बीजीय मसालों में अजवायन का मुख्य स्थान है. इसके बीजों को सब्जियों व अचार में मसालों के रुप में अधिक किया जाता है. इसकी खास महक इसमें मोजूद तेल के कारण होती है. इसके तेल से बहुत सी आयुर्वेदिक औषधियाँ (Ayurvedic medicines) बनाई जाती है. इसके बीज पेट की समस्याओं में दवा का काम करते है. अजवायन में प्रोटीन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस व आयरन जैसे तत्व पाये जाते है. अजवाइन की फसल को उगाने में यदि सही वैज्ञानिक पद्धति (Scientific method) का प्रयोग किया जाये तो इसकी प्रति क्षेत्र उत्पादन भी बढ़ता है. तो आइये जानते है अजवायन बीज पैदा करने की कुछ महत्वपूर्ण तकनीकें-
अजवाइन की फसल में मुख्य वैज्ञानिक कृषि तकनीकें (Main scientific farming techniques in Carom crop)
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अजवायन सर्दी के मौसम में उगाई जाने वाली रबी फसल (Rabi crop) है. इसकी अच्छी बढ़वार व पैदावार के लिए ठंडा व सूखा मोसम अच्छा रहता है जबकि बीज पकते समय कुछ गरम मौसम का होना जरूरी होता है.
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अजवायन के लिए रेतीली जमीन अच्छी नहीं होती है. अच्छी पैदावार के लिए दोमट व मटियार दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है.
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खेत की तैयारी (Field Preparation) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 से 3 जुताइयाँ देशीहल या हैरो से करनी चाहिए. इसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए. अजवायन का बीज बहुत छोटा होता है, अतः मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी है.
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अच्छे अंकुरण (Good germination) के लिए खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है अतः पलेवा करके ही खेत तैयार कर ले.
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अजवायन की उन्नत किस्में (Improved varieties) जैसे अजमेर अजवायन-1, जो 165 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज (Average yield) 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. अजमेर अजर्वाइन-2 किस्म 150 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है जिसकी औसत उपज 13 क्विंटल प्रति हेक्टर है. Ajmer Ajwain -93 किस्म भी अच्छी उत्पादन देती है.
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इसकी बुवाई के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टर बीज लगता है.
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फसल को शुरू में रोगों से बचाने के लिए 2-3 ग्राम कार्बेडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार (Seed treatment) करना चाहिए.
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अजवायन की बुवाई के लिए असिंचित क्षेत्रों में अगस्त तथा सिंचित क्षेत्रों में मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक का समय उपयुक्त होता है.
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इसकी बुवाई छिटकवाँ विधि या कतारों में की जा सकती है. कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए. बीजों की गहराई 1.5 से.मी. से अधिक नही होनी चाहिये. छिटकवाँ विधि में बीजों को समतल क्यारियों में समान रुप से बिखेर कर मिट्टी मिला देनी चाहिए.
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अच्छी पैदावार के लिए बुवाई के करीब 3 सप्ताह पहले खेत में 10-15 टन प्रति हेक्टर की दर से अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद (Compost) का प्रयोग करना चाहिए.
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वैसे तो मिट्टी जांच (Soil test) के बाद की उर्वरक की सिफारिस (Recommendation) की जाती है मगर जांच नहीं कराने पर जमीन में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फोस्फोरस प्रति हेक्टर डालना चाहिए. जिसमें से नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय मिट्टी में दाल दे तथा नाइटोजन की शेष मात्रा बुवाई के 30 व 60 दिनों पर 2 बार डालनी चहिये.
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अजवायन की फसल में करीब 4 से 5 सिंचाइयों की जरूरत होती है. इसकी एक हल्की सिंचाई (Irrigation) बुवाई के तुरन्त बाद करनी चाहिये. मौसम और मिट्टी में नमी के अनुसार 15 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिये.
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अजवायन की फसल करीब 130 से 180 दिनों बाद पक (Maturity) कर तैयार हो जाती है. इसकी बुवाई के अनुसार अजवायन की कटाई फरवरी से मई महीने तक की जाती है.
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फसल पकने पर फूल आने बिल्कुल बन्द हो जाते है तथा बीज भूरे रंग के पड जाते है.
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इस अवस्था में फसल को काट कर सूखने के लिए छायादार जगह पर कुछ दिनों तक फर्श पर छोड़ दिया जाता है. अच्छी तरह सूखने के बाद डंडों से पीट कर बीजों को निकाल लिया जाता है.
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उन्नत वैज्ञानिक तकनीक (Advanced Scientific Technology) अपना कर सिंचित क्षेत्रों में 10-15 क्विंटल और असिंचित क्षेत्रों में 4-5 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त हो जा सकती है.
इसके भंडारण (Storage) के लिए अजवायन के बीजों को नमी रहित गोदामों में रखना चाहिए. अच्छी तरह सुखाई व साफ की गई अजवायन को बोरियों में भर कर स्टोर करे.