किसान रबी की फसलों (Rabi Crops) की बुवाई की तैयारी सितम्बर-अक्टूबर माह में शुरू कर देते हैं. यह समय आलू की बुवाई के लिए काफी अच्छा माना जाता है. हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में आलू की खेती की जाती है.
इसलिए किसानों को आलू की खेती करते समय अपने क्षेत्र के मुताबिक आलू की विकसित किस्मों (Developed varieties of potato) की बुवाई करनी चाहिए.
आज हम आपको अपने इस लेख में आलू की टॉप 5 रोग अवरोधी क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों के बारे में बताएंगे. जो आपको अच्छे उत्पादन के साथ - साथ अच्छी आमदनी भी प्रदान करेंगी, तो आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से...
कुफरी गरिमा (Kufri Garima)
आलू की ये किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में विकसित की गई है. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त होता है. इसे लंबे समय तक आसानी से स्टोर किया जा सकता है.
कुफरी देवा (Kufri Deva)
आलू की ये किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में खेती के लिए विकसित की गई है. यह थोड़ा देरी से तैयार होती है. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200-250 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त होता है. इसे लंबे समय तक आसानी से स्टोर किया जा सकता है और इसपर पाला का भी प्रभाव नहीं पड़ता है.
कुफरी बादशाह (Kufri Badshah)
आलू की ये किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त होता है. यह एक अगेती और पछेती झुलसा रोग प्रतिरोधी किस्म है.
कुफरी कंचन (Kufri Kanchan)
आलू की ये किस्म उत्तर-बंगाल की पहाड़ियों और सिक्किम के लिए विकसित की गई है. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 कुंतल तक उत्पादन प्राप्त होता है.
कुफरी गिरधारी (Kufri Girdhari)
आलू की ये किस्म भारत के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 कुंतल तक का उत्पादन प्राप्त होता है. यह एक पछेती झुलसा प्रतिरोधी किस्म है.