित और प्रमाणित बीज के लिए भिन्न पौधों की अधिकतम अनुमानित प्रतिशत क्रमशः 0.10 और 0.50 है हालांकि एक स्वपरागण फसल मटर अच्छी तरह से ऑफ टाइप पौधे के उत्पादन के लिए जाना जाता है. इसलिए जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है फूल आने पर और फैलने की अवस्था में सघन रोगागिंग कर लंबे एवं छोटे पौधे अन्य फसलों के पौधे अन्य प्रजातियों के पौधे तथा रोगित पौधे खेत से बाहर कर देना चाहिए.
पादपसुरक्षा
खस्ता फफूदी: पत्तियों और फलियां पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे बन जाते हैं. शुष्क मौसम रोग के प्रसार में सहायक होता है. रोग से बचाव हेतु बीजों को गर्म पानी से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए. रोग के नियंत्रण हेतु सल्फर या सल्फैक्स 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड्काव किया जाना चाहिए अथवा कैरथान या धिनोकाप का 0.2% का 10 दोनों के अंतराल पर तीन बार तीन बार छिड़काव किया जाना चाहिए. प्रतिरोधी किस में जैसे शुगरजॉइंट, पन्त पी 8, पीऍमआर 3 आदि उगाई जा सकती है नवंबर और दिसंबर के अंत में बुवाई से बचना चाहिए.
कोमल फफूदी रोग : पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के फफूंद के धब्बे दिखाई देते हैं. नमी युक्त मौसम की स्थिति में रोग अत्यधिक तीव्रता से फैलता है. प्रभावित पौधों को खेत में से निकाल देना चाहिए. बुवाई से पहले बीजों को गर्म पानी से उपचारित करना चाहिए. रोग नियंत्रण हेतु डाईथेन जेड 78 या डाईथेन एम 45 का 0.2% संद्रन पर छिड़काव करना चाहिए.
फुजेरियम बट रोग : यह रोग आमतौर पर अगेती फसल पर अधिक होता है. रोग के विकास के लिए मिट्टी का तापमान 23 से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच सबसे अनुकूल है. प्रभावित पौधों में पत्तियां पीली पड़ जाती है और नमी की ओर मुड़ जाती है और फलियों का आधी अधूरी भरी रहती है गंभीर मामलों में पूरे पौधे मुरझा जाता हैं और तना सिकुड़ जाता है. रोकथाम के रूप में बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों में मटर की शुरुआती बुवाई से बचें बुवाई से पहले बीज को बाविस्टिन 19 ग्राम या कैप्टन 2 ग्राम से बीज को उपचारित करना चाहिए.
रतूवा : यह रोग देर से बोई जाने वाली फसल में सर्वाधिक गंभीर होता है. और आमतौर पर दिसंबर जनवरी में आता है. इंडोफिल एम 45 की 400 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में दिसंबर के अंत में छिड़काव करें बाद में तीन छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर लगातार करने से रोक का प्रकोप कम हो जाता है .
कीट नियंत्रण
मक्खी : कभी-कभी अंकुरण अवस्था में अधिकतर शीघ्र बोई जाने वाली फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. इसे नियंत्रित करने के लिए बुवाई के समय 3 किलोग्राम थाइमेट 10जी (फोरट) या 10 किलोग्राम फुरादन (कार्बोफुरान) कणिकाओं को प्रति एकड़ की दर से बुवाई करके समय में कूड़े में डालें.
एफिड : यह पौधे के छोटे-छोटे भागों से रस चूसते हैं. बुवाई के समय कार्बोफुरान 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज के साथ डालना चाहिए रोगोर 0.03% या मेलाथियान का 0.01% का छिड़काव करना चाहिए.
थ्रिप्स : यह कोशिकाओं का रस चूस कर नये फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं. जब हमला शुरू हो जाए तो रोगोर 30 इसी (डाईमेथोएट) को 400 मि.ली. को 80 से 100 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें और 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें फलियों की तुड़ाई से कम से कम 20 दिन पहले इन कीटनाशक को छिड़काव बंद कर दें.
पत्ती सुरंगक : यह किट पत्तियों में सुरंग बनाकर लार्वा को खिलाते हैं. इसे दिसंबर मार्च के दौरान गंभीर नुकसान होता है इसका नियंत्रण मटर ट्रिप्स के समान है.
बीज मानक
अवयव |
प्रत्येक वर्ग के लिए मानक |
|
आधारीय बीज |
प्रमाणित बीज |
|
शुद्ध बीज (न्यूनतम) |
98 प्रतिशत |
98 प्रतिशत |
निष्किय पदार्थ (अधिकतम) |
2 प्रतिशत |
2 प्रतिशत |
अन्य फसल के बीज (अधिकतम) |
कोई नहीं |
5 बीज/ किग्रा. |
खरपतवार के बीज (अधिकतम) |
कोई नहीं |
कोई नहीं |
अन्य विशिस्ट किस्मे (अधिकतम) |
5 बीज/ किग्रा. |
10 बीज/ किग्रा. |
कठोर बीजो सहित अंकुरण प्रतिशत (न्यूमतम) |
75 प्रतिशत |
75 प्रतिशत |
जूट / कपड़ो के बोरों में नमी (अधिकतम) |
9 प्रतिशत |
9 प्रतिशत |
नमी रोधी डिब्बाबंद पत्र में नमी (अधिकतम) |
8 प्रतिशत |
8 प्रतिशत |
कटाई और उपज
जब 90% फलिया भूरे रंग की हो जाए तब कटाई शुरू करनी चाहिए. पौधों को उठाकर छोटे देर में एकत्रित कर देना चाहिए और एक या दो सप्ताह के लिए खेत में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए. मडाई साधारण थ्रेसर से या फली को डंडों से पीट कर करना चाहिए यदि साधारण थ्रेसर का उपयोग करते हैं तो यांत्रिक शक्तियां काम करने के लिए सिलेंडर की गति को कम कर देना चाहिए. मडाई के बाद भंडारा से पहले बीजों को 9% नामी तक सुखना चाहिए कटाई और मडाई करने के दौरान यांत्रिक मिश्रण और ना मिट्टी के साथ बीजों के संपर्क से बचना चाहिए. आगे की फसल की औसत उपज 25 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मध्य सीजन की फसल 65 से 85 कुंतल क्विंटल प्रति हेक्टेयर और पछेती फसल 85 से 115 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
लेखक:
डॉ. प्रकृति चौहान1, डा. सौरभ सिंह2, डा. जितेंदर भाटी3, डा. श्रद्धा सिंह1
1आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधिगिक विश्यविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
2दून कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)
3गोचर महाविदालय सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)